Hamas-Israel ceasefire

कैद में 477 दिन, इजरायल की चार महिला सैनिकों की रिहाई के दिल दहला देने वाले अनुभव

हमास और इजरायल के बीच हुए युद्धविराम समझौते के तहत शनिवार को हमास ने गाजा पट्टी में कैद की गई इजरायल की चार महिला सैनिकों को रिहा कर दिया। बदले में, लगभग 200 फिलिस्तीनी कैदियों को भी रिहा किया गया।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन चार सैनिकों के नाम करीना एरीव, डेनिएला गिल्बोआ, नामा लेवी और लिरी अलबाग हैं। उन्हें गाजा में रेड क्रॉस के हवाले किया गया। रिहाई के दौरान, इन महिला सैनिकों को एक फिलिस्तीनी वाहन से उतारकर मंच पर लाया गया, जहां उन्होंने मुस्कुराते हुए भीड़ की तरफ हाथ हिलाया। इसके बाद, वे रेड क्रॉस की गाड़ियों में बैठ गईं।

ये चारों सैनिक 7 अक्टूबर को हमास के हमले के दौरान इजरायल के नाहल ओज सैन्य अड्डे से अगवा की गई थीं। उन्होंने बताया कि इस दौरान उन्हें किन हालातों का सामना करना पड़ा।

रिहाई से पहले पहनाई गई अर्ध-सैन्य वर्दी 

चारों महिला सैनिकों को रिहाई से पहले अर्ध-सैन्य वर्दी पहनाई गई। इसके बाद, उन्हें हमास कार्यकर्ताओं के साथ मंच पर खड़ा किया गया। सैनिकों के परिवार ने कहा कि उन्हें इस तरह मंच पर खड़ा करके दिखाने की कोशिश की गई कि वे डर और घबराहट में नहीं हैं। परिवार ने कहा, “इसका हम पर कोई असर नहीं हुआ। हम उनसे ज्यादा मजबूत हैं।”

सैनिकों का ज्यादातर समय अंधेरे में ही बीता 

चारों महिला सैनिकों ने बताया कि उन्हें अगवा करने के बाद ऐसी जगह पर रखा गया, जहां न सूरज की रोशनी पहुंचती थी और न ही वे सही से सांस ले पाती थीं। वहां बिजली भी नहीं थी, इसलिए उनका ज्यादातर समय अंधेरे में ही बीता।

उन्होंने बताया कि 477 दिनों की कैद के दौरान उन्हें गाजा के अलग-अलग इलाकों में ले जाया गया, जिसमें गाजा शहर भी शामिल था। इस दौरान, उनमें से कुछ को “हमास के बहुत वरिष्ठ लोगों” से भी मिलवाया गया।

रिहाई के बाद जब ये महिला सैनिक अपने परिवारों से मिलीं, तो वे भावुक होकर फूट-फूटकर रोने लगीं।

जीवन का सबसे डरावना समय

महिला सैनिकों ने बताया कि वहां उनका बहुत बुरा व्यवहार किया जाता था। न तो उन्हें अच्छा खाना मिलता था और न ही साफ पानी। कई बार उन्हें आतंकवादियों के लिए खाना बनाना पड़ता था और शौचालय भी साफ करना होता था। जब इतना सब करने के बाद वे खाना मांगती थीं, तो उन्हें खाने से भी मना कर दिया जाता था। सैनिकों का कहना था कि यह उनके जीवन का सबसे डरावना समय था। लेकिन एक-दूसरे की हिम्मत से वे आज तक जिंदा हैं।

रोने की कोशिश की, तो उनके साथ करते थे मारपीट

महिला सैनिकों ने बताया कि उन्हें हमेशा ताना मारा जाता था और कई बार तो रोने तक की अनुमति नहीं मिलती थी। अगर उन्होंने रोने की कोशिश की, तो उनके साथ मारपीट की जाती थी। कई दिनों तक उन्हें नहाने नहीं दिया जाता था और घायल सैनिकों को इलाज के लिए तड़पाया जाता था। इस कठिन समय में, उन्होंने रेडियो पर युद्ध से जुड़ी खबरें सुनीं, जिससे उन्हें स्थिति के बारे में जानकारी मिलती थी। इसके अलावा, महिला सैनिकों ने यह भी बताया कि इस दौरान उन्होंने अरबी भाषा भी सीख ली, जिससे उन्हें थोड़ी राहत मिली।

 

 

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