Dungarpur Banswara Loksabha Seat: मालवीय को रोकने के फेर में अपने ही जाल में उलझी कांग्रेस
Dungarpur Banswara Loksabha Seat: जयपुर: राजस्थान की बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट पर चुनाव में इस बार बहुत कुछ पहली बार हो रहा है। पहली बार कांग्रेस राजस्थान में लोकसभा चुनाव में गठबंधन कर रही है। पहली बार कांग्रेस अपने ही चुनाव चिन्ह पंजे पर लड़ रहे प्रत्याशी का विरोध कर रही है। पहली बार कांग्रेस अपने दो नेताओं के खिलाफ तीसरे दल के लिए प्रचार कर रही है। पहली बार भारतीय आदिवासी पार्टी लोकसभा का चुनाव लड़ रही है। पहली बार ऐसा होगा कि पार्टी की रणनीति से खुद कांग्रेस के कार्यकर्ता आशंकित हैं कि भाजपा हार गई तो इलाके में कांग्रेस का क्या होगा।
बुरी तरह बंटी कांग्रेस और कार्यकर्ता
कांग्रेस को पहला झटका महेंद्रजीत सिंह मालवीय ने दिया, जो चार दशकों से इलाके में कांग्रेस के सर्वेसर्वा थे। संगठन में नियुक्तियां भी उन्हीं की मर्जी से हुई थी। वे भाजपा में गए तो कुछ को साथ ले गए, जो बचे उनमें कई की निष्ठा संदिग्ध बना गए। फिर बीएपी से गठबंधन को लेकर कांग्रेसी आशंकित है कि बीएपी के राजकुमार रोत जीत गए तो इलाके में कांग्रेस का क्या होगा। इस साल होने वाले निकाय चुनाव और अगले साल पंचायत चुनाव में बीएपी बाकि बची कांग्रेस को निगल जाएगी। वैसे भी बीएपी कांग्रेस के आदिवासी वोटबैंक की कीमत पर ही आगे बढ़ रही है। ऐसे में बीएपी के लिए काम करना कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हजम नहीं हो रहा है। रही सही कसर कांग्रेस प्रत्याशी बनाने और फिर नाम वापसी की नाकाम कोशिश ने कर दिया। तकनीकी रूप से ही सही पर अरविंद डामोर कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। कांग्रेस पंजे पर वोट डालने से आदिवासी वोटर को कैसे रोक पाएगी। खुद कांग्रेस का एक गुट भी डामोर के समर्थन में है।
बीएपी-बीजेपी की नजर कांग्रेस के वोट बैंक पर
सीट पर करीब 22 लाख वोटर में से 70 फीसदी के लगभग आदिवासी हैं। इनकी संख्या करीब 14 लाख 85 हजार है। बचे 30 फीसदी में ओबीसी करीब 3 लाख 17 हजार, सामान्य एक लाख 67 हजार, एससी 80 हजार, जैन व मुस्लिम एक लाख 36 हजार हैं। आदिवासी कांग्रेस का परंपरागत वोटबैंक रहा है। इस सीट पर अब तक हुए 17 चुनावों में 12 बार कांग्रेस जीती हैं। इसके बावजूद कांग्रेस ने यह सीट गठबंधन कर बीएपी को दे दी। अब कांग्रेस के इस वोट बैंक पर मालवीय के सहारे कांग्रेस सेंध लगाने की कोशिश कर रही है, तो गठबंधन के नाम पर बीएपी भी कांग्रेसी मतदाताओं पर डोरे डाल रही है। उधर कांग्रेस का दूसरा वोट बैंक मुस्लिम वर्ग भी भाजपा के खिलाफ बीएपी को मजबूत होता देख उसके साथ जुड़ सकता है।
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विधानसभा चुनाव में सबसे मजबूत थी कांग्रेस
करीब साढ़े चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि इस संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस को सबसे ज्यादा वोट और सीटें मिली थीं। 8 में से पांच सीटें जीतने के साथ कांग्रेस के पास सबसे ज्यादा वोट शेयर भी था। उसे इन 8 सीटों पर पांच लाख 95 वोट मिले थे, जबकि भाजपा को 1 सीट के साथ 5 लाख 30 हजार और बीएपी को 2 सीट के साथ 4 लाख 81591 वोट मिल थे। इसके बावजूद बागीदौरा विधायक महेंद्रजीत सिंह मालवीय के भाजपा में जाते ही कांग्रेस धराशायी हो गई। सिर्फ मालवीय को रोकने के लिए कांग्रेस ने जबर्दस्ती एकतरफा गठबंधन कर बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट भारतीय आदिवासी पार्टी बीएपी को दे दी। गठबंधन की गफलत इतनी रही कि अब ईवीएम पर कांग्रेस का पंजा और प्रत्याशी तो रहेगा, लेकिन कांग्रेस कह रही है वोट बीएपी को देना है।
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मोदी आ सकते हैं बांसवाड़ा
बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर वोटिंग दूसरे चरण में 26 अप्रैल को होनी है। भाजपा को पिछली दो लगातार जीत, महेंद्रजीत सिंह मालवीय के दलबदल और कांग्रेस प्रत्याशी अरविंद डामोर के मैदान से नहीं हटने से उम्मीदें हैं। पंजे के चुनाव चिन्ह पर डामोर जितने वोट ले जाएंगे गठबंधन को उतना ही नुकसान होगा। इसके बावजूद पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस सीट पर प्रचार करने आ सकते हैं।