Indira Ekadashi 2024: आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। पितृ पक्ष में पड़ने के कारण इसका विशेष महत्व है। इंदिरा एकादशी व्रत को मृत्यु के बाद मोक्ष देने वाला माना जाता है और इसलिए, भक्त इस दिन अपने पूर्वजों के लिए उपवास रखते हैं। इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi 2024) व्रत सभी व्रतों में सबसे पवित्र माना जाता है।
इंदिरा एकादशी तिथि और पारण समय
इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi 2024) 28 सितंबर दिन शनिवार को मनाई जाएगी। इस के व्रत के बाद पारण का समय 29 सितंबर को सुबह 06:11 बजे से 08:35 बजे तक है।
इंदिरा एकादशी तिथि 27 सितंबर 2024 को दोपहर 01:20 बजे शुरू होगी
इंदिरा एकादशी तिथि 28 सितंबर, 2024 को दोपहर 02:49 बजे समाप्त होगी
इंदिरा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में महिष्मती नगर के राजा इंद्रसेन भगवान विष्णु के महान भक्त और प्रतापी राजा थे। महिष्मती राज्य में सभी सुखपूर्वक रहते थे, वहां की प्रजा को कोई कष्ट नहीं था। एक दिन, जब राजा अपने मंत्रियों के साथ दरबार में बैठा हुआ विचार-विमर्श कर रहा था, तभी देवर्षि नारद मुनि उनके दरबार में आये।
नारद मुनि ने राजा को बताया कि आपके राज्य में सभी लोग शांतिपूर्ण जीवन जी रहे हैं, लेकिन आपके पिता अपने बुरे कर्मों के कारण यमलोक में निवास करने के लिए मजबूर हैं। यह सुनकर चिंतित राजा इंद्रसेन ने देवर्षि नारद से अपने पिता की कुशलक्षेम पूछी। ऋषि ने उससे कहा कि उसे अपने पिता के पापों से बचने के लिए आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करना होगा।
तब राजा इंद्रसेन ने नारद मुनि से पूछा कि एकादशी का व्रत कैसे किया जाता है? नारद ने उत्तर दिया कि इंदिरा एकादशी से ठीक एक दिन पहले दसवें दिन नदी में स्नान करें और अपने पितरों का श्राद्ध करें। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें और फिर शाम को फलाहार करें। इस व्रत को करने से आपके पिता को पुण्य लाभ मिलेगा। राजा इंद्रसेन ने अपने भाइयों सहित इंदिरा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। परिणामस्वरूप, उनके पिता को मोक्ष मिल गया और राजा इंद्रसेन की मृत्यु के बाद उनकी आत्मा स्वर्ग चली गई।
इंदिरा एकादशी का महत्व
इंदिरा एकादशी का त्योहार बहुत महत्व रखता है क्योंकि जो भक्त इंदिरा एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें समृद्धि, सौभाग्य और उनके पिछले पापों से राहत मिलती है। भक्त पितरों की शांति के लिए इंदिरा एकादशी का व्रत करते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यह व्रत अश्वमेघ यज्ञ के समान ही महत्व रखता है।
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