Umar Khalid Bail: दिल्ली हाई कोर्ट ने पूर्व जेएनयू छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका पर 7 अक्टूबर को सुनवाई की तारीख तय की है। खालिद पर फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के पीछे कथित बड़े साजिश का आरोप है। इस मामले में उनके खिलाफ आतंकवाद निरोधक कानून UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया है।
हाई कोर्ट ने इसी तारीख को छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम, ‘यूनाइटेड अगेंस्ट हेट’ के संस्थापक खालिद सैफी, और अन्य सह-आरोपियों की लंबित जमानत याचिकाओं की भी सुनवाई का आदेश दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली पुलिस ने जमानत याचिका पर अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया है।
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बेंच ने सभी पक्षों को इस मामले में दो सप्ताह के भीतर लिखित सबमिशन दाखिल करने का निर्देश दिया। बेंच में जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस गिरीश काथपालिया शामिल हैं। कोर्ट ने कहा, “फिर से सुनवाई 7 अक्टूबर को होगी। पार्टियों को लिखित सबमिशन दाखिल करने के लिए निर्देशित किया जाता है।”
कड़कड़डूमा कोर्ट ने खारिज कर दिया था उमर की जमानत याचिका
इससे पहले कड़कड़डूमा कोर्ट ने 28 मई को उमर खालिद की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। उमर खालिद पर दिल्ली पुलिस ने 2020 के दिल्ली दंगों में कथित तौर पर बड़ी साजिश का आरोप लगाया है, जिसके तहत उन्हें गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया था। वर्तमान में, उमर खालिद जेल में बंद हैं।
पिछली सुनवाई के दौरान, उमर खालिद के वकील त्रिदीप पेस ने दिल्ली पुलिस की चार्जशीट पर सवाल उठाए थे। पेस ने कहा था कि चार्जशीट में उमर खालिद का नाम इस प्रकार से प्रयोग किया गया है जैसे कोई मंत्र हो और इससे सच्चाई साबित नहीं होगी। उन्होंने यह भी दावा किया था कि मीडिया द्वारा उमर खालिद के खिलाफ एक ट्रायल चलाया गया है।
सुनवाई के दौरान पेस ने कोर्ट से आग्रह किया कि जमानत पर फैसला लेते समय सभी गवाहों और दस्तावेजों का उचित परीक्षण किया जाना चाहिए। उन्होंने भीमा कोरेगांव मामले में वर्नोन गोंजाल्वेस और शोमा सेन के उदाहरण देते हुए उमर खालिद को जमानत देने की मांग की थी।
जिसके बाद दिल्ली पुलिस की ओर से स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर अमित प्रसाद ने जमानत याचिका पर जवाब देते हुए कहा था कि यह मामला किसी भी गड़बड़ी का नहीं है और इसे मुक्त करने की याचिका नहीं माना जा सकता।
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क्या है उमर खालिद का पक्ष?
उमर खालिद की ओर से उनकी कानूनी टीम ने यह तर्क दिया था कि इस मामले में अन्य आरोपियों के खिलाफ भी गंभीर आरोप हैं, लेकिन वे जमानत पर हैं और दिल्ली पुलिस ने उन्हें आरोपी भी नहीं बनाया था। पेस ने समानता के सिद्धांत को रेखांकित करते हुए कहा था कि जिन तथ्यों के आधार पर अन्य आरोपियों को जमानत मिली है, वही तथ्य उमर खालिद के मामले में भी लागू होते हैं। उन्होंने कहा था कि उमर खालिद के खिलाफ कोई आतंकी कानून की धारा नहीं लगाई गई है।
बता दें उमर खालिद ने पहले अपनी जमानत याचिका को सुप्रीम कोर्ट में दायर किया था, लेकिन फिर उन्होंने इसे वापस ले लिया है और ट्रायल कोर्ट में नई याचिका दायर करने का निर्णय लिया है। इससे पहले, 18 अक्टूबर 2022 को भी दिल्ली हाईकोर्ट ने भी उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।