ब्रिटेन, इटली और जापान ने मिलकर एक बड़ा कदम उठाया है। ये तीनों देश अब एक साथ मिलकर दुनिया के सबसे आधुनिक लड़ाकू विमान बनाने जा रहे हैं। इस प्रोजेक्ट को ‘ग्लोबल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट प्रोग्राम’ या GCAP नाम दिया गया है। इस योजना को हाल ही में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने मंजूरी देकर इस प्रोजेक्ट में एक नई जान फूक दी है।
प्रोजेक्ट का उद्देश्य और महत्व
इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य है रूस और चीन जैसे देशों से बढ़ते खतरे का मुकाबला करना। यह विमान छठी पीढ़ी का होगा, जो अभी तक के सबसे उन्नत लड़ाकू विमानों में से एक होगा। इसमें स्टील्थ तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे यह दुश्मन के रडार से बचकर निकल सकेगा।
इस प्रोजेक्ट में दो अलग-अलग योजनाओं को मिलाया गया है – इटली का टेम्पेस्ट प्रोजेक्ट और जापान का F-X प्रोजेक्ट। ब्रिटेन ने इस प्रोजेक्ट के लिए पहले ही 2 अरब पाउंड देने का वादा किया है। इससे पता चलता है कि यह प्रोजेक्ट कितना महत्वपूर्ण है।
प्रोजेक्ट की चुनौतियां और समय सीमा
GCAP प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए 2035 तक का समय रखा गया है। यह एक बड़ी चुनौती है क्योंकि इतने कम समय में इतना उन्नत विमान बनाना आसान नहीं होगा। इस प्रोजेक्ट में कई बड़ी कंपनियां शामिल हैं, जैसे ब्रिटेन की बीएई सिस्टम्स और रोल्स रॉयस, इटली की लियनार्डो एयरोस्पेस और जापान की मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज।
इस प्रोजेक्ट की कुल लागत अभी तय नहीं है, लेकिन यह अरबों डॉलर में होने की उम्मीद है। इतने बड़े प्रोजेक्ट के लिए इतना खर्च स्वाभाविक है। अगर यह प्रोजेक्ट समय पर पूरा हो जाता है, तो यह विमान अमेरिका के बी-21 रेडर बॉम्बर के बाद दुनिया का दूसरा ऐसा उन्नत स्टील्थ विमान होगा।
भविष्य की संभावनाएं और प्रभाव
GCAP प्रोजेक्ट का मुख्यालय ब्रिटेन में होगा। ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि वे अपने साथी देशों जापान और इटली के साथ मिलकर इस काम को 2035 तक पूरा करने पर ध्यान दे रहे हैं। यह प्रोजेक्ट न केवल इन तीन देशों की सैन्य ताकत को बढ़ाएगा, बल्कि उनके बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग को भी मजबूत करेगा।
इस तरह के उन्नत विमान का निर्माण दुनिया के सैन्य संतुलन को बदल सकता है। यह न केवल रूस और चीन जैसे देशों के लिए एक चेतावनी होगी, बल्कि अन्य देशों को भी अपनी रक्षा तकनीक में सुधार करने के लिए प्रेरित करेगा।
इस प्रोजेक्ट से तीनों देशों में रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। इससे इन देशों की अर्थव्यवस्था को भी फायदा होगा। साथ ही, इस तरह के उन्नत प्रोजेक्ट से इन देशों की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमताओं में भी वृद्धि होगी।
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