दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए दिल्ली हमेशा मजबूत गढ़ रही है, लेकिन इस बार बीजेपी ने दिल्ली में चमत्कारी तरीके से सत्ता हासिल की। आख़िर क्या कारण थे, जिनकी वजह से बीजेपी को 27 साल बाद दिल्ली में सत्ता मिली?
आइए जानते हैं कि दिल्ली में इस बार बीजेपी की जीत के पीछे कौन-कौन से महत्वपूर्ण कारण रहे, जिन्होंने आम आदमी पार्टी को जोरदार झटका दिया।
1. मिडिल क्लास का पलटाव
दिल्ली का मध्य वर्ग हमेशा चुनावों में अहम भूमिका निभाता है। आम आदमी पार्टी के पास लंबे वक्त से मध्य वर्ग का समर्थन था, लेकिन इस बार बीजेपी ने इस वर्ग को अपनी तरफ आकर्षित किया। 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी को 55% का समर्थन मिला था, लेकिन इस बार बीजेपी के पक्ष में 39% वोट पड़े, जो पिछले चुनावों से बढ़कर था। लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे से साफ हो गया कि बीजेपी ने मध्यवर्ग के वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी की है। यह बदलता रुझान बीजेपी के लिए अहम साबित हुआ।
2. केजरीवाल का अति आत्मविश्वास
अरविंद केजरीवाल ने पिछले कुछ समय में यह स्वीकार किया था कि चुनावों में अति आत्मविश्वास कभी नहीं दिखाना चाहिए। हालांकि हरियाणा चुनाव में उनका आत्मविश्वास ज्यादा था, जिसका खामियाजा उन्हें दिल्ली में भुगतना पड़ा। हरियाणा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन खराब था, लेकिन दिल्ली में बीजेपी ने वोटों में इज़ाफा किया। दिल्ली चुनाव में बीजेपी को 47.11% और आप को 43.11% वोट मिले। कांग्रेस को महज 6.8% वोट ही मिले।
3. मुफ्तखोरी बनाम वित्तीय स्थिरता
बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों ने चुनावी घोषणापत्र में मुफ्त योजनाओं का ऐलान किया था। जहां एक ओर आम आदमी पार्टी ने महिलाओं को हर महीने 2,100 रुपये देने का वादा किया, वहीं बीजेपी ने गरीब महिलाओं के लिए 2,500 रुपये की मदद देने की बात की। साथ ही, दिवाली और होली पर मुफ्त गैस सिलेंडर देने का वादा किया। यह आर्थिक सुरक्षा और मुफ्तखोरी के बीच एक बड़ा मुद्दा बन गया, जिसे बीजेपी जनता तक बेहतर तरीके से पहुंचाने में सफल रही।
4. एलजी के साथ खींचतान
बीजेपी के लिए एक और बड़ा कारण दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच लंबे समय से चल रही खींचतान रही। अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेताओं ने हमेशा यह आरोप लगाया कि उपराज्यपाल उनकी नीतियों को लागू करने में बाधा डालते हैं। इस विवाद ने आम आदमी पार्टी की छवि को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया और बीजेपी को इसका फायदा मिला।
5. शराब घोटाला और शीश महल की राजनीति
आम आदमी पार्टी की छवि पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के आरोपों ने भी उनकी हार में योगदान दिया। “शीश महल” विवाद ने पार्टी की ईमानदारी को सवालों के घेरे में डाला। साथ ही, शराब नीति से जुड़े भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन ने भी पार्टी की विश्वसनीयता को कमजोर किया। बीजेपी ने इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया, जिससे आम आदमी पार्टी को दिल्ली में नुकसान उठाना पड़ा।
6. बीजेपी की ‘नो फेस’ स्ट्रैटेजी
बीजेपी की एक और बड़ी चुनावी रणनीति रही ‘नो फेस’ स्ट्रैटेजी। इस रणनीति में पार्टी ने मुख्यमंत्री के उम्मीदवार का नाम नहीं घोषित किया, जिससे पार्टी के वोटर्स विभाजित नहीं हुए और सभी ने एकजुट होकर बीजेपी को वोट दिया। बीजेपी ने इस रणनीति का उपयोग हरियाणा, मध्य प्रदेश, और राजस्थान जैसे राज्यों में भी किया है।
7. यमुना जल में जहर का मुद्दा
दिल्ली में यमुना जल में जहर घोलने के आरोपों ने भी आम आदमी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया। बीजेपी ने इस मुद्दे को जमकर उठाया और आम आदमी पार्टी को घेरा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य बीजेपी नेताओं ने इसे गंभीर मुद्दा बताया, जिससे केजरीवाल और उनकी पार्टी को नुकसान हुआ।
8. AAP के नए चेहरे और उनकी हार
आम आदमी पार्टी ने इस बार चुनावी मैदान में कई नए चेहरों को उतारा था, जिनमें से अधिकांश जीत नहीं पाए। चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी की हार का कारण यह भी था कि पुराने और अनुभवी नेताओं को नजरअंदाज किया गया और नए चेहरों को मौका दिया गया, जिनका जनता में विश्वास नहीं था।
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