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Burhanpur News: पंचतत्व में विलीन हुए रामचंद्र बाबू पहलवान, अंतिम यात्रा में उमड़े स्थानीय लोग

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Burhanpur News: बुरहानपुर। देश के प्रथम हिंद केसरी रामचंद्र बाबू पहलवान ने दुनिया को शनिवार दोपहर 3.15 बजे अलविदा कह दिया था। इसके बाद रविवार को उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई। उनके अंतिम दर्शन के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा और नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

रामचंद्र बाबू पहलवान का अंतिम संस्कार नेपानगर में ताप्ती नदी के किनारे किया गया। पहलवान के बड़े बेटे ने उन्हें मुखाग्नि दी। रामचंद्र बाबू की अंतिम यात्रा में स्थानीय लोगों के सहित समाज के लोग भी शामिल हुए। रामचंद्र बाबू का हिंदू रीति- रिवाजों के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

कर्नाटक से मिला था ईनाम

बता दें कि रामचंद्र बाबू पहलवान का का जन्म साल 1929 में बुरहानपुर में हुआ था। उन्होंने साल 1958 में थल सेना के फेमस पहलवान को चित्त कर दिया था और प्रथम हिंद केसरी का खिताब अपने नाम किया था। इसके अलावा उनकी इस प्रतिभा को देखते हुए कर्नाटक के गर्वनर ने 15 किलो वजनी चांदी का गदा बतौर पुरस्कार के तौर पर दिया था। (Burhanpur News)

रामचंद्र बाबू पहलवान को रामानंद सागर की रामायण धारावाहिक में हनुमान जी रोल के लिया चुना गया था। हालांकि, उस वक्त पिता के निधन की वजह से उन्होंने ऑफर ठुकरा दिया था। बाद में भगवान हनुमान का रोल दारा सिंह ने निभाया और काफी प्रसिध्दि बटोरी।

दांव-पेंच से किया विरोधियों को चित्त

रामचंद्र बाबू पहलवान ने पहलवानी के दांव पेच देसी अखाड़े में सीखे थे। उनका शरीर भी काफी हष्ट-पुष्ट था। पहलवान ने करीब 250 से ज्यादा कुश्तियों में कई सूरमा पहलवानों को धूल चटाई और 200 से अधिक पुरस्कार जीते। (Burhanpur News)

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परिजनों के मुताबिक, 45 साल के पहलवानी जीवन में बाबू ने लगभग 100 से ज्यादा छोटे-बड़े पहलवानों को कुश्ती के गुर सिखाए हैं। आज प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी उनके कई नामचीन पहलवान हैं। इसके अलावा उनके शागिर्द रहे रतन पहलवान, प्रताप पहलवान, घन्सू भाई पहलवान सहित मदन मोहन पहलवान राज्य स्तरीय कुश्तियों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं।

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