Israel Hamas ceasefire

इसराइल-हमास के बीच हुए युद्धविराम का भारत पर क्या होगा इसका असर? जानें पूरी डिटेल

Israel Hamas ceasefire: 7 अक्टूबर 2023 को हमास के चरमपंथियों ने दक्षिणी इजराइल पर हमला किया। इसके जवाब में इजराइल (Israel) ने गाजा में हमले शुरू कर दिए। हमास (Hamas) के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इन हमलों में अब तक 46,700 लोगों की जान जा चुकी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध ने न केवल मध्यपूर्व को अस्थिर किया है, बल्कि इसका असर पूरी दुनिया पर भी पड़ा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। इसी कारण भारतीय विदेश मंत्रालय ने गाजा में हुए युद्धविराम और बंधकों की रिहाई के समझौते का स्वागत किया है।

विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है, “हमें उम्मीद है कि इस समझौते के बाद गाजा के लोगों को बिना किसी रुकावट के मानवीय मदद मिलती रहेगी। भारत हमेशा से बंधकों की रिहाई, युद्धविराम और कूटनीति के जरिए इस मामले को सुलझाने की वकालत करता रहा है।”

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने बताया है कि इस समझौते को तीन चरणों में लागू किया जाएगा। इसमें युद्धविराम (ceasefire), बंधकों की रिहाई और गाजा के पुनर्निर्माण के कदम शामिल हैं।

इस समझौते (Israel Hamas ceasefire) से भारत को भी कई मामलों में राहत मिल सकती है। मध्यपूर्व में अस्थिरता का असर भारत के आर्थिक और सामरिक हितों पर पड़ा है। अब, जब युद्धविराम हो गया है, तो भारत को उम्मीद है कि इससे उसकी परेशानियां कम होंगी।

यह जानना महत्वपूर्ण है कि इजराइल और हमास के बीच संघर्ष ने भारत के हितों को कैसे प्रभावित किया और अब युद्धविराम से उसे किस तरह का लाभ मिल सकता है।

भारत की ऊर्जा सुरक्षा को राहत 

Israel Hamas ceasefire

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का आयातक देश है, जो अपनी तेल की जरूरत का करीब 85% हिस्सा आयात से पूरा करता है।

यूक्रेन पर हमले के बाद भारत ने रूस से तेल खरीदना बढ़ा दिया था, लेकिन आज भी भारत की तेल जरूरतों का बड़ा हिस्सा मध्यपूर्व के देशों से आता है। अप्रैल से सितंबर 2023 के बीच भारत ने अपनी कुल तेल जरूरत का 44% तेल मध्यपूर्व और अफ्रीकी देशों से खरीदा, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 60% था।

साल 2024 में जब इजराइल ने ईरान पर हमला किया, तो कच्चे तेल के दाम अचानक बढ़कर 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए। इसी तरह, 13 जनवरी 2025 को जब अमेरिका ने रूस पर नए प्रतिबंध लगाए, तो तेल की कीमतें फिर बढ़ गईं।

मध्यपूर्व में अगर हालात खराब होते हैं, तो भारत का तेल आयात महंगा हो जाता है। महंगा तेल भारत की उत्पादन लागत को बढ़ा देता है, जिससे महंगाई पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है।

इजराइल और हमास के बीच संघर्ष विराम से मध्यपूर्व में स्थिरता आने की उम्मीद है। इससे भारत को तेल आयात के मामले में राहत मिलेगी।

हर 10 डॉलर की तेल कीमतों में बढ़ोतरी भारत के चालू खाता घाटे को 0.5% तक बढ़ा देती है। साथ ही, तेल रिफाइनिंग कंपनियों की लागत भी बढ़ जाती है। चूंकि भारत पेट्रोल जैसे रिफाइंड तेल का निर्यात करता है, महंगा कच्चा तेल भारत के निर्यात को महंगा बना देता है।

मध्यपूर्व में शांति और तेल की कीमतों में स्थिरता भारत के लिए बेहद फायदेमंद होगी। इससे न सिर्फ तेल आयात का खर्च कम होगा, बल्कि महंगाई पर भी नियंत्रण पाना आसान होगा।

लाल सागर के जरिये व्यापर करना होगा आसान 

Israel Hamas ceasefire

हमास और इजराइल के बीच जंग के बाद हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में इजराइल जाने वाले जहाजों पर हमले शुरू कर दिए थे। उन्होंने रॉकेट और ड्रोन से कई व्यापारिक जहाजों को निशाना बनाया।

इसकी वजह से यमन के समुद्री तटों और हिंद महासागर के आसपास भारतीय नाविकों और जहाजों की सुरक्षा को बड़ा खतरा हो गया। भारतीय व्यापार पर भी इसका बुरा असर पड़ने की आशंका जताई गई।

भारतीय नौसेना ने इन हमलों से जहाजों को बचाने के लिए कई अभियान चलाए। इन हमलों के चलते शिपिंग लागत भी बढ़ गई थी, जिससे समुद्री व्यापार महंगा हो गया। अगर इस रूट पर शांति बनी रहती है, तो शिपिंग कंपनियों को राहत मिलेगी और व्यापार की रुकावटें खत्म होंगी।

इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स के सीनियर फ़ेलो डॉ. फ़ज़्ज़ुर्रहमान ने बताया कि लाल सागर यूरोप, अफ्रीका और एशिया के बीच व्यापार का एक अहम समुद्री रास्ता है। भारत का 37% से ज्यादा आयात-निर्यात अमेरिका, यूरोप और उत्तरी अफ्रीकी देशों से होता है, और ये ज्यादातर लाल सागर और स्वेज नहर से गुजरता है। इसलिए इस रास्ते पर शांति का महत्व बहुत ज्यादा है।

90 लाख भारतीय खाड़ी देशों में रहते हैं

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भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 1.34 करोड़ एनआरआई में से लगभग 90 लाख खाड़ी देशों में रहते हैं। ये लोग हर साल भारत में करीब 50 से 55 लाख डॉलर की राशि भेजते हैं।

साल 2020-21 में भारत को मिलने वाली इस विदेशी आय में यूएई, सऊदी अरब, कुवैत और क़तर की हिस्सेदारी 29% थी। इसके बाद अमेरिका का स्थान है, जहां से भारतीयों द्वारा भेजी गई राशि में 23.4% का योगदान रहा।

डॉक्टर फ़ज़्ज़ुर्रहमान का कहना है कि अगर मध्यपूर्व में शांति बनी रहती है, तो वहां काम कर रहे भारतीय सुरक्षित रहेंगे और भारत को ज्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं होगी। लेकिन अगर हमास और इजराइल के बीच का युद्ध इन क्षेत्रों तक फैलता, तो भारत को वहां से अपने कामगारों को निकालने के लिए बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती। यह भारत के लिए एक अतिरिक्त आर्थिक बोझ होता।

1990 के दशक में भी भारत को इराक और कुवैत से अपने 1.10 लाख नागरिकों को निकालने के लिए भारी खर्च उठाना पड़ा था।

भारत-इजराइल के रक्षा क्षेत्र को होगा फ़ायदा

Israel Hamas ceasefire

युद्धविराम समझौते के बाद, इजराइल अब भारत के साथ रुके हुए रक्षा सौदों पर फिर से ध्यान दे सकेगा।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, 2012 से 2022 तक इजराइल ने भारत को 2.9 अरब डॉलर के हथियार बेचे। इस दौरान भारत इजराइल का सबसे बड़ा हथियार खरीदार रहा।

2017 में भारत ने इजराइल से 60 करोड़ डॉलर से ज्यादा के हथियार खरीदे थे। वहीं, 2022 में भारत ने इजराइल से 24 करोड़ डॉलर से अधिक के हथियार खरीदे, जो इजराइल के कुल रक्षा निर्यात का 30 प्रतिशत था।

इस दौरान इजराइल ने भारत को सेंसर, फायर कंट्रोल सिस्टम, एयर डिफेंस मिसाइल और यूएवी जैसे रक्षा उपकरण बेचे।

भारत ने हाल ही में बराक एयर डिफेंस सिस्टम, हेरन और स्पाइस सिरीज के गाइडेड बम भी खरीदे हैं। हालांकि, इजराइल और हमास के बीच युद्ध के चलते भारत और इजराइल के रक्षा सहयोग में कोई खास कमी नहीं आई है। लेकिन अब युद्धविराम के बाद यह सहयोग और तेज़ी से बढ़ेगा।

पिछले कुछ सालों में भारत और मध्यपूर्व देशों के बीच रिश्ते और भी मजबूत हुए हैं। दोनों ओर से आर्थिक सहयोग में बढ़ोतरी हुई है, और दोनों देशों में एक-दूसरे में निवेश भी बढ़ा है।

IMEC परियोजना को मिलेगा बल

IMEC

फ़ज़्ज़ुर्रहमान का मानना है कि युद्धविराम के बाद I2U2 (भारत, इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका) के बीच सहयोग और बढ़ेगा। साथ ही इंडिया मिडल ईस्ट कॉरिडोर की परियोजना भी आगे बढ़ेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने हाल ही में कहा था कि युद्धविराम के बाद इंडिया मिडल ईस्ट कॉरिडोर अब हकीकत में बदल सकता है।

इंडिया मिडल ईस्ट कॉरिडोर को चीन के वन बेल्ट वन रोड इनिशिएटिव का एक जवाब माना जा रहा है। इस समझौते पर भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, यूएई, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी और इटली ने हस्ताक्षर किए हैं। यह परियोजना यूरोप और एशिया के बीच रेल और शिपिंग नेटवर्क से यातायात और संवाद का एक नया रास्ता खोलेगी।

हालांकि, 7 अक्टूबर 2023 को इजराइल पर हुए हमास के हमले की वजह से इस परियोजना पर काम आगे नहीं बढ़ सका था।

भारत की सॉफ्ट पावर में होगा इजाफा 

Israel Hamas ceasefire

युद्धविराम का तीसरा चरण गाजा में पुनर्निर्माण है, और भारत इसमें भी शामिल हो सकता है। भारतीय कंपनियों को यहां काम मिलने की संभावना है। पहले ही भारत से कामकाजी लोग इजराइल भेजे जा रहे थे, लेकिन सुरक्षा कारणों से यह प्रक्रिया धीमी हो गई थी। अब युद्धविराम के बाद भारतीय कामगारों की संख्या बढ़ सकती है, और वे इजराइल जा सकेंगे।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजॉल्यूशन के फ़ैकल्टी मेंबर डॉ. प्रेमानंद मिश्रा का कहना है कि गाजा में मानवीय सहायता बढ़ाने के काम में अब तेजी आएगी। भारत इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और शांति की कोशिशों में पूरी तरह से शामिल होगा। यह भारत की सॉफ्ट पावर का बेहतरीन उदाहरण होगा।

वे कहते हैं कि इजराइल और हमास के बीच युद्धविराम भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है, लेकिन यह इस पर निर्भर करेगा कि युद्धविराम को किस तरह लागू किया जाता है।

 

 

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