Guru Gobind Singh: गोबिंद सिंह की जयंती पर जानें उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें
राजस्थान(डिजिटल डेस्क)। Guru Gobind Singh: सिख धर्म में गुरू गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh)का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। वह सिखों के 10वें और अंतिम गुरू थे और सिख धर्म के 9वें गुरु तेगबहादुर के पुत्र थे। हर साल पौष मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उनका जन्मदिवस मनाया जाता है। इस साल उनकी जयंती 17 जनवरी को मनाई जा रही है। उन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरें लोगों की सेवा की और लोगों को सच्चाई का मार्ग दिखाया। उन्होंने ही गुरू ग्रंथ साहिब को गुरू के रूप में स्थापित किया। वह हमेशा समाज की कुरीतियों के खिलाफ खड़े रहे। आज हम आपको गुरू गोबिंद सिंह जी के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे है। आइए जानते है उनसे जुड़ी कुछ खास बातें:—
गोबिंद सिंह का जन्म:-
गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) के पिता का नाम गुरु तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी था। वह अपने माता पिता के एक मात्र पुत्र थे। उनका जन्म 22 दिसंबर 1666 को बिहार के पटना साहिब में हुआ था। उनके जन्म का नाम गोबिंद राय रखा गया था और उनका जन्म जिस घर में हुआ उसे तख़्त श्री पटना हरिमंदर साहिब के नाम से जाना जाता है। गुरू गोबिंद सिंह की जयंती हर वर्ष नानकशाही कैलेंडर के अनुसार पौष माह की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। वहीं अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार उनका जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ था लेकिन उनका जन्मदिवस हर वर्ष नानकशाही कैलेंडर के अनुसार ही मनाई जाती है।
खालसा वाणी और पांच ककार की स्थापना:-
गुरू गोबिंद सिंह ने ही ‘वाहे गुरु की खालसा, वाहेगुरु की फतेह’ खालसा वाणी दिया था। 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की और इस स्थापना के पीछे का उद्देश्य मुगलों के अत्याचारों से लोगों को मुक्त करना, जीवन मूल्यों की रक्षा और समाज को बेहतर बनाने और धर्म की रक्षा करना था। वहीं सिखों के लिए 5 चीजें पहनना अनिवार्य होता है। जिसे ‘पांच ककार’ कहा जाता हैं। मान्यता है कि सिखों के लिए 5 चीजें धारण करने का आदेश गुरू गोबिंद सिंह ने ही दिया था। इन 5 चीजों में बाल,कच्छा, कड़ा,कंघा और कृपाण शामिल है।
गुरू गोबिंद सिंह का व्यक्तित्व:-
गुरू गोबिंद सिंह ने अपने जीवन काल में कभी भी धन,संपदा और सत्ता के लिए लड़ाई नहीं की बल्कि उन्होंने अपना पूरे जीवन में अत्याचार ,अन्याय और अधर्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी। गुरू गोबिंद सिंह एक महान योद्धा और कई भाषाओं का ज्ञान रखने वाले विद्वान भी थे। उन्हें पंजाबी समेत फारसी,संस्कृत,उर्दू और अरबी जैसे कई भाषाओं का ज्ञान था।
अपने गुरू व पिता गुरु तेग बहादुर के बलिदान के बाद 11 नवंबर 1675 को महज 9 साल की उम्र में वह सिखों के दसवें गुरु बने थे। गुरू गोबिंद सिंह को ही वाद्य यंत्र दिलरूबा के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है। वहीं उनके दरबार में 50 से ज्यादा कवि थे। श्री पांवटा साहिब गुरुद्वारा सिखों के लिए विशेष माना जाता है क्योंकि यहां पर गोबिंद सिंह जी ने 4 साल गुजारे थे।
जीवन में उनकी सीख:-
गुरू गोबिंद सिंह ने मानवता की सेवा को ही अपना मूल उद्देश्य माना था और उन्होंने दूसरों को भी यही सीख दी की लोगों को अपना जीवन समाज की सेवा में लगाना चाहिए। वह हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म,जाति या पंथ का हो उसे एक समान मानते थे और वह सभी धर्मो का सम्मान करते थे। उनका मानना था कि किसी भी व्यक्ति की निंदा, उसे नीचा दिखाना या फिर कठोर शब्द नहीं बोलना चाहिए।
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