दिल्ली, जो कभी बीजेपी के लिए एक पहेली थी, अब आखिरकार बीजेपी के हाथ लग चुकी है। अगर हम कहें कि बीजेपी की मेहनत अब रंग लाई है, तो गलत नहीं होगा। अब पीएम मोदी और बीजेपी को दिल्ली में जीत मिली है, और यह वही दिल्ली है जो करीब 27 साल बाद बीजेपी की सरकार में आई है। तो, सवाल उठता है—अब मोदी के लिए क्या बचा है? क्या दिल्ली में जीतने के बाद उनकी राजनीति में कोई कसर रह गई है?
दिल्ली चुनाव का इतिहास: मोदी की राह में एक बड़ी चुनौती
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी का इतिहास बहुत उतार-चढ़ाव भरा रहा है। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने देशभर में शानदार जीत हासिल की, तब दिल्ली में बीजेपी के लिए कुछ खास नहीं बदला। 2015 में अरविंद केजरीवाल की पार्टी AAP ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूरी तरह से BJP को मात दी थी। दिल्ली में 70 विधानसभा सीटें थीं, जिनमें से AAP ने 67 सीटें जीत ली थीं। यह बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका था।
दिल्ली में यह हार इसलिए भी चौंकाने वाली थी, क्योंकि एक साल पहले यानी 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली की सातों सीटें जीत ली थीं। इस तरह, बीजेपी का दिल्ली में संघर्ष और केजरीवाल की पार्टी की विजय का सिलसिला 2015 से शुरू हुआ। इसके बाद केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली में अपनी पकड़ मजबूत की और लगातार मोदी सरकार के लिए चुनौती बन गई।
पीएम मोदी की राजनीति में एक और मेडल
कई राज्य चुनावों में बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की, लेकिन दिल्ली का मसला एक अलग ही था। 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर ने पूरे देश में बीजेपी को 303 सीटों पर जीत दिलाई। दिल्ली में भी बीजेपी को सातों लोकसभा सीटें मिली थीं। लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान जब भी बीजेपी चुनावी मैदान में उतरी, दिल्ली में उनका जीतने का सपना पूरा नहीं हो सका। चाहे 2015 हो या फिर 2020, दिल्ली में बीजेपी की रणनीति हर बार फ्लॉप रही। 2020 में भी दिल्ली विधानसभा में बीजेपी को बुरी हार मिली थी और AAP ने 70 में से 62 सीटें जीतीं। यह बात बीजेपी के लिए एक बड़ा सवाल बन गई थी कि आखिर पीएम मोदी के नेतृत्व में देश भर में पार्टी इतनी मजबूत हो सकती है, लेकिन दिल्ली में क्यों नहीं। यह मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती थी। हालांकि, दिल्ली में हार के बावजूद पीएम मोदी ने कई राज्यों में पार्टी की जीत के लिए लगातार प्रयास किए।
केजरीवाल खेमे का अब क्या होगा?
2020 की जीत के बाद अरविंद केजरीवाल का कद लगातार बढ़ता गया। पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और गुजरात जैसे राज्यों में केजरीवाल ने चुनावी दांव खेले और अपनी पार्टी का विस्तार करना शुरू कर दिया। पंजाब में AAP की सरकार बनना एक बड़ी कामयाबी थी। अब केजरीवाल को मोदी का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी माना जाने लगा था। जब केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता पर फिर से कब्जा किया, तो यह सवाल बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा अहम था—क्यों दिल्ली में बीजेपी को जीत नहीं मिल रही?
बीजेपी का वनवास खत्म
बीजेपी एक ऐसी पार्टी है जो हार के बाद भी हार मानने का नाम नहीं लेती। बीजेपी की रणनीति में हार की समीक्षा करना और फिर नई ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरना शामिल है। यह तरीका पार्टी की सफलता का बड़ा कारण बन चुका है। जैसे ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने लगातार मेहनत की और अपनी स्थिति मजबूत की। अगर हम बात करें दक्षिण भारत की, तो बीजेपी ने यहां भी शून्य से अपनी शुरुआत की और धीरे-धीरे अपनी पकड़ बनाई। हालांकि, यह यात्रा आसान नहीं रही, लेकिन पार्टी ने अपनी मेहनत से कई राज्यों में सफलता हासिल की। यह सब पीएम मोदी की लोकप्रियता और उनकी नेतृत्व क्षमता का नतीजा था। उनका चेहरा ही पार्टी के लिए सबसे बड़ा हथियार बन गया था।
दिल्ली की जीत के बाद अब मोदी के लिए बाकी क्या बचा है?
अब दिल्ली में बीजेपी की वापसी हो चुकी है। करीब 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता पर बीजेपी काबिज हुई है। यह जीत पीएम मोदी के नेतृत्व में संभव हुई है। यह उनके राजनीतिक सफर का एक बड़ा मील का पत्थर है। सवाल यह है कि अब पीएम मोदी के लिए क्या बाकी रह गया है? दिल्ली में जीत के बाद क्या मोदी के लिए कोई और चुनौती बची है? क्या वह अन्य राज्यों में भी पार्टी की जीत सुनिश्चित करेंगे?दिल्ली की जीत के साथ पीएम मोदी की लोकप्रियता और भी बढ़ी है, लेकिन यह देखना अब दिलचस्प होगा कि वे अगले चुनावों में अपनी राजनीति को किस दिशा में लेकर जाते हैं।
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