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100 रुपये रोज़ कमाने वाले पिता का बेटा बना भारतीय सेना का लेफ्टिनेंट

कहते हैं कि अगर इंसान की इच्छा मजबूत हो तो वह अपनी मेहनत और संकल्प से किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है तमिलनाडु के मदुरै जिले के एक छोटे से गाँव मेलुर के रहने वाले 23 वर्षीय कबीलन वी ने। गरीब परिस्थितियों से उठकर, कई बार असफलता का सामना करने के बावजूद, उन्होंने भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में अपना स्थान बना लिया है। भारतीय सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड में शनिवार को उनका सपना पूरा हुआ और वह भारतीय सेना का हिस्सा बने। यह सिर्फ कबीलन के लिए ही नहीं, बल्कि उनके परिवार के लिए भी गर्व का क्षण था।

गरीबी से उठकर अपनी मंजिल तक पहुंचने की कहानी

कबीलन के पिता वेट्रिसेल्वम पी, एक दिहाड़ी मजदूर थे जो रोज़ सिर्फ 100 रुपये कमाते थे। हालांकि अब वह लकवाग्रस्त हो चुके हैं और व्हीलचेयर पर हैं, लेकिन अपने बेटे की इस बड़ी सफलता से वह बेहद खुश हैं। कबीलन की माँ का निधन तीन साल पहले कैंसर और कोविड-19 के चलते हो गया था। फिर भी कबीलन ने कभी हार नहीं मानी। उनका कहना है, “मैं कई बार असफल हुआ, लेकिन मैंने हार मानने का नाम नहीं लिया। मुझे सेना में जाना था, और आखिरकार आज यह सपना पूरा हुआ।”

कबीलन ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “यह मेरी व्यक्तिगत जीत नहीं है, यह उन सभी लोगों के लिए है जो भारतीय सेना में शामिल होने का सपना देखते हैं। अगर मैं, एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा, जो महज 100 रुपये रोज़ कमाता था, ऐसा कर सकता हूँ, तो कोई भी इसे कर सकता है।” उनका यह संदेश है कि अगर इरादा मजबूत हो और मेहनत सच्ची हो, तो कोई भी सपना मुश्किल नहीं होता।

 सरकारी स्कूल से लेकर सेना तक का सफर

कबीलन की शुरुआत सरकारी स्कूल से हुई थी, जहां से उन्होंने अपनी पढ़ाई शुरू की और फिर अन्ना विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री भी हासिल की। हालांकि भारतीय सेना में शामिल होने के लिए उन्होंने कई बार कोशिश की, लेकिन पहले तीन प्रयासों में वह सफल नहीं हो पाए। लेकिन कबीलन ने कभी हार नहीं मानी और लगातार कोशिशें जारी रखीं।

कबीलन की जिंदगी में उतार-चढ़ाव लगातार रहे हैं। अपनी मां को खोने के बाद, उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी भी उठाई। उनका छोटा भाई सिविल सेवा की तैयारी कर रहा था और पिता की तबीयत भी ठीक नहीं थी। इस दौरान कबीलन ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल) के तहत वाटरबोट सुपरवाइज़र के रूप में भी काम करना शुरू किया, ताकि घर का खर्च चल सके।

कड़ी मेहनत से पूरा किया अपना सपना

कबीलन के गुरु, रिटायर्ड सब लेफ्टिनेंट सुगल एसन बताते हैं कि कबीलन को न सिर्फ अपने सपने को पूरा करना था, बल्कि परिवार का भी पालन-पोषण करना था। चेन्नई और कन्याकुमारी में आई बाढ़ के दौरान कबीलन ने अपनी टीम के साथ मिलकर 200 से ज्यादा लोगों की जान बचाई। नौकरी और पढ़ाई के बीच इस तरह का संतुलन रखना आसान नहीं था, लेकिन कबीलन ने सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक काम किया और फिर शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक पढ़ाई की। इस मेहनत के बाद ही वह भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बने।