उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक बयान इन दिनों बीजेपी के भीतर एक बड़ा विवाद बन चुका है। “बंटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे” – ये नारा योगी ने हाल ही में दिया था, जिसे लेकर पार्टी में अंदरूनी खींचतान शुरू हो गई है। बीजेपी के कई नेता इस नारे से सहमत नहीं दिख रहे हैं, और इस पर सार्वजनिक रूप से बयान देने लगे हैं। हाल ही में यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी इस नारे से असहमति जताई है। अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या ये नारा बीजेपी के लिए फायदे का सौदा साबित होगा, या फिर यह पार्टी के भीतर की दरारों को और बढ़ाएगा?
केशव मौर्य ने योगी के नारे से किया किनारा
केशव मौर्य ने साफ कहा है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “एक हैं तो सेफ हैं” वाले नारे का समर्थन करते हैं, न कि योगी आदित्यनाथ के “बंटेंगे तो कटेंगे” वाले नारे का। मौर्य ने यह भी कहा कि योगी आदित्यनाथ का यह नारा किसी खास संदर्भ में दिया गया होगा, लेकिन वे इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। उनका यह बयान बीजेपी में अंदरूनी असहमति को उजागर करता है, क्योंकि जिस नारे को योगी ने उत्तर प्रदेश में एकजुटता का प्रतीक बताया, वही अब बीजेपी के कुछ नेताओं के लिए समस्या बनता जा रहा है।
महाराष्ट्र में भी नारे को लेकर विरोध
यह विवाद सिर्फ उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं रहा। महाराष्ट्र में भी इस नारे को लेकर विरोध की लहर उठी है। महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार ने कहा कि “बंटेंगे तो कटेंगे” नारा महाराष्ट्र की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति के हिसाब से सही नहीं है। उन्होंने कहा कि यह नारा उत्तर भारत के संदर्भ में तो ठीक हो सकता है, लेकिन महाराष्ट्र में इसका असर नहीं होगा। महाराष्ट्र में बीजेपी की वरिष्ठ नेता पंकजा मुंडे और कांग्रेस के अशोक चव्हाण ने भी इस नारे का समर्थन करने से इनकार किया है। इससे यह साफ होता है कि नारा केवल उत्तर भारत तक ही प्रभावी नहीं हो सकता, और बाकी राज्यों में इसका अलग असर हो सकता है।
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बीजेपी में असहमति की गूंज
बीजेपी के अंदर यह असहमति पार्टी के भीतर की राजनीतिक खींचतान को उजागर कर रही है। एक तरफ योगी आदित्यनाथ ने इस नारे के जरिए एकता और शक्ति का संदेश दिया, दूसरी तरफ पार्टी के कई नेता इस नारे से सहमत नहीं दिख रहे हैं। फिलहाल यह सवाल उठ रहा है कि बीजेपी के नेता क्या वाकई योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं हैं, या फिर यह सिर्फ चुनावी राज्यों की राजनीति की मांग के अनुसार एक रणनीतिक निर्णय है।
क्या योगी का नारा पार्टी के लिए फायदेमंद होगा?
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि योगी आदित्यनाथ का यह नारा आगामी चुनावों में बीजेपी के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है, या फिर यह पार्टी के लिए एक नई चुनौती भी बन सकता है। जो पार्टी एकजुटता के संदेश पर जोर दे रही थी, अब उसके भीतर इस नारे के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। योगी का यह नारा, जो एकता का प्रतीक माना जा रहा था, अब बीजेपी के भीतर की राजनीति का एक अहम मुद्दा बन चुका है। अगर पार्टी को अपनी स्थिति को मजबूत करना है, तो उसे इस नारे और इसके प्रभाव पर विचार करना होगा।
संघ परिवार ने स्वीकार किया, लेकिन बीजेपी के भीतर विरोध
योगी आदित्यनाथ के इस नारे को संघ परिवार ने स्वीकार कर लिया था, लेकिन अब बीजेपी के भीतर कई नेता इसके खिलाफ उठ खड़े हुए हैं। यह स्थिति पार्टी के अंदरूनी मतभेदों को दिखाती है, जो खासकर आगामी चुनावों में एकता के संदेश को प्रभावित कर सकती है। बीजेपी की रणनीति और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व पर अब सवाल उठने लगे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या योगी का यह नारा पार्टी के लिए फायदेमंद साबित होगा, या फिर यह और विवादों का कारण बनेगा।
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नारा या रणनीति?
बीजेपी के कुछ नेताओं का कहना है कि योगी आदित्यनाथ का यह नारा राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। हालांकि, इस नारे से उठ रहे विवादों को देखते हुए बीजेपी को इसे लेकर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। योगी आदित्यनाथ का “बंटेंगे तो कटेंगे” नारा अब केवल एक राजनीतिक बयान नहीं रहा, बल्कि यह बीजेपी के भीतर के मतभेदों और चुनावी रणनीतियों का एक बड़ा कारण बन चुका है। आने वाले चुनावों में इसका असर क्या होगा, यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन फिलहाल पार्टी के भीतर विरोध के स्वर साफ सुनाई दे रहे हैं।