दिल्ली में गुरुमुख निहाल सिंह शायद उतने चर्चित नहीं हैं, लेकिन उनकी एक कहानी है, जो अब भी सियासत के पन्नों पर दर्ज है। निहाल सिंह, दिल्ली के पहले सिख मुख्यमंत्री थे, और सबसे खास बात यह है कि उन्होंने 1955 में शराबबंदी का ऐलान किया था। यही नहीं, उन्होंने इस फैसले से जुड़े तमाम दबावों के बावजूद भी अपने निर्णय से पीछे नहीं हटे।
शुरुआत हुई गोविंद वल्लभ पंत से
गुरुमुख निहाल सिंह का जन्म 1895 में हुआ था। पढ़ाई में भी वो काफी अव्वल थे और लंदन से बीएससी की डिग्री के बाद कई बड़े विश्वविद्यालयों में पढ़ाया। लेकिन उनकी असली पहचान राजनीति से जुड़ी हुई थी। दरअसल, उनका राजनीति में आना गोविंद वल्लभ पंत के कहने पर हुआ। पंत ने उन्हें दिल्ली की दरियागंज सीट से चुनाव लड़ने को कहा और निहाल सिंह ने चुनाव जीतकर दिल्ली विधानसभा में कदम रखा।
कैसे बने दिल्ली के मुख्यमंत्री?
1952 में कांग्रेस पार्टी दिल्ली में चुनाव जीती और शुरुआत में देशबंधु गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया था, लेकिन एक सड़क हादसे में गुप्ता का निधन हो गया। इस वजह से कांग्रेस ने गुरुमुख निहाल सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया। 13 फरवरी 1955 को उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। लेकिन निहाल सिंह का कार्यकाल ज्यादा लंबा नहीं था, क्योंकि उनकी सियासी राह में कई उतार-चढ़ाव आए।
निहाल सिंह का सबसे बड़ा फैसला था—दिल्ली में शराबबंदी। यह फैसला लेते ही दिल्ली में सियासी हलचल मच गई। शराब के कारोबार में लगे लोग नाराज हो गए, और यह मामला सिर्फ दिल्ली में नहीं, बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया। निहाल सिंह के इस कदम को लेकर विरोध शुरू हुआ, और यहां तक कि प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को भी इस पर चिट्ठी लिखनी पड़ी।
नेहरू ने क्यों लिखा था खत?
नेहरू ने 1956 में निहाल सिंह को पत्र लिखकर कहा था कि शराबबंदी से अवैध शराब के कारोबार को बढ़ावा मिल सकता है। उन्होंने लिखा, “शराबबंदी से एक नई समस्या खड़ी हो सकती है—अवैध शराब का कारोबार।” हालांकि, निहाल सिंह पर इसका कोई असर नहीं हुआ और वह अपनी शराबबंदी की नीति पर अडिग रहे।
कांग्रेस के भीतर भी बंटे थे लोग
कांग्रेस पार्टी में भी इस पर बहस हुई। कुछ नेताओं ने शराबबंदी का समर्थन किया, जबकि कुछ ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। मोरारजी देसाई, जो तब कांग्रेस के एक बड़े नेता थे, शराबबंदी के पक्ष में थे। इस दबाव के बावजूद निहाल सिंह अपने फैसले से नहीं हटे। हालांकि, यह अफवाह भी थी कि निहाल सिंह ने यह फैसला अपने बेटे की शराब की लत से परेशान होकर लिया था।
1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और दिल्ली विधानसभा को भंग कर दिया गया। इस फैसले का असर निहाल सिंह के मुख्यमंत्री पद पर पड़ा। उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और उनकी कुर्सी छिन गई। इसके बाद, कांग्रेस ने उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बना दिया और वह वहां 1962 तक रहे।
दिल्ली की सियासत में गुमनाम ही रहे निहाल सिंह
गुरुमुख निहाल सिंह का कार्यकाल महज एक साल और कुछ महीने का था। हालांकि उन्होंने दिल्ली की राजनीति में अपनी छाप छोड़ी, लेकिन दिल्ली की सियासत में आज भी उनकी पहचान बहुत कम लोगों को है। शराबबंदी का उनका फैसला आज भी याद किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद उनका नाम गुमनाम ही रह गया।
गुरुमुख निहाल सिंह को अगर दिल्ली के इतिहास में याद किया जाता है तो वह उनके शराबबंदी के फैसले के लिए ही। उन्होंने सत्ता में रहते हुए एक ऐसा कदम उठाया, जिसने न केवल दिल्ली बल्कि पूरे देश की सियासत को हिला कर रख दिया। लेकिन दुख की बात यह है कि उनका नाम और काम बहुत कम लोग जानते हैं, और यह कहानी कहीं न कहीं इतिहास के धुंधले पन्नों में खो गई है।
ये भी पढ़ें-
- सीएम उमर अब्दुल्ला के तीखे तेवर, कहा ‘EVM पर रोना बंद करे कांग्रेस’
- NCP नेता छगन भुजबल के मंत्रिमंडल में जगह नहीं देने पर समर्थकों का हंगामा, ढाई साल बाद दूसरे विधायकों को मिलेगा मौका?
- दिल्ली चुनाव: AAP ने सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार किए घोषित, 17 मौजूदा विधायकों के काटे टिकट
- महाराष्ट्र में फडणवीस कैबिनेट का पहला विस्तार, 39 नए मंत्रियों ने ली शपथ