Burhanpur News: बुरहानपुर। यूं तो देश की कई हस्तियों ने पूरी दुनिया में नाम कमाया है। बावजूद, कुछ चंद नाम ऐसे भी हैं, जिन्होंने एक अलग ही छाप छोड़ी है। ऐसे ही सख्शियत थे भारत के प्रथम हिंद केसरी कहे जाने वाले रामचंद्र बाबू पहलवान। लेकिन अफसोस की बात है कि अब वो हमारे बीच नहीं रहे। आज रामचंद्र बाबू पहलवान ने 95 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली।
रामचंद्र पहलवान का लंबे समय से स्वास्थ्य खराब चल रहा था। बीते दिनों नेपानगर विधायक मंजू दादू भी उनका हाल जानने पहुंची थी। इस पहलवान ने कई मुकाबले जीते हैं और अपना नाम कमाया। साल 1958 में उन्हें देश का प्रथम हिंद केसरी खिताब मिला था। उनकी पहलवानी के किस्से जब दूर-दूर तक पहुंचे तो कई युवा उनके पास पहलवानी सीखने गए। अपने गुर को रामचंद्र बाबू ने प्रोफेशन में बदल दिया। लगभग 45 साल में उन्होंने 100 से ज्यादा पहलवानों को तैयार किया है।
रामायण में ठुकराया हनुमान का किरदार
रामचंद्र की कद काठी या कहें कि पर्सनालिटी इतनी अच्छी थी कि उन्हें रामानंद की रामायण में हनुमान का रोल ऑफर किया गया। हालांकि, रामायण धारावाहिक के हनुमान रोल को उन्होंने ठुकराया दिया था। बाद में दारा सिंह को हनुमान के रोल के लिए कास्ट किया गया।
रोजगार की तलाश में गए थे नेपानगर
रामचंद्र बाबू का जन्म बुरहानपुर में हुआ था। रोजगार की तलाश में वे नेपानगर चले गए थे। पहलवान ने 1992 तक नेपा मिल में जूनियर लेबर एंड वेलफेयर सुपरवाइजर के पद पर रहकर अपनी सेवाएं दीं। जब रामचंद्र बाबू पहलवान रिटायर्ड हो गए तो उन्होंने कई युवाओं को पहलवानी के गुर और कुस्तियां सिखाईं। रामचंद्र बाबू ने नौकरी के दौरान और रिटायर्ड के बाद भी पहलवानी नहीं छोड़ी।
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रामचंद्र पहलवान ने 200 से ज्यादा पुरस्कार जीते। कुश्ती के वक्त उन्होंने कई पहलवानों को अपने दांव-पेंच से चित्त किया लेकिन जिंदगी के अखाड़े में आज रामचंद्र बाबू भी चित्त हो गए। लेकिन जिंदगी के अखाड़े में रामचंद्र हार गए। हिंद केसरी अपने पीछे एक भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। परिवार में पत्नी, पांच बेटे, बहुए और नाती-पोती हैं। पहलवान के अंतिम समय तक परिवार के सदस्य उनके साथ रहे।
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