दिल्ली चुनाव में आप-कांग्रेस को बड़ा झटका, उमर अब्दुल्लाह ने लिखा- और लड़ो आपस में..

भगवा सुनामी में बिखरा झाड़ू! केजरीवाल की रणनीति फेल, हार के 6 बड़े कारण!

दिल्ली विधानसभा चुनावों की वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है, और शुरुआती नतीजे आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए झटका देने वाले हैं। चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, सुबह 9:37 बजे तक भारतीय जनता पार्टी (BJP) 32 सीटों पर आगे थी, जबकि AAP सिर्फ 14 सीटों पर। वहीं, आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, BJP करीब 50 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है और AAP 19 सीटों पर आगे चल रही है। यानी, साफ दिख रहा है कि आम आदमी पार्टी को इस चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ सकता है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि अरविंद केजरीवाल को जनता की सहानुभूति क्यों नहीं मिली, जबकि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को मिली? दोनों ही मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए जेल गए और फिर बाहर आए, लेकिन दिल्ली की जनता ने केजरीवाल के लिए वैसा समर्थन नहीं दिखाया, जैसा झारखंड में सोरेन के लिए देखा गया।

इसके अलावा, AAP सरकार के दो और बड़े मंत्री भी जेल गए, फिर भी जनता उनके साथ खड़ी नजर नहीं आ रही। आखिर ऐसा क्यों हुआ? क्या वजह है कि आम आदमी पार्टी को इतना बड़ा झटका लग रहा है? आइए, इस हार के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश करते हैं।

1- अरविंद केजरीवाल के समर्थक भी अनावश्यक आरोपों और झूठ से काफी नाराज हो गए थे।

अरविंद केजरीवाल अक्सर अपने विरोधियों पर तरह-तरह के आरोप लगाते रहते हैं, लेकिन कई बार उन्हें अपने बयानों पर माफी भी मांगनी पड़ी है। इससे उनकी छवि एक ऐसे नेता की बन गई है, जिसकी बातों पर भरोसा करना मुश्किल हो गया है। ताजा मामला तब सामने आया जब उन्होंने हरियाणा सरकार पर आरोप लगाया कि वह दिल्ली में जानबूझकर जहरीला पानी भेज रही है।

केजरीवाल ने कहा कि हरियाणा सरकार दिल्ली में हाहाकार मचाना चाहती है और लोगों की जान खतरे में डाल रही है। उन्होंने दावा किया कि दिल्ली जल बोर्ड के इंजीनियरों ने बॉर्डर पर ही इस जहरीले पानी को रोक लिया, जिससे हजारों लोगों की जान बच गई।

हालांकि, उनका यह बयान उनके कट्टर समर्थकों को भी पसंद नहीं आया। इसके जवाब में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी खुद दिल्ली बॉर्डर पर पहुंचे और यमुना का पानी पीकर केजरीवाल के आरोपों को झूठा साबित कर दिया।

2-शीशमहल से उनकी इमेज को काफी चोट लगी।

अरविंद केजरीवाल जब राजनीति में आए थे, तब उन्होंने कहा था कि वो वीवीआईपी कल्चर खत्म करेंगे। उन्होंने साफ तौर पर गाड़ी, बंगला और सुरक्षा लेने से इनकार किया था। लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने न सिर्फ महंगी गाड़ियां लीं, बल्कि केंद्र सरकार से पहले से ही जेड प्लस सुरक्षा होने के बावजूद पंजाब सरकार की टॉप सिक्योरिटी भी ले ली।

सबसे ज्यादा विवाद तब हुआ जब उन्होंने अपने लिए एक बेहद लग्जरी घर बनवाया। मीडिया ने इसे “शीशमहल” कहा और उनकी सादगी वाली छवि को बड़ा झटका लगा। सीएजी की रिपोर्ट में भी सीएम आवास पर हुए भारी खर्च पर सवाल उठाए गए। इतना ही नहीं, दिल्ली सरकार पर आरोप लगे कि उसने सीएजी की कई रिपोर्ट्स को विधानसभा में पेश ही नहीं किया। इस पर हाईकोर्ट ने भी दिल्ली सरकार की आलोचना की।

3-  कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच का बटवारा

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र चुनावों के दौरान “बंटे तो कटे” का नारा दिया था। उनका यह नारा बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए अत्याचारों के संदर्भ में था, जिसमें उन्होंने भारत के हिंदुओं से एकजुट रहने की अपील की थी।

इस नारे से प्रेरित होकर कई अन्य राजनीतिक दल और समूह भी एकजुट हो गए। लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस मिलकर चुनाव नहीं लड़ सके। जबकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने अलग-अलग लड़कर इसका नुकसान देखा था।

हरियाणा में कांग्रेस बहुत कम अंतर से सरकार बनाने से चूक गई थी। इसके बावजूद दिल्ली में AAP और कांग्रेस ने “बंटेंगे तो कटेंगे” नारे से सीख नहीं ली और अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया।

4-महिलाओं को 2100 रुपये देने की शुरुआत नहीं हो पाई।

झारखंड में सीएम हेमंत सोरेन और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल, दोनों ने विधानसभा चुनावों में समान मुद्दों पर चुनाव लड़ा। लेकिन जहां झारखंड में झामुमो को जीत मिली, वहीं दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सफलता नहीं मिली।

झारखंड में झामुमो की जीत की एक बड़ी वजह महिलाओं को हर महीने मिलने वाली आर्थिक सहायता योजना मानी जा रही है। दिलचस्प बात यह है कि अरविंद केजरीवाल भी पिछले एक साल से दिल्ली में ऐसी ही योजना लागू करना चाहते थे, लेकिन कर नहीं सके। इससे जनता के बीच यह संदेश गया कि जब वे अब तक इसे लागू नहीं कर पाए, तो दोबारा सीएम बनने के बाद कैसे कर पाएंगे?

अगर दिल्ली सरकार यह योजना चुनाव से एक महीने पहले ही लागू कर देती, तो शायद चुनावी नतीजे कुछ और होते।

5- दिल्ली में गंदे पानी की आपूर्ति और राजधानी की सफाई की हालत काफी खराब हो गई है

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में फ्री सुविधाओं (फ्रीबीज) की शुरुआत करके लगातार चुनाव जीते। लेकिन जनता को बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी झेलनी पड़ी। सबसे बड़ी समस्या थी साफ पानी की सप्लाई। गर्मियों में लोग पानी के लिए परेशान थे, लेकिन सरकार टैंकर माफिया के आगे बेबस दिखी।

केजरीवाल ने 24 घंटे साफ पानी देने का वादा किया था, मगर हकीकत यह थी कि लोगों को गंदा पानी भी समय पर नहीं मिल रहा था। दूसरी तरफ, सफाई व्यवस्था भी पूरी तरह चरमरा गई थी। क्योंकि एमसीडी पर भी आम आदमी पार्टी का ही शासन था, इसलिए उनके पास बहाने बनाने का कोई मौका नहीं था।

धीरे-धीरे लोगों का आम आदमी पार्टी पर से भरोसा कम होने लगा, क्योंकि वादे तो किए गए थे, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही थी।

6- लोगों को इस बात पर संदेह था कि केजरीवाल ही अगले मुख्यमंत्री बनेंगे

अरविंद केजरीवाल ने जिन कोर्ट के आदेशों की वजह से मुख्यमंत्री पद छोड़ा था, वो अभी भी उन पर लागू थे। आम आदमी पार्टी ने आतिशी को सीएम पद की जिम्मेदारी तो दी, लेकिन जनता यह समझ रही थी कि चुनाव जीतने के बाद भी केजरीवाल मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे। और अगर किसी तरह बन भी गए, तो कानूनी अड़चनों के कारण कोई खास काम नहीं कर पाएंगे। ऐसे में दिल्ली की समस्याएं ज्यों की त्यों बनी रहेंगी। अगर पार्टी ने केजरीवाल की बजाय किसी और नेता को सीएम उम्मीदवार बनाया होता, तो शायद नतीजे कुछ और हो सकते थे।

 

यह भी पढ़े:

दिल्ली चुनाव में आप-कांग्रेस को बड़ा झटका, उमर अब्दुल्लाह ने लिखा- और लड़ो आपस में..