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हरियाणा: आखिर10 साल शासन करने के बाद भी एक्जिट पोल्स में भापजा का सूपड़ा कैसे साफ हुआ?

Haryana Assembly Election 2024:  मोदी लहर, जिसे भारतीय राजनीति में एक जबरदस्त ताकत माना जाता था, अब क्या कमजोर पड़ गई है? यह सवाल आजकल तमाम राजनीतिक पंडितों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के एक्जिट पोल्स के नतीजों से ही अब यह जानने की कोशिश की जा रही है कि बीजेपी की स्थिति क्या है। पार्टी के नेता और विपक्षी गठबंधन दोनों ही सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं, और यह बताने में लगे हैं कि दूसरे पक्ष की हार के पीछे क्या कारण हैं।
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी

महाराष्ट्र चुनावों पर पड़ेगा असर

एक्जिट पोल्स का नतीजा 5 अक्टूबर को हुई वोटिंग और उसी दिन मोदी और राहुल गांधी के महाराष्ट्र दौरे से जुड़ा हुआ है। समीक्षक यह मानते हैं कि इन चुनावों के परिणाम आगामी महाराष्ट्र चुनावों में भी झलकेंगे। अगर एक्जिट पोल्स में बीजेपी पीछे नजर आती है, तो उसके नेताओं को अब आठ तारीख का इंतजार है। वहीं, कांग्रेस के नेता भी पूरी तैयारी में हैं, और दावा कर रहे हैं कि अब बीजेपी का वक्त खत्म होने वाला है।

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सियासत का यह खेल बड़ा दिलचस्प है—एक तरफ बीजेपी के नेता अपने कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित कर रहे हैं, दूसरी ओर विपक्षी दल अपनी खुशियां मनाने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन असली तस्वीर तो 8 अक्टूबर को ही साफ होगी, जब मतगणना के परिणाम सामने आएंगे।

मनोहर लाल खट्टर

हरियाणा में बीजेपी के पीछे के पांच बड़े कारण

1- शहरी मतदाताओं का निराशा का संकेत

बीजेपी को हमेशा सिटी सेंट्रिक पार्टी माना जाता था, लेकिन हालिया चुनावों में उसका प्रदर्शन सवाल उठाने वाला रहा। 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को हरियाणा की 90 विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग आधे यानी 45 में जीत मिली। यह संकेत है कि शहरी मतदाताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य के दो करोड़ मतदाताओं में से केवल एक करोड़ ने वोट दिया। ऐसे में, जो लोग मतदान नहीं किए, उनका झुकाव किस ओर था, यह सोचने वाली बात है।

2- किसानों और जाटों की नाराजगी

हरियाणा को किसान, जवान और पहलवानों का प्रदेश माना जाता है। हालिया किसान आंदोलन के दौरान, बीजेपी ने किसानों को दिल्ली में आने से रोका, जिसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा। बीजेपी नेता भले ही किसान सम्मान निधि और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की बात करें, लेकिन इससे किसान समुदाय की नाराजगी कम नहीं हुई। ‘अहिरवाल’ और ‘जाटलैंड’ जैसे क्षेत्रों में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा।

3- बेरोजगारी का बढ़ता संकट

हरियाणा में बेरोजगारी दर 9% रही, जो राष्ट्रीय औसत 4.1% से दोगुनी थी। बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में 2 लाख नौकरियों का वादा किया था, लेकिन 10 साल में भी वो केवल 1.85 लाख पद भरने में असफल रही। इससे युवा मतदाता सरकार के प्रति आक्रोशित हैं, जिसने बीजेपी की चुनावी संभावनाओं पर असर डाला।

4- पिछले चुनावों से सबक न लेना

कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में कांग्रेस ने पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने का वादा किया था, जिसके परिणामस्वरूप उसे जीत मिली। इसी तरह, बीजेपी के अग्निवीर योजना के विरोध ने भी पूर्व फौजियों के मतों पर असर डाला। पार्टी ने अपने पुराने फैसलों से सबक नहीं लिया और इसका नकारात्मक असर पड़ा।

5- सरकारी सुधारों का उल्टा प्रभाव

पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर की सरकार के कामकाज से लोगों में नाराजगी थी। बीजेपी ने लास्ट मोमेंट पर सीएम का चेहरा बदला, लेकिन इससे स्थिति में सुधार नहीं हुआ। सरकार के द्वारा लागू किए गए सुधार जैसे परिवार पहचान पत्र और ई-पोर्टल्स, प्रभावी साबित नहीं हुए। लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया, जिससे सरकार की छवि पर बुरा असर पड़ा।

दुष्यंत चौटाला

 JJP की नाव भी डूब रही

हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों पर मतदान के बाद आए एग्जिट पोल में भाजपा के साथ-साथ दुष्यंत चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी (JJP) के लिए मुश्किल संकेत दिए हैं। सी वोटर के एग्जिट पोल के अनुसार, JJP को केवल 4% वोट मिलने का अनुमान है, जिससे पार्टी 0-2 सीटों पर सिमट सकती है। यह स्थिति पिछले चुनाव से बिलकुल विपरीत है, जब 2019 में JJP ने 10 सीटें जीती थीं और बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई थी।

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इस बार, JJP का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला उसे महंगा पड़ रहा है। खासकर किसान आंदोलन के दौरान बीजेपी के साथ गठबंधन करना JJP के लिए एक बड़ी गलती साबित हुआ। किसान आंदोलन में पार्टी का समर्थन खोने से उसके जाट वोट बैंक को गंभीर नुकसान हुआ। दुष्यंत चौटाला खुद भी इस बात को मानते हैं कि उस समय बीजेपी का साथ देना उनके लिए गलत था, और अब इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है।

एग्जिट पोल के अनुसार, JJP को इस चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, और पार्टी का भविष्य अब संकट में नजर आ रहा है। यह स्थिति पार्टी के लिए चिंताजनक है और आगे का रास्ता कठिन दिखाई दे रहा है।

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