क्या केजरीवाल की मांग से जल्दी हो सकते हैं दिल्ली चुनाव? जानें क्या कहता है कानून

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उनकी जगह अब आम आदमी पार्टी (AAP) की वरिष्ठ नेता आतिशी मुख्यमंत्री बनी हैं। केजरीवाल का कहना है कि वह अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए “अग्निपरीक्षा” देना चाहते हैं। यह घटनाक्रम उस समय आया है जब केजरीवाल और कई अन्य AAP नेताओं के खिलाफ कथित आबकारी नीति मामले में आरोप हैं। पिछले हफ्ते उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी।

ये भी पढ़ें- आतिशी मार्लेना की ‘एक्सीडेंटल चीफ मिनिस्टर’ बनने की पूरी कहानी

सीएम पद छोड़ने के बाद, केजरीवाल ने दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराने की मांग की है, और उन्होंने सुझाव दिया कि ये चुनाव महाराष्ट्र के चुनाव के साथ ही कराए जाएं। हालांकि, दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 23 फरवरी, 2025 तक है, जबकि महाराष्ट्र में नई विधानसभा 26 नवंबर से पहले बनानी होगी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दिल्ली में जल्द चुनाव कराए जा सकते हैं?

अरविंद केजरीवाल

क्या सत्ताधारी पार्टी के कहने से चुनाव कराए जा सकते हैं?

भारत में विधानसभा चुनावों की तारीखें और प्रक्रिया मुख्यतः चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित की जाती हैं। संविधान के अनुसार, हर राज्य की विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का होता है। हालांकि, किसी भी विधानसभा को समय से पहले भंग करने का अधिकार राज्य सरकार के पास होता है, लेकिन इसके लिए निश्चित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक है।

किसी मुख्यमंत्री या सत्ताधारी पार्टी के कहने से चुनाव नहीं कराए जा सकते। चुनाव आयोग स्वतंत्र रूप से यह निर्णय लेता है कि कब चुनाव कराए जाएंगे। यदि सरकार विधानसभा को भंग करना चाहती है, तो उसे राज्यपाल के पास जाकर अपनी मंशा बतानी होगी। इसके बाद राज्यपाल इस पर निर्णय लेते हैं और विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं।

इसलिए, भले ही केजरीवाल या AAP चुनाव कराने की इच्छा जताएं, लेकिन कानूनी दृष्टिकोण से दिल्ली में जल्द चुनाव कराने की प्रक्रिया जटिल है। चुनाव आयोग की स्वायत्तता और संविधान द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार ही चुनाव की तारीखें तय होती हैं। इस स्थिति में, आम आदमी पार्टी के नेताओं को यह समझना होगा कि चुनावों का आयोजन किस प्रकार से होता है और क्या इसके लिए कानूनी रूप से उचित कारण हैं।

चुनावों की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग के मत्थे

भारत में चुनावों से संबंधित सभी कार्यों की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग (Election Commission Of India) के पास होती है। संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, चुनावों का संचालन, निर्देशन और नियंत्रण पूरी तरह से चुनाव आयोग के जिम्मे है। आयोग यह सुनिश्चित करता है कि मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले चुनाव प्रक्रिया पूरी हो जाए।

हालांकि, चुनाव आयोग अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकता। जनप्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 15(2) के अनुसार, विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से कम से कम छह महीने पहले चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं की जा सकती। हालांकि, अगर विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग कर दिया जाए, तो यह नियम लागू नहीं होता।

संविधान के अनुच्छेद 174(2)(b) के अनुसार, राज्यपाल समय-समय पर विधानसभा को भंग कर सकते हैं। मंत्रिपरिषद यदि चाहती है, तो वह राज्यपाल से विधानसभा का कार्यकाल समाप्त करने के लिए भंग करने की सिफारिश कर सकती है। विधानसभा भंग होने के बाद, चुनाव आयोग को छह महीने के भीतर नए चुनाव कराने होते हैं।

चूंकि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है, यहां राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 लागू होता है। इस अधिनियम की धारा 6(2)(बी) कहती है कि उपराज्यपाल समय-समय पर विधानसभा को भंग कर सकते हैं। भले ही मुख्यमंत्री विधानसभा भंग करने की सिफारिश करे, लेकिन अंतिम निर्णय केंद्र सरकार (उपराज्यपाल के माध्यम से) का होगा।

 चुनाव आयोग के प्लान में नहीं है दिल्ली चुनाव

वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले नई विधानसभा का गठन जरूरी है, यानी चुनाव प्रक्रिया उस समय से पहले पूरी हो जानी चाहिए। चुनाव आयोग इसी तारीख के पीछे काम करता है। चुनाव कार्यक्रम बनाने से पहले मौसम, सुरक्षा बलों की उपलब्धता, त्योहारों, अधिकारियों के प्रशिक्षण और ईवीएम की खरीद जैसे कई पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है।

शेड्यूल को फाइनल करने से पहले, चुनाव आयोग की एक टीम संबंधित राज्य का दौरा करती है और प्रशासन और पुलिस से जानकारी लेती है। इस समय चुनाव आयोग जम्मू और कश्मीर में विधानसभा चुनाव करा रहा है। इसके बाद हरियाणा में चुनाव होंगे, फिर महाराष्ट्र और झारखंड की बारी आएगी। दिल्ली में चुनावों का कोई विचार अभी चुनाव आयोग के प्लान में नहीं है।