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वे मजबूरियां, जिनकी वजह से ना…ना करते भी एकनाथ शिंदे को बनना ही पड़ा डिप्टी सीएम!

महाराष्ट्र में हाल ही में हुए राजनीतिक उलटफेर के बाद एकनाथ शिंदे ने फिर से डिप्टी सीएम पद की शपथ ली। यह फैसला न उनके लिए आसान था, न ही बिना मजबूरी के। शिवसेना (शिंदे गुट) और बीजेपी का गठबंधन इस बात को साबित करता है कि सत्ता की राजनीति में कई बार मजबूरियों का खेल चलता है। शिंदे गुट के सामने ऐसी कई स्थितियां थीं, जिनकी वजह से उन्हें बीजेपी से गठबंधन बनाए रखना और डिप्टी सीएम पद पर बैठना पड़ा। चलिए जानते हैं वे पांच बड़ी वजहें, जिन्होंने एकनाथ शिंदे को इस फैसले पर मजबूर किया।

1. बीजेपी से बगावत का मतलब राजनीतिक हाशिये पर जाना

एकनाथ शिंदे के लिए सबसे बड़ी मजबूरी यह थी कि बीजेपी के साथ गठबंधन छोड़ने का मतलब होता राजनीतिक हाशिये पर चले जाना। महाराष्ट्र में बीजेपी के पास सबसे ज्यादा विधायक हैं और शिंदे गुट अकेले सत्ता में नहीं आ सकते थे। ऐसा हुआ तो सत्ता उनके हाथ से निकल जाती और फिर वे किसी भी दल से समर्थन की उम्मीद नहीं कर सकते थे। इस स्थिति को भांपते हुए, शिंदे ने बीजेपी के साथ बने रहना ही सही समझा।

महाराष्ट्र सरकार

2. शिंदे के पास क्या विकल्प थे?

शिंदे के पास विकल्प बहुत सीमित थे। अगर वे बीजेपी से गठबंधन तोड़ते तो बीजेपी अकेले ही बहुमत हासिल कर लेती। इस तरह शिंदे गुट की राजनीतिक स्थिति कमजोर हो जाती। इसके अलावा, किसी दूसरे दल के साथ गठबंधन करने की स्थिति भी नहीं थी, क्योंकि इससे कोई खास फायदा नहीं होता। इस हालत में शिंदे को समझ में आ गया कि बीजेपी के साथ बने रहना ही उनके लिए सबसे बेहतर है। और इसीलिए, उन्हें डिप्टी सीएम पद स्वीकार करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था।

3- सत्ता में बने रहना क्यों था अनिवार्य?

महाराष्ट्र भारत की आर्थिक राजधानी है। राज्य का देश की कुल जीडीपी में लगभग 14 प्रतिशत योगदान है, और इसकी औद्योगिक मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा भी 13.8 प्रतिशत है। ऐसे में, हर राजनीतिक दल की कोशिश रहती है कि वह राज्य की सत्ता में बने रहे, ताकि वह इस आर्थिक ताकत का हिस्सा बने रहे। शिंदे गुट भी इस खेल से बाहर नहीं रहना चाहता था। अगर उन्होंने सत्ता छोड़ दी होती, तो यह एक बड़ा नुकसान होता और वे यह जोखिम नहीं उठाना चाहते थे।

4. संगठन चलाना है तो सत्ता में रहना जरूरी

अब तक शिंदे और उद्धव गुट दोनों ही शिवसेना के कमजोर रूप में दिख रहे हैं। शिवसैनिकों की औसत उम्र अब 50-60 साल के बीच हो चुकी है। ऐसे में संगठन को जीवित रखना और चुनावी जीत हासिल करना, दोनों ही चीजें बिना सत्ता के मुश्किल हैं। आगामी चुनावों में सफलता पाने के लिए शिंदे को सत्ता में बने रहना जरूरी था। उनके लिए यह एक कड़ी जरूरत बन चुकी थी, और डिप्टी सीएम पद लेने का यह फैसला उनकी संगठन को बनाए रखने की दिशा में उठाया गया कदम था।

5. सत्ता से अलग रहना उनके लिए कभी विकल्प नहीं था

कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि शिंदे गुट का गठन सत्ता की लालसा के कारण हुआ था, न कि किसी मजबूत विचारधारा या हिंदुत्व के नाम पर। शिंदे का पूरा फोकस सत्ता में बने रहने पर था। यही वजह रही कि उन्होंने बीजेपी से गठबंधन करते हुए डिप्टी सीएम पद स्वीकार किया। सत्ता में बने रहना ही उनकी प्राथमिकता थी और इसके बिना उनकी राजनीति का कोई उद्देश्य नहीं था।

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बता दें राजनीति में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब एक नेता को मजबूरी में समझौते करने पड़ते हैं। एकनाथ शिंदे ने यही किया। उनके लिए सत्ता में रहना, संगठन को बनाए रखना और महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करना सबसे जरूरी था। बीजेपी के साथ डिप्टी सीएम पद पर बैठना उनके लिए एक राजनीतिक मजबूरी बन चुका था, लेकिन यह उनका व्यावहारिक कदम साबित हुआ।