Rangbhari Ekadashi: वाराणसी में मनाई जाने वाली रंगभरी एकादशी होली उत्सव की भव्य शुरुआत का प्रतीक है। एकादशी (फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष के 11वें दिन) को मनाया जाने वाला यह पर्व (Rangbhari Ekadashi) भगवान शिव और देवी पार्वती से गहराई से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव, देवी पार्वती को उनके विवाह के बाद काशी (वाराणसी) लाए थे और शहर ने उनका स्वागत रंगों और उत्सवों के साथ किया था।
रंगभरी एकादशी की परंपरा और अनुष्ठान
मुख्य उत्सव काशी विश्वनाथ मंदिर और शहर के अन्य शिव मंदिरों में होता है। इस त्योहार का नेतृत्व काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत करते हैं, जो महंत के निवास से मंदिर तक एक भव्य शिव बारात निकालते हैं। उत्सव के परिधानों में सजे भक्त, गुलाल, फूल और भजनों के साथ जुलूस में शामिल होते हैं, जिससे एक जीवंत (Rangbhari Ekadashi) और आनंदमय माहौल बनता है।
मंदिर पहुंचने पर भगवान शिव और देवी पार्वती की मूर्तियों को विधिपूर्वक सजाया जाता है और उन पर रंग लगाया जाता है, जो वाराणसी में होली की प्रतीकात्मक शुरुआत का प्रतीक है। भक्तजन भजन, ढोल और कीर्तन में भाग लेते हैं और भक्ति और उल्लास में नृत्य करते हैं।
कैसा होता है उत्सव?
रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi Celebration in Varanasi) सिर्फ़ धार्मिक आयोजन ही नहीं है, बल्कि एक प्रमुख सांस्कृतिक उत्सव भी है। पूरा वाराणसी शहर रंगों, संगीत और भक्ति में सराबोर हो जाता है। लोग एक-दूसरे को गुलाल और अबीर लगाते हैं, शिव भजन गाते हैं और आनंदमय तरीके से जश्न मनाते हैं। यह त्योहार गोदौलिया, दशाश्वमेध और विश्वनाथ गली की गलियों तक फैला हुआ है, जहां लोग होली खेलते हैं।
उत्सव के एक हिस्से के रूप में विशेष भांग तैयार किया जाता है और उसका सेवन किया जाता है। कई भक्त उपवास रखते हैं और पूजा करते हैं, सुख और समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।
रंगभरी एकादशी का महत्व
रंगभरी एकादशी का आध्यात्मिक महत्व (Rangbhari Ekadashi Significance) बहुत अधिक है क्योंकि यह शिव और शक्ति के दिव्य पुनर्मिलन का प्रतीक है। यह उत्तर भारत में होली समारोहों के लिए सांस्कृतिक स्वर भी निर्धारित करता है, जिससे वाराणसी उन पहली जगहों में से एक बन जाता है जहां आधिकारिक तौर पर होली शुरू होती है। यह त्योहार भक्तों को आध्यात्मिकता, भक्ति और उत्सव में एकजुट करता है, तथा भगवान शिव की पवित्र नगरी में एक अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करता है।
आज ही होती है हरिश्चंद्र घाट पर मसान की होली
मसान होली (Masan Holi Varanasi) एक दुर्लभ होली उत्सव है जो वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर मनाए जाने से एक दिन पहले हरिश्चंद्र घाट पर खेला जाता है। पारंपरिक होली के विपरीत, यह भगवान शिव, अघोरियों और श्मशान घाट से जुड़ा है, जो जीवन और मृत्यु के उत्थान का प्रतीक है। भक्त और साधु रंगों के बजाय श्मशान की चिताओं की राख से होली खेलते हैं। उनका मानना है कि इससे वे मोक्ष के करीब पहुंचते हैं। यह त्योहार शिव के तांडव और वैराग्य के दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है। अपनी भयावह सेटिंग के बावजूद, यह पर्व आध्यात्मिकता, निर्भयता और मृत्यु और मुक्ति के देवता शिव के प्रति भक्ति की अभिव्यक्ति है।
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