काशी की गलियों में छिपी गूढ़ता आपको अपनी ओर खींचती है। यहाँ की मिट्टी में जीवन और मृत्यु का अद्भुत नृत्य चलता है। हर सुबह, जब सूरज की किरणें गंगा की लहरों पर पड़ती हैं, तो ऐसा लगता है जैसे ये लहरें उन अनगिनत आत्माओं की गवाह बनने के लिए तैयार हो रही हैं, जिन्होंने काशी को अपना अंतिम आशियाना चुना। यहाँ मृत्यु को एक अंत नहीं, बल्कि मोक्ष के सफर की शुरुआत माना जाता है।
कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति वाराणसी में अपनी अंतिम सांस लेता है, वह जीवन और मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। स्कंदपुराण में लिखा है कि काशी भले ही इस दुनिया की सीमाओं में बंधी हो, लेकिन यह सबके बंधनों को काटने वाली है। यहाँ का एक प्रसिद्ध श्लोक है: “या बुद्धा भुवि मुक्तिदा स्युरमृतं यस्यां मृता जन्तवः।” यही कारण है कि लोग यहाँ आकर अपनी अंतिम सांस लेना चाहते हैं, ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके।
क्यों आखिरी समय में काशी में ही मरने की इच्छा रखते हैं लोग?
काशी में 80 घाट हैं, लेकिन मणिकर्णिका घाट, जिसे महाश्मशान भी कहते हैं, इनमें सबसे खास है। यहाँ चिता 24 घंटे जलती रहती है। इसे सिर्फ एक अंतिम संस्कार स्थल नहीं माना जाता। यहाँ की मान्यता है कि जब किसी की मृत्यु होती है, तो देवता उस आत्मा की प्रशंसा करते हैं। इंद्र देव, जो स्वर्ग के राजा हैं, अपनी सहस्त्र आँखों से उस आत्मा को देखने के लिए व्याकुल रहते हैं, और सूर्य देव अपनी हजार किरणों के साथ उसका स्वागत करते हैं।
मणिकर्णिका घाट की चिताएँ कभी बुझती नहीं हैं। काशी खंड के अनुसार, जब किसी की मृत्यु होती है, तो भगवान शिव उनके कान में तारक मंत्र सुनाते हैं, जो उन्हें सीधे मोक्ष की ओर ले जाता है। यहाँ तक कि अगर कोई व्यक्ति जीवन में कितना भी पापी क्यों न हो, अगर उसकी मृत्यु काशी में होती है, तो उसे मुक्ति का आश्वासन मिलता है।
यहाँ जलती हुई चिताएँ, आग की लपटें और भक्तिभाव का माहौल एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है। यह एक गंभीर और आध्यात्मिक वातावरण है, जहाँ लोग अपने प्रियजनों को विदाई देते हैं। यहाँ की चिताएँ सदा जलती रहती हैं, और मान्यता है कि जो लोग यहाँ अंतिम संस्कार करते हैं, उनकी आत्माएँ सीधे स्वर्ग की ओर जाती हैं।
मणिकर्णिका नाम के पीछे की कहानी
मणिकर्णिका का नाम एक दिलचस्प कहानी (manikarnika ghat story) से जुड़ा है। मान्यता है कि माँ पार्वती का कान का फूल यहाँ गिर गया था, जिसे भगवान शिव ने खोजा। इस घटना के कारण इस घाट का नाम मणिकर्णिका पड़ा। यहाँ की अग्नि कभी नहीं बुझती, और इसका रहस्य भी अद्भुत है।
“मरणं मंगलं यत्र विभूतिश्च विभूषणम्,
कौपीनं यत्र कौशेयं सा काशी केन मीयते।”
इस श्लोक का मतलब है कि जहाँ मृत्यु को मंगलमय माना जाता है, और वहाँ की विभूति आभूषण के समान होती है, वही काशी अद्भुत और दिव्य है।
काशी का मुक्ति भवन
काशी का मुक्ति भवन एक अनोखा स्थान है, जहाँ लोग मोक्ष की तलाश में अपनी अंतिम सांसें गिनने आते हैं। यह भवन 1908 में स्थापित हुआ और तब से यह कई लोगों का अंतिम आशियाना बन चुका है। यहाँ आने वाले लोग अपने आखिरी कुछ दिन इस भवन में बिताते हैं, क्योंकि माना जाता है कि यहाँ रहकर उनकी आत्मा को शांति मिलेगी और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।
मुक्ति भवन बनारस के गौदोलिया के पास, मिसिर पोखरा में स्थित है। यहाँ 12 कमरे हैं, साथ में एक छोटा मंदिर और पुजारी भी मौजूद हैं। ये कमरे केवल उन्हीं के लिए होते हैं, जो मृत्यु के बहुत करीब हैं। यहाँ का माहौल शांति और श्रद्धा से भरा होता है।
यहाँ रहना बेहद साधारण है। हर कमरे में सोने के लिए एक तखत, चादर और तकिया होता है। पीने के लिए मौसम के अनुसार घड़ा या कलश रखा रहता है। यहाँ आने वाले लोगों को कम से कम सामान के साथ आने की इजाजत होती है। अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु निर्धारित समय, यानी दो हफ्ते के भीतर नहीं होती, तो उन्हें अपना कमरा और मुक्ति भवन का परिसर छोड़ना पड़ता है। इसके बाद, लोग अक्सर बाहरी धर्मशाला या होटल में ठहर जाते हैं, ताकि काशी में ही उनकी मृत्यु हो सके।
मुक्ति भवन में एक खास बात यह है कि यहाँ पर गायक मंडली भी है। ये स्थानीय गायक ईश्वर और मोक्ष के भजन गाते हैं। इस संगीत का लाभ यहाँ रहने वाले लोगों को मिलता है, जिससे वे मानसिक शांति और दर्द में आराम महसूस करते हैं। पुजारी रोज सुबह और शाम की आरती करते हैं और गंगाजल छिड़कते हैं ताकि यहाँ रह रहे लोगों को शांति मिले।