नेता कुमारी सैलजा

वो ‘तरकीब’ जिससे राहुल की रैली से ठीक पहले कांग्रेस ने ‘कोप भवन’ में बैठी सैलजा को मना लिया

हरियाणा की वरिष्ठ कांग्रेस नेता कुमारी सैलजा की पार्टी से नाराजगी की खबरें अब खत्म होती दिख रही हैं। यह माना जा रहा है कि कांग्रेस ने सैलजा की नाराजगी को सुलझा लिया है, और वे आज (26 सितंबर) नरवाना में एक रैली के जरिए अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर सकती हैं।

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने हाल ही में यह जानकारी दी कि सैलजा जल्द ही प्रचार में शामिल होंगी। उन्होंने 23 सितंबर को कहा था कि सांसद कुमारी सैलजा 26 सितंबर को दोपहर 12 बजे नरवाना में एक जनसभा को संबोधित करेंगी और कांग्रेस के लिए प्रचार करेंगी।

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कुमारी सैलजा की छवि एक मजबूत दलित नेता की है, और हरियाणा में दलित वोटर्स का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां लगभग 20 प्रतिशत दलित हैं, और विधानसभा की 17 सीटें इनके लिए आरक्षित हैं। सैलजा ने 6 बार सांसद रहकर अपनी राजनीतिक पहचान बनाई है और उनके पास कई राज्यों का प्रभार रहा है।

कुमारी सैलजा की नाराजगी के पीछे की वजह

हरियाणा की सीनियर कांग्रेस नेता कुमारी सैलजा की नाराजगी पार्टी के भीतर कई मुद्दों को लेकर थी। उनकी यह नाराजगी चुनावी माहौल में एक महत्वपूर्ण पहलू बन गई है, खासकर जब वह पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करने की तैयारी कर रही हैं।

1- टिकट बंटवारे में अनदेखी

सैलजा का पहला मुख्य कारण टिकट बंटवारे में उनकी गुट की अनदेखी थी। जब कांग्रेस ने उम्मीदवारों की घोषणा की, तो सैलजा ने जिन नामों का समर्थन किया था, उनमें से अधिकांश को टिकट नहीं मिला। इसका एक प्रमुख उदाहरण नारनौंद का मामला है, जहां सैलजा ने अजय चौधरी को उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया था, लेकिन कांग्रेस ने जसबीर पेटवाड़ को टिकट दिया। इस निर्णय से सैलजा के समर्थक निराश हुए, जिससे उनकी नाराजगी और बढ़ गई।

2- दीपक बाबरिया की कार्यशैली

सैलजा की नाराजगी की दूसरी वजह प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया की कार्यशैली थी। उन्होंने हाल ही में एक बयान दिया था जिसमें कहा गया था कि सांसद विधायकी का चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। इस बयान ने सैलजा को और भी नाराज कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि हाईकमान को इस तरह के फैसले लेने का अधिकार होना चाहिए। सैलजा का कहना था कि पार्टी के भीतर उनके विचारों और सुझावों की अनदेखी की जा रही है।

सैलजा को कांग्रेस ने कैसे मनाया ?

हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस के लिए कुमारी सैलजा की नाराजगी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गई थी, लेकिन पार्टी ने उन्हें मनाने में कामयाबी हासिल की है। सैलजा अब चुनावी कैंपेन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं।

1- राहुल गांधी की रैली से मिली उम्मीद

कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने करनाल के असंध से अपनी चुनावी रैली की शुरुआत की। यह रैली सैलजा के करीबी सहयोगी शमशेर सिंह गोगी के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बन गई। असंध सीट, जहां सिख और राजपूत समुदाय का प्रभाव है, हरियाणा में एक हॉट सीट बन चुकी है। 2019 में कुमारी सैलजा के नेतृत्व में कांग्रेस ने यहां 15 साल बाद जीत हासिल की थी, इसलिए यह रैली सैलजा गुट के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है।

2- कांग्रेस अध्यक्ष खरगे की पहल

सैलजा की नाराजगी दूर करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सक्रियता दिखाई। उन्होंने सैलजा के साथ दो बार मीटिंग की, जिससे सैलजा को अपनी समस्याओं को खुलकर रखने का मौका मिला। पहली बैठक 22 सितंबर को हुई, जहां उन्होंने टिकट बंटवारे में पारदर्शिता की कमी और प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया की कार्यशैली पर सवाल उठाए। दूसरी मीटिंग 24 सितंबर को हुई, जो सैलजा के जन्मदिन पर थी। इस मुलाकात में सैलजा और खरगे की हंसी-मजाक की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं, जिससे सैलजा की पार्टी में वापसी की आहट मिली।

3- सत्ता में हिस्सेदारी का आश्वासन

सैलजा को मनाने की एक और वजह यह थी कि पार्टी ने उन्हें सत्ता में सही हिस्सेदारी देने का आश्वासन दिया। सैलजा को डर था कि उनके समर्थकों की अनदेखी की जाएगी, जिससे उनकी राजनीतिक ताकत कमजोर हो सकती है। उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर भी दावा किया है, हालांकि इस रेस में भूपिंदर हुड्डा की ताकत एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

कुल मिलाकर, कांग्रेस ने सैलजा को मनाने के लिए जो रणनीति अपनाई, उससे न केवल सैलजा की नाराजगी दूर हुई बल्कि हरियाणा में कांग्रेस के चुनावी अभियान को भी मजबूती मिली है। अब देखना यह है कि सैलजा की वापसी कांग्रेस को चुनाव में कितनी मजबूती देती है।

हरियाणा में सैलजा की नाराजगी और बीजेपी का ऑफर

कांग्रेस की सीनियर नेता कुमारी सैलजा हाल के दिनों में पार्टी के भीतर टिकट वितरण को लेकर असंतोष व्यक्त कर रही हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सैलजा को इस बार टिकट बांटने में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थकों को तरजीह मिलने की बात खटक रही है। खासकर, 17 आरक्षित (एससी) सीटों पर जिन उम्मीदवारों का चयन हुआ है, वे ज्यादातर हुड्डा के करीबी हैं।

सैलजा हाल ही में दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में भी मौजूद नहीं थीं, जहां कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र को जारी किया। उनकी अनुपस्थिति को भी पार्टी के भीतर की खटास से जोड़ा जा रहा है, जिससे उनकी नाराजगी की पुष्टि होती है।

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इस बीच, बीजेपी की ओर से भी सैलजा को लुभाने की कोशिशें हो रही थी। केंद्रीय मंत्री और पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर ने हाल ही में एक सभा में कहा  था कि हरियाणा कांग्रेस में अंतर्कलह का माहौल है और उन्होंने सैलजा का नाम लेकर कहा कि यदि वे बीजेपी में शामिल होना चाहें, तो पार्टी उन्हें शामिल करने के लिए तैयार है। खट्टर ने इस बात पर भी जोर दिया कि कांग्रेस में नेता के रूप में भूपेंद्र और दीपेंद्र हुड्डा के बीच लड़ाई चल रही है, जिससे पार्टी में असमंजस का माहौल है।