How Modi Government Handled Coup Makers from West Asia to South Asia

पश्चिम एशिया से दक्षिण एशिया तक… मोदी सरकार ने तख्तापलट करने वालों को कैसे संभाला?

पश्चिम एशिया से लेकर दक्षिण एशिया तक, एक के बाद एक तख्तापलट और राजनीतिक उथल-पुथल हो रही है, और भारत ने हर एक पर सधी हुई कूटनीतिक चालों के साथ प्रतिक्रिया दी है। अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी से लेकर, श्रीलंका में तख्तापलट तक, मोदी सरकार ने विदेश नीति में लचीलापन और सशक्त नेतृत्व दिखाया है। सीरिया में हुए तख्तापलट का असर भारत पर किस तरह पड़ेगा, इस पर भी भारतीय सरकार की रणनीति बेहद अहम हो सकती है। आइए, जानते हैं कि मोदी सरकार ने इन देशों में होने वाली राजनीतिक हलचलों को कैसे हैंडल किया है और आने वाले समय में भारत के लिए क्या संभावनाएं हो सकती हैं।

अफगानिस्तान में तालिबान को कैसे हैंडल किया भारत ने?

अफगानिस्तान में 2021 में तालिबान की वापसी के बाद भारत के लिए नई चुनौतियां सामने आई थीं। खासतौर से, जब भारत ने तालिबान के साथ किसी भी प्रकार के कूटनीतिक संबंध स्थापित नहीं किए थे। तालिबान के पहले शासन (1996-2001) के दौरान भारत ने इस्लामाबाद द्वारा तालिबान को समर्थन देने की आलोचना की थी, और भारत ने अफगानिस्तान में अपनी परियोजनाओं को बढ़ावा दिया था। 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के साथ, भारत को अपने रणनीतिक दृष्टिकोण में बदलाव लाना पड़ा।

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भारत ने इस स्थिति में तालिबान से संपर्क स्थापित करने का निर्णय लिया और अब तालिबान भी भारत के महत्व को समझने लगा है। अफगानिस्तान में भारत के लगभग 500 विकास परियोजनाएं चल रही हैं, और तालिबान ने अब भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की इच्छा जताई है। पाकिस्तान, जो तालिबान का पुराना समर्थन करता रहा है, को तालिबान से बहुत कम समर्थन मिला, और इसने भारत के साथ संपर्क बनाए रखने की दिशा में कदम बढ़ाए।

Syria War

सीरिया में असद का पतन: भारत ने क्या किया?

सीरिया में हाल ही में हुए तख्तापलट के बाद, जहां राष्ट्रपति बशर अल-असद इस्तीफा देकर रूस में शरण ले चुके हैं, देश में हयात तहरीर अल-शाम (HTS) का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। सीरिया का यह राजनीतिक संकट पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और इजराइल के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि ईरान का सीरिया से दूर होना उनकी रणनीतिक स्थितियों को मजबूत करेगा।

भारत ने इस संकट के दौरान भी एक सधे हुए रुख को अपनाया है। भारत ने सीरिया की संप्रभुता और एकता का सम्मान करते हुए, सभी पक्षों से मिलकर एक शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता पर जोर दिया है। मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि सीरिया में किसी भी प्रकार की बदलाव के बाद भी भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों में कोई बड़ा फर्क न पड़े। सीरिया में भारत के व्यापारिक हित मजबूत रहे हैं, खासकर पावर प्लांट, IT इंफ्रास्ट्रक्चर, और ऑयल सेक्टर के क्षेत्र में। सीरिया की नई सरकार को अगर भारत से सहयोग चाहिए तो उसे अपने कूटनीतिक और व्यापारिक हितों को ध्यान में रखना होगा।

श्रीलंका में तख्तापलट: भारत ने कैसे खेला बड़ा रोल?

श्रीलंका में 2022 में हुए आर्थिक संकट के कारण जब तख्तापलट हुआ, तब भारत ने अपने पड़ोसी देश की मदद के लिए तुरंत कदम उठाए। भारत ने श्रीलंका को 4.5 बिलियन डॉलर से अधिक की आर्थिक और मानवीय सहायता दी। इसके बाद, जब चीन समर्थक वामपंथी नेता अनुरा दिसानायके ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की, तो भारत को फिर से यह चिंता होने लगी कि कहीं श्रीलंका चीन के साथ अपने संबंधों को और मजबूत न कर ले।

हालांकि, मोदी सरकार की रणनीति ने यह सुनिश्चित किया कि श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों में कोई नकारात्मक बदलाव न हो। दिसानायके, जो पहले भारत विरोधी माने जाते थे, ने भारत के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई और यह स्पष्ट किया कि श्रीलंका का क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए भारत का समर्थन रहेगा।

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बांग्लादेश में तख्तापलट: भारत का क्या असर होगा?

भारत के पड़ोसी बांग्लादेश में अगस्त में हुए तख्तापलट के बाद, शेख हसीना की सरकार को बेदखल कर दी गई और सेना ने मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार का गठन किया। बांग्लादेश की नीतियों में बदलाव देखने को मिल रहा है, जिसमें पाकिस्तान के साथ करीबी रिश्ते बनाने की कोशिश की जा रही है।

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हालांकि, बांग्लादेश के लिए भारत को नजरअंदाज करना संभव नहीं है। भारत ने कई बार बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता जताई है। बांग्लादेश को बिजली संकट और अनाज की कमी जैसी समस्याओं से निपटने के लिए भारत से मदद लेनी पड़ी है। इसके बावजूद, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के लिए भारत के साथ रिश्ते बनाए रखना जरूरी होगा, और यह स्पष्ट है कि भारत का प्रभाव बांग्लादेश पर बना रहेगा।