अमित शाह आंबेडकर

अमित शाह के आंबेडकर पर दिए गए बयान ने भारतीय राजनीति में मचाया कोहराम, समझे क्या है दलित वोटबैंक की राजनीति

संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बाबा साहेब आंबेडकर को लेकर दिए बयान के बाद सियासत गरमाई हुई है। कांग्रेस ने शाह पर कई आरोप लगाए हैं और इस बयान के कई राजनीतिक मतलब निकाले जा रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां आंबेडकर समर्थक बनने का दिखावा करके दलित वोट बैंक पर कब्जा करना चाहती हैं।

डॉ. भीमराव आंबेडकर जिनका नाम दुनिया भर में बाबा साहेब के तौर पर जाना जाता है वो केवल भारतीय संविधान के निर्माता ही नहीं बल्कि राजनीति के भी एक बड़े प्रतीक बन चुके हैं। दलित और शोषित वर्ग उन्हें अपना उद्धारक मानते हैं। यही वजह है कि जिन सियासी दलों और विचारधाराओं के खिलाफ आंबेडकर अपने जीवन में खड़े थे अब वे भी अब उन्हें अपनी राजनीति में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं।

आंबेडकर का नाम लेना बना ट्रेंड: अमित शाह 

Amit shah on ambedkar

संविधान के लागू होने के 75 साल पूरे होने के मौके पर संसद में चार दिनों तक संविधान पर गहरी चर्चा हुई, जिसमें डॉ. आंबेडकर का अहम योगदान रहा। इस दौरान संविधान की शपथ ली गई और आंबेडकर के नाम का इस्तेमाल राजनीति में किया गया। इसी बीच गृहमंत्री अमित शाह के एक बयान ने सियासी महकमे में हलचल मचा दी है।

अमित शाह ने डॉ. आंबेडकर की विरासत पर बोलते हुए कहा, ‘आजकल आंबेडकर का नाम लेना एक ट्रेंड बन गया है। आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर… अगर लोग भगवान का नाम लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग में रहते।’ इस बयान के बाद राजनीतिक माहौल गरमा गया है।

आंबेडकर का नाम लेने के साथ उनके विचारों को भी समझे: शाह 

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अमित शाह ने कहा कि ‘हमें खुशी है कि लोग आंबेडकर का नाम लेते हैं, लेकिन आंबेडकर जी के प्रति आपके विचार क्या हैं, यह भी अहम है। आंबेडकर जी ने क्यों देश की पहली कैबिनेट से इस्तीफा दिया? उन्होंने कई बार कहा कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ जो व्यवहार हुआ उससे वह असंतुष्ट थे। वह सरकार की विदेश नीति और आर्टिकल 370 से भी असहमत थे इसलिए उन्होंने मंत्रिमंडल छोड़ने का निर्णय लिया। उन्हें आश्वासन दिया गया था, लेकिन जब वह पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया।’

अमित शाह ने आगे कहा कि ‘आंबेडकर का नाम लेना अब एक फैशन बन गया है। लोग आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर इतना नाम लेते हैं, अगर भगवान का नाम लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता।’ इस बयान पर कांग्रेस और कई विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई है और अमित शाह से माफी मांगने की मांग की है। इन दलों के नेताओं ने संसद में विरोध प्रदर्शन किया, और मल्लिकार्जुन खरगे ने तो पीएम मोदी से अमित शाह को अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने तक की भी मांग की है।

मेरे इस्तीफे से नहीं बदलेगी कांग्रेस की स्तिथि: अमित शाह

राज्यसभा में आंबेडकर पर अपनी टिप्पणी को लेकर अमित शाह ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सफाई दी। उन्होंने कहा कि संसद में हर बात तथ्यों और सच्चाई पर आधारित होनी चाहिए, और बीजेपी के नेताओं ने यही किया है। जब यह साबित हो गया कि कांग्रेस आंबेडकर, आरक्षण और संविधान के खिलाफ है तो कांग्रेस ने अपनी पुरानी आदत अपनाते हुए बयानों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना शुरू कर दिया है। खरगे मेरे इस्तीफे की मांग कर रहे हैं, और अगर उन्हें खुशी मिलती है तो मैं इस्तीफा भी दे सकता हूं, लेकिन इससे उनका कुछ भी नहीं बदलेगा। उन्हें अगले 15 साल तक जहां हैं वहीं बैठना होगा मेरे इस्तीफे से उनकी कोई समस्या हल नहीं होने वाली।

पीएम मोदी ने पोस्ट करते हुए किया बचाव 

संविधान पर शुरू हुई चर्चा अब बाबा साहेब आंबेडकर के अपमान तक पहुंच गई है। अमित शाह के बयान पर कांग्रेस ने X पर पोस्ट करते हुए कहा कि बीजेपी और संघ के नेताओं के मन में आंबेडकर के लिए बहुत नफरत है। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जो लोग मनुस्मृति को मानते हैं, उन्हें आंबेडकर से परेशानी होना स्वाभाविक है।

इस मुद्दे को बढ़ते हुए विपक्ष के खिलाफ जवाब देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सामने आना पड़ा। उन्होंने सोशल मीडिया पर लगातार छह पोस्ट करके कांग्रेस को घेरते हुए सफाई दी।

आंबेडकर के खिलाफ रही कांग्रेस – पीएम मोदी

पीएम मोदी ने कहा कि संसद में गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस का असली चेहरा सामने लाया, जिसमें उन्होंने बताया कि कांग्रेस ने आंबेडकर का अपमान किया और एससी-एसटी समुदाय के साथ हमेशा भेदभाव किया। अब कांग्रेस इस मुद्दे पर नाटक कर रही है। पीएम मोदी ने ये भी कहा कि कांग्रेस के पास डॉ. आंबेडकर के खिलाफ किये गए कई पापों की लंबी सूची है, जिसमें उन्हें दो बार चुनाव में हार भी मिली थी।

आंबेडकर तो है बहाना असली निशाना दलित वोटर?

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आंबेडकर के अपमान और सम्मान को लेकर जो राजनीति चल रही है, उसमें बीजेपी कह रही है कि डॉ. आंबेडकर के जीवनकाल और उनके निधन के बाद भी कांग्रेस ने हमेशा उनका अपमान किया। वहीं कांग्रेस यह जताने की कोशिश कर रही है कि बीजेपी के दिल में आंबेडकर और संविधान के लिए कोई श्रद्धा नहीं है। दोनों पार्टियां आंबेडकर का नाम लेकर उस बड़े वोटबैंक को अपनी ओर खींचने में लगी हैं, जो बाबा साहेब को समाज और राजनीति के मसीहा के रूप में मानते हैं।

डॉ. आंबेडकर ने न केवल दलितों, बल्कि शोषित और पीड़ित वर्गों को भी नई दिशा दी और संविधान के माध्यम से उन्हें सम्मान दिया। इसलिए आंबेडकर के अपमान और सम्मान का मुद्दा आजकल दलित और अतिपिछड़ों के वोट को अपनी ओर खींचने की सियासी रणनीति बन चुका है। संसद से लेकर सड़कों तक यह सियासी संघर्ष तेज हो गया है, क्योंकि आज देश में दलित समुदाय एक मजबूत राजनीतिक ताकत बन चुका है।

क्या कहती है चुनावी गणित ?

2011 की जनगणना के अनुसार, देश में दलितों की आबादी करीब 16.63 प्रतिशत है, जो लगभग 20.14 करोड़ लोग हैं। देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अनुसूचित जातियां पाई जाती हैं, जो कुल 1241 जातीय समूहों में बंटी हुई हैं। इनमें से 76.4 प्रतिशत दलित ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, जबकि 23.6 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में रहते हैं।

भारत में कुल 543 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से 84 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। हालांकि इनका सियासी प्रभाव 150 से ज्यादा सीटों पर है। सीएसडीएस के आंकड़ों के अनुसार अगर दलित बहुल लोकसभा सीटों पर वोटिंग पैटर्न को देखें तो बीजेपी को 2024 में 31 प्रतिशत दलित वोट मिले। जबकि 2019 में यह आंकड़ा 34 प्रतिशत था, यानी बीजेपी को 3 प्रतिशत कम वोट मिले और उसके सहयोगी दलों को भी 2 प्रतिशत वोटों का नुकसान हुआ। इस बार कांग्रेस को 19 प्रतिशत दलित वोट मिले हैं जिससे कांग्रेस को फायदा हुआ। इसके साथ ही कांग्रेस के सहयोगी दलों को भी दलित वोटों का अच्छा समर्थन मिला खासकर सपा को, जिसके कारण बीजेपी की सीटें कम हुईं।

दलित बहुल 156 सीटों के नतीजों पर नजर डालें तो विपक्षी गठबंधन ने 93 सीटें जीतीं, जबकि एनडीए को 57 सीटें मिलीं। इन 156 सीटों में, 2019 के मुकाबले विपक्ष को 53 सीटों का फायदा हुआ और एनडीए को 34 सीटों का नुकसान हुआ। 2014 और 2019 में, दलितों ने एकजुट होकर बीजेपी को वोट दिया था, जिससे पीएम मोदी को पूर्ण बहुमत मिला था और वे सरकार बनाने में सफल रहे थे।

amit shah on ambedkar

सबकी नज़र दलित वोटबैंक पर 

2024 में कांग्रेस के अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन ने संविधान और आरक्षण का मुद्दा प्रमुखता से उठाया था जिससे दलित समाज बीजेपी से दूर हो गया था। लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी संविधान की प्रति लेकर वोट मांग रहे थे और संसद में भी कई विपक्षी सांसदों ने हाथ में संविधान लेकर शपथ ली थी। इसी कारण कांग्रेस राज्यसभा में अमित शाह के बयान को बाबा साहेब का अपमान मानकर दलित समाज का विश्वास जीतने की कोशिश कर रही है।

कांग्रेस आंबेडकर के अपमान का मुद्दा उठाकर दलित वोटों में अपनी मजबूत पकड़ बनाना चाहती है, और इसके लिए वह आक्रामक रुख अपना रही है। दरअसल, बीजेपी का उद्देश्य कांग्रेस को आंबेडकर और दलित विरोधी दिखाने की है। इस तरह बीजेपी और कांग्रेस दोनों की नजरें दलित वोटबैंक पर हैं। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर अपने प्रमुख दलित नेता मल्लिकार्जुन खरगे को आगे कर दिया है, और उन्होंने अमित शाह के बयान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

हर चार वोटरों में एक दलित

देश के 74 जिलों में दलितों की आबादी 25 प्रतिशत से ज्यादा है, यानी हर चार वोटरों में एक दलित है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में दलित मतदाताओं का चुनावों में अहम रोल होता है। दलितों की राजनीतिक ताकत को देखते हुए सभी सियासी पार्टियां उन्हें अपने पक्ष में लाने की कोशिश करती रहती हैं। दलितों की सबसे बड़ी आबादी पंजाब में है जहां 31.9 प्रतिशत दलित रहते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा करीब 20.7 प्रतिशत है। इस तरह, दलित वोटर चुनावों में सत्ता को बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं और उनके लिए डॉ. अंबेडकर भगवान से कम नहीं माने जाते।

 

 

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