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दलबदल से कांग्रेस की रणनीति गड़बड़ाई, भूपेन्द्र के कद ने भाजपा की ताकत बढ़ाई

अलवर। अहीरवाल की सीट अलवर लोकसभा क्षेत्र में नामांकन दाखिल करने का कार्य पूरा होने के साथ ही चुनाव प्रचार रंगत पर आने लगा है। वैसे तो इस सीट का चुनाव परिणाम बड़े नाम में छिपा है, लेकिन नेताओं के भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस का चुनावी रणनीति गड़बड़ा गया है। अहीर बहुल अलवर लोकसभा सीट पर भाजपा एवं कांग्रेस ने यादव प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। पार्टी में बड़े कद ने भाजपा प्रत्याशी की ताकत बढ़ाई है, वहीं कांग्रेस भी युवाओं के भरोसे अपनी चुनावी नैया पार लगाने की आस बांधे बैठी है। अलवर सीट से भाजपा ने केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव और कांग्रेस ने युवा विधायक ललित यादव को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं बसपा के फजल हुसैन भी इस चुनाव में अपनी उपस्थिति जताने को बेताब हैं।

अलवर लोकसभा क्षेत्र में पहले चरण 19 अप्रेल को मतदान होना है। वैसे तो अलवर सीट पर भाजपा एवं कांग्रेस में सीधा मुकाबला है, लेकिन बसपा की मौजूदगी पर दोनों ही दलों की नजरें टिकी हैं। भाजपा को अपने अपने प्रत्याशी भूपेन्द्र यादव के बड़े राजनीतिक कद का लाभ मिलता भी दिख रहा है। भाजपा प्रत्याशी के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनका नामांकन कराने के लिए खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा सहित अनेक बड़े नेता आए। राज्यसभा सदस्य भूपेंद्र यादव पहली बार मतदाताओं की कसौटी पर कसे जाएंगे। कांग्रेस के ललित यादव का नामांकन पूर्व केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली सहित जिले के पार्टी विधायक एवं प्रमुख नेताओं की मौजूदगी में दाखिल कराया गया।

बड़े कद से भाजपा एकजुट, प्रचार में मिल रहा लाभ

बड़े राजनीतिक कद के नेता भूपेन्द्र यादव को अलवर से प्रत्याशी बनाए जाने का भाजपा को इस चुनाव में बड़ा लाभ भी मिलता दिख रहा है। यादव की उम्मीदवारी का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि कई गुटों में बटी भाजपा इस चुनाव में एकजुट दिखाई पड़ रही है। साथ ही बूथ लेवल से लेकर बड़े जनप्रतिनिधि तक चुनाव में जुटे हैं। वहीं भूपेन्द्र यादव के राजनीतिक अनुभव का भी चुनाव प्रचार की दिशा तय करने में लाभ मिल रहा है। शुरूआती दौर में भाजपा का चुनाव प्रचार व्यवस्थित दिखाई पड़ रहा है।

नेताओं के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को लगा झटका

लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की घोषणा होते ही कांग्रेस में नेताओं के पाला बदलने का दौर शुरू हो गया। टिकट नहीं मिलने से नाराज डॉ. करणसिंह यादव ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। डॉ. यादव अलवर से दो बार सांसद एवं बहरोड से दो बार विधायक रह चुके हैं। वे यादव महासभा के पूर्व में प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। इस कारण अलवर जिले की राजनीति एवं अहीर मतों पर उनकी अच्छी पकड़ रही है। वहीं जिला प्रमुख बलबीर छिल्लर तथा अनेक प्रधान, नगर पालिका चेयरमैन, पार्षदों एवं पदाधिकारियों के भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। नेताओं का कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने का दौर अभी थमा नहीं है। नेताओं के पाला बदलने से कांग्रेस की चुनावी रणनीति गड़बड़ा गई है। यही कारण है कि कांग्रेस प्रत्याशी को चुनाव प्रचार को पटरी पर लाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है।

नजर अभी अहीर वोटों के विभाजन पर

इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा एवं कांग्रेस ने यादव वर्ग से प्रत्याशी उतारे हैं। हालांकि दोनों प्रमुख दलों की ओर से यादव वर्ग से प्रत्याशी 2018 के लोकसभा उप चुनाव के बाद उतारे हैं। पिछले ढाई दशक से भाजपा अलवर में यादव वर्ग के प्रत्याशी पर दांव लगाती रही है। वहीं कांग्रेस डेढ़ दशक से अपने दिग्गज नेता पूर्व केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह को चुनाव मैदान में उतारती रही है। लेकिन इस बार कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव कर यादव पर दांव लगाया है। इस कारण दोनों ही प्रमुख दलों की नजरें अहीर मतों के विभाजन पर टिकी हैं। कांग्रेस का जोर इस बार यादव मतों में विभाजन पर है।

बसपा ने फजल हुसैन को उतार चिंता बढ़ाई

बसपा ने इस बार कांग्रेस नेता रहे फजल हुसैन को लोकसभा चुनाव में अलवर से अपना प्रत्याशी बनाया है। अलवर लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोट करीब 3 लाख हैं, इसी को ध्यान में रखकर बसपा ने फजल हुसैन पर दांव पर खेला है। फजल बड़े राजनीतिक परिवार से हैं। उनके पिता चौधरी तैयब हुसैन इकलौते ऐसे नेता थे जो तीन राज्यों राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में मंत्री रहे और लोकसभा के सदस्य भी रहे। फजल हुसैन की बहन जाहिदा पिछली गहलोत सरकार में मंत्री रही, हांलाकि जाहिदा इस बार चुनाव हार गईं। फजल भी 2008 और 2013 में तिजारा सीट से विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे हैं। इस बार वे कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे। इसके लिए विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल भी हुए लेकिन टिकट नहीं मिला।

अलवर सीट पर वोटों का गणित

अलवर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीट हैं, इनमें पांच सीटों अलवर ग्रामीण, राजगढ़-लक्ष्मणगढ़, रामगढ़, किशनगढ़बास, मुण्डावर  पर कांग्रेस का कब्जा है जबकि भाजपा तीन सीटों अलवर शहर, बहरोड, तिजारा पर काबिज है। वैसे अलवर सीट अहीर बहुल सीट मानी जाती है। यहां साढ़े तीन लाख यादव, तीन लाख ब्राहमण, दो लाख वैश्य, साढ़े तीन लाख एससी, एक लाख एसटी, एक लाख जाट, एक लाख गुर्जर, तीन लाख मुस्लिम मतदाता हैं।

अलवर में कांग्रेस का रहा दबदबा

आजादी के बाद अलवर लोकसभा सीट परम्परागत रूप से कांग्रेस की मानी जाती रही है, वर्ष 1952 से अब तक अलवर में हुए 18 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 11 में जीत दर्ज कराई है, वहीं भाजपा 4 लोकसभा चुनाव में ही जीत हासिल कर सकी है। एक-एक बार जनता पार्टी, जनता दल और निर्दलीय भी जीत दर्ज करा चुके हैं। 1991 के बाद से यहां एक बार भाजपा एक बार कांग्रेस जीत रही है। 2004 में डा. करण सिंह लोकसभा का चुनाव जीते थे लेकिन 2009 में जीतेंद्र सिंह ने खुद टिकट ले लिया। जीतेंद्र सिंह तब जीते लेकिन 2014 में हार गए। 2018 में उपचुनाव में फिर करण सिंह को खड़ा कर दिया गया। वे जीत गए लेकिन 6 महीने बाद ही 2019 के आम चुनाव में फिर जीतेंद्र सिंह ने टिकट ले लिया। जीतेंद्र सिंह फिर हार गए।

अलवर में जीतेंद्र सिंह ही कांग्रेस आलाकमान

अलवर में कांग्रेस फूलबाग से ही चलती है। फूलबाग भंवर जीतेंद्र सिंह का निवास है। विधानसभा हो या लोकसभा, टिकट जीतेंद्र सिंह ही तय करते हैं। विधानसभा चुनाव में जिले की लगभग सभी सीटें पर उनकी ही राय से टिकट बंटे और कटे। कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने वाले डा. करण सिंह का यही दर्द है। करण सिंह का दोनों बार सांसद रहते हुए टिकट कटा। जीतेंद्र सिंह के आशीर्वाद से ही टीकाराम जूली नेता प्रतिपक्ष बने। तब यही माना जा रहा था कि जीतेंद्र सिंह एक बार फिर लोकसभा चुनाव के लिए सोशल इंजीनियरिंग कर रहे हैं। मगर बाद में जीतेंद्र सिंह पीछे हट गए। तब करण सिंह को भरोसा था कि उन्हे मौका मिलेगा लेकिन टिकट मिला पहली बार के विधायक ललित यादव को।

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