साल 1925 में चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने लखनऊ के पास काकोरी में एक ट्रेन से अंग्रेजों का खजाना लूट लिया। इस घटना के बाद अंग्रेजी हुकूमत बौखला गई और क्रांतिकारियों की तलाश शुरू हो गई। एक-एक कर कई क्रांतिकारी पकड़े गए। कुछ को फांसी दी गई, कुछ को कालापानी की सजा हुई, तो कुछ को लंबी कैद का सामना करना पड़ा। लेकिन चंद्रशेखर आज़ाद को पकड़ना अंग्रेजों के लिए नामुमकिन साबित हुआ, भले ही उन्होंने उनके सिर पर 5000 रुपये का इनाम रखा था।
काकोरी कांड में अशफाकउल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, शचींद्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुंदी लाल, मुरारी लाल, केशव चक्रवर्ती और बनवारी लाल जैसे कई क्रांतिकारी शामिल थे। घटना के 47 दिन बाद, अंग्रेजों ने यूपी के कई इलाकों में छापेमारी कर अधिकतर क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें से चार को फांसी दी गई, चार को कालापानी भेजा गया और 17 को लंबी कैद मिली। लेकिन चंद्रशेखर आज़ाद और कुंदन लाल को अंग्रेज कभी पकड़ नहीं पाए।
अल्फ्रेड पार्क क्या है किस्सा?
27 फरवरी 1931 की बात है। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आजाद अपने साथी सुखदेवराज के साथ बैठे थे। तभी एक मोटर गाड़ी आकर पार्क के सामने रुकी। उसमें से अंग्रेज अफसर नॉट बावर और दो सिपाही, सादे कपड़ों में नीचे उतरे।
सुखदेवराज ने लिखा है कि जैसे ही गाड़ी रुकी, उन्हें कुछ गड़बड़ का अहसास हुआ। अंग्रेज अफसर पिस्तौल निकालकर सीधा उनकी ओर बढ़ा और कड़कते हुए पूछा, “तुम लोग कौन हो? यहां क्या कर रहे हो?”
इसका जवाब आजाद और सुखदेवराज ने गोलियों से दिया। लेकिन तब तक अफसर भी गोली चला चुका था। उसकी गोली आजाद की जांघ में लगी, जबकि आजाद की चलाई गोली अफसर के कंधे में जा लगी।
आजाद ने जामुन के पेड़ की ओट ली
दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं। अंग्रेज अफसर ने मौलश्री के पेड़ की आड़ ले ली, जबकि उसके सिपाही नाले में छिप गए। उधर, आजाद और सुखदेवराज ने जामुन के पेड़ की ओट ली।
इसी बीच, आजाद को गोली लग गई। उन्होंने सुखदेवराज से कहा, “मुझे जांघ में गोली लगी है, तुम यहां से निकल जाओ।”
आदेश सुनते ही सुखदेवराज वहां से भाग निकले। पार्क से बाहर निकलकर, उन्होंने एक लड़के को पिस्तौल दिखाकर उसकी साइकिल ली और तेजी से चांद प्रेस पहुंच गए।
डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ने आजाद को देखा था
डिप्टी सुपरिंटेंडेंट विश्वेश्वर सिंह ने एक व्यक्ति को देखा और उन्हें शक हुआ कि वह चंद्रशेखर आज़ाद हो सकते हैं, जिन पर काकोरी कांड के बाद से फरारी का आरोप था और जिनके सिर पर पाँच हजार का इनाम था। उन्होंने इस बारे में सीआईडी के लीगल एडवाइज़र डालचंद को बताया।
सुबह करीब आठ बजे, डालचंद अपने सहायक सरनाम सिंह के साथ उस व्यक्ति की पहचान करने पार्क पहुँचे। जब उन्हें यकीन हो गया कि वह वास्तव में चंद्रशेखर आज़ाद ही हैं, तो उन्होंने सरनाम सिंह को अंग्रेज अफसर नॉट बावर को बुलाने भेज दिया।
विशेश्वर सिंह ने चलाई थी आजाद पर गोली
नॉट बावर ने अपने बयान में बताया कि वह कॉन्स्टेबल मोहम्मद जमान और गोविंद सिंह के साथ अल्फ्रेड पार्क पहुंचे। उन्होंने वहां दो संदिग्ध लोगों को देखा, जिनमें से एक के चंद्रशेखर आज़ाद होने का शक था। जब उन्होंने उनसे पूछा कि वे कौन हैं, तो उन दोनों ने तुरंत उन पर गोली चला दी। बावर ने भी जवाबी फायरिंग की, लेकिन जब वह अपनी मैगज़ीन बदल रहे थे, तब आज़ाद की गोली उनके हाथ में लगी, जिससे मैगज़ीन गिर गई। इसके बाद, वे एक पेड़ की ओर भागे। इस बीच, विशेश्वर सिंह भी रेंगते हुए झाड़ियों में पहुंचे और उन्होंने आज़ाद पर गोली चलाई। जवाब में, आज़ाद की गोली सीधे विशेश्वर सिंह के जबड़े में जा लगी।
आजाद के पास जाने की नहीं पड़ रही थी हिम्मत
नॉट बावर ने बताया कि जब भी मैं दिखता, आज़ाद तुरंत गोली चला देते। आखिरकार, वे पीठ के बल गिर गए। तभी एक कॉन्स्टेबल शॉटगन लेकर आया, लेकिन हमें यह नहीं पता था कि आज़ाद जिंदा हैं या नहीं। इसलिए मैंने कॉन्स्टेबल से कहा कि वह उनके पैर पर गोली चलाए। जैसे ही उसने गोली चलाई, मैं पास गया और देखा कि आज़ाद की मौत हो चुकी थी, जबकि उनका साथी भाग चुका था।
इस बीच, एसपी मेजर को गोलीबारी की खबर मिल चुकी थी, और उसने सशस्त्र रिजर्व पुलिस के जवानों को अल्फ्रेड पार्क भेजा। लेकिन तब तक मुठभेड़ खत्म हो चुकी थी। नॉट बावर के आदेश पर जब आज़ाद का शव लिया गया, तो उनके पास से 448 रुपये और 16 गोलियां मिलीं।
पेड़ों और कार पर लगी थीं गोलियां
चंद्रशेखर आजाद और नॉट बावर जिन पेड़ों के पीछे छिपे थे, उन पर गोलियों के निशान मिले थे। नॉट बावर की कार में भी गोलियां लगी थीं, जिससे तीन छेद हो गए थे। सिविल सर्जन लेफ्टिनेंट कर्नल टाउनसेंड ने आजाद का पोस्टमार्टम किया था।
आजाद के दाहिने पैर के निचले हिस्से में दो गोलियां लगी थीं, जिससे उनकी हड्डी (टीबिया बोन) टूट गई थी। एक गोली उनकी दाहिनी जांघ को छेदते हुए निकल गई थी। एक गोली उनके सिर के दाहिनी तरफ लगी थी, जो दिमाग तक पहुंच गई थी। एक और गोली उनके दाहिने कंधे को पार कर फेफड़े में जाकर फंस गई थी। आजाद का अंतिम संस्कार रसूलाबाद घाट पर किया गया था।