संभल में 46 साल बाद खोला गया हनुमान मंदिर, केशव प्रसाद मौर्य ने कहा – ‘भय और धमकी का दौर खत्म’

उत्तर प्रदेश के संभल जिले के मुस्लिम बहुल खग्गू सराय इलाके में स्थित एक हनुमान मंदिर का ताला 46 साल बाद खोला गया है। यह घटना रविवार को हुई, जब इस मंदिर में आयोजित पूजा-अर्चना में स्थानीय श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया और हनुमान जी के दर्शन किए। इस मंदिर को बंद कर दिया गया था और लंबे समय से इसका ताला पड़ा हुआ था। मंदिर की दयनीय स्थिति और इसके आसपास के हालात ने इसे इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज कर दिया था, लेकिन अब यह दौर समाप्त हो चुका है।

केशव प्रसाद मौर्य ने क्या कहा?

उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पिछले कई दशकों से यहां एक भय का माहौल था, जिसके कारण हिंदू समुदाय के लोग यहां से पलायन करने के लिए मजबूर हो गए थे। उन्होंने आगे कहा, “अब वह समय समाप्त हो गया है, जब धमकी और भय के बल पर मंदिरों और धार्मिक स्थलों को बंद कर दिया जाता था। अब हिंदू समाज को डराने-धमकाने का दौर खत्म हो चुका है।”

मौर्य ने इस घटना को एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा और कहा कि अब समाज में एक नया विश्वास और खुशी का माहौल पैदा होगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के किसी भी धर्मिक स्थल को कब्जे में लेने और उसे बंद करने का कोई भी प्रयास नहीं सहा जाएगा।

1978 से बंद पड़ा था मंदिर 

यह हनुमान मंदिर 1978 से बंद पड़ा था। उस समय खग्गू सराय इलाके में हिंदू समुदाय के लोग संख्या में कम होते गए थे और कई परिवारों ने इस इलाके से पलायन कर दिया था। इसके साथ ही, मंदिर में ताला लगने से वहां के हिंदू निवासियों का विश्वास भी डिग गया था।

मंदिर में भगवान हनुमान की मूर्ति और शिवलिंग स्थापित हैं, जिनकी पूजा का आयोजन अब फिर से शुरू हो गया है। इस कदम के बाद वहां के लोग न सिर्फ धार्मिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी सुकून महसूस कर रहे हैं।

मंदिर के पुनः खोले जाने के साथ ही, स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था भी सुनिश्चित की है। मंदिर में अब सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और बिजली की सुविधा भी बहाल कर दी गई है। इस कदम से वहां के लोगों में विश्वास और उत्साह का माहौल है।

केशव प्रसाद मौर्य ने इस विषय पर और भी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि यह कोई विवाद का मुद्दा नहीं है। मंदिर के ताले का खोला जाना किसी भी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और भाईचारे का प्रतीक है। उनके अनुसार, जब तक किसी धार्मिक स्थल को सम्मान और सुरक्षा नहीं मिलती, तब तक समाज में समरसता नहीं आ सकती।

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