Women’s Day Special: पीरियड्स में आज भी 50 प्रतिशत महिलाएं यूज करती हैं कपड़ा, जानें इसके कारण

International womens day 2025: मासिक धर्म या पीरियड्स महिलाओं के जीवन का एक अहम हिस्सा है, जो हर महीने एक निश्चित समय पर होते हैं। पीरियड्स का होना इस बात का प्रमाण होता है कि महिला का शरीर खुद को प्रजनन के लिए तैयार कर रहा है। बच्चियों को 13-14 की उम्र में मासिक धर्म होना शुरू हो जाता है। हालांकि, शुरू में किसी को इस बारे में पता नहीं होता, इसलिए उन्हें पहले से बताना जरूरी होता है।

आजकल इस बारे में फिर भी काफी जागरुकता है। टीवी पर एड दिखाए जाते हैं और तमाम तरह के जागरुकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं। हालांकि, फिर भी देश की आधी आबादी का आधा हिस्सा ऐसा है, जो आज भी पीरियड्स में कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। इस विषय पर जागरुकता फैलाने के लिए 2018 में फिल्म ‘पैडमैन’ आई थी, जिसके बाद थोड़ा सुधार जरूर देखने को मिला। हालांकि, फिर भी ज्यादातर महिलाएं आज भी कपड़े का ही इस्तेमाल कर रही हैं। जबकि यह हेल्थ के लिए बहुत नुकसानदायक हो सकता है।

आज भी पीडियड्स में कपड़ा यूज करती हैं महिलाएं

8 मार्च 2025 को इंटरनेशनल विमेंस डे सेलिब्रेट किया जा रहा है। ऐसे में जहां हर कोई महिलाओं के सशक्तिकरण की बात कर रहा है, ऐसे में हम आपको बताते हैं कि जमीनी स्तर पर कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर काम किया जाना बाकी है। इन्हीं में से एक विषय महिलाओं का पीरियड्स में कपड़ा इस्तेमाल किया जाना है। दरअसल, साल 2022 की ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (एनएफएचएस) की रिपोर्ट के मुताबिक, आज भी 15-24 एज ग्रुप की लगभग 50 प्रतिशत लड़कियां पीरियड्स में कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। कपड़े का इस्तेमाल महिला की हेल्थ को नुकसान पहुंचा सकता है।

नई दौर में कितना हुआ है सुधार?

दरअसल, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि महंगाई के इस दौर में जहां पुरुष घर चलाने के लिए नौकरी की खोज में शहरों में बस गए हैं, वहीं उनकी पत्नियां आज भी गांव में रह रही हैं। आज भी कुछ गांव ऐसे हैं, जहां पैड्स के बारे में महिलाएं इतनी जागरुक नहीं हैं और वे अपने मासिक धर्म में कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं। इसका एक कारण पैसे की कमी भी हो सकता है।

‘एनएफएचएस’ की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 15-24 की उम्र की 64 महिलाएं सैनिटरी नैपकिन यूज करती हैं। 50 प्रतिशत महिलाएं कपड़ा यूज करती हैं और 15 प्रतिशत लोकल नैपकिन इस्तेमाल करती हैं। कुल मिलाकर, इस आयु वर्ग की 78 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स के दिनों में साफ पैड यूज करती हैं।

एक स्टडी में ऐसा कहा गया है कि भारत की 35.5 करोड़ महिलाओं को पीरियड्स होते हैं, जिनका सिर्फ 36% हिस्सा ही सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करता है। जबकि बाकी महिलाएं पुराना कपड़ा और भूसी व पत्तियां जैसी चीजें इस्तेमाल करती हैं।

पीडियड्स में कपड़ा इस्तेमाल करने के नुकसान

  • इंफेक्शन होने का डर– बता दें कि पीरियड्स में कपड़ा यूज करना सही नहीं होता है, इसके काफी नुकसान होते हैं। अगर आप पुराना कपड़ा इस्तेमाल कर रही हैं, तो इससे इंफेक्शन का खतरा हो सकता है। स्टडीज में ऐसा साबित हुआ है कि कपड़े के इस्तेमाल से बैक्टीरियल वेजिनोसिस (यूटीआई) जैसे इंफेक्शन हो सकते हैं।
  • प्रेग्नेंट होने में मुश्किल- कपड़े के इस्तेमाल से जब बैक्टीरियल वेजिनोसिस (यूटीआई) जैसा इंफेक्शन होता है, तो इससे पैल्विक संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। इसके चलते महिला को प्रेग्नेंट होने में समस्या हो सकती है।
  • सर्वाइकल कैंसर का खतरा- सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में होने वाला सबसे खतरनाक कैंसर है। इसके होने का एक कारण पीरियड्स में खराब कपड़े का इस्तेमाल करना भी हो सकता है।

महिलाएं क्यों नहीं खरीदतीं पैड्स?

हालांकि, महिलाओं द्वारा पैड्स न खरीदने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें दुकान से खरीदने में शर्म आना, पैड्स को बेकार का खर्च समझना, पैड्स का ज्यादा महंगा होना आदि हो सकते हैं।

पीरियड्स के लिए महिलाओं को जागरुक करने के लिए चल रहीं ये पहल

हालांकि, महिलाओं को पीरियड्स में कपड़े की जगह पैड्स का इस्तेमाल करने के लिए जागरुक करने के लिहाज से कई पहल चलाई जा रही हैं। ‘प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना’ (पीएमबीजेपी) के तहत देश भर के केंद्रों में सैनिटरी नैपकिन मिनिमम 1 रुपए प्रति पैड की दर से उपलब्ध कराए जाते हैं। ताकि हर महिला इन्हें इस्तेमाल कर सकें। वहीं, कुछ गांवों में तो अब घर-घर तक जाकर महिलाओं को इस स्कीम का लाभ दिया जा रहा है। इसके अलावा, स्कूलों में भी बच्चियों को इसके बारे में जागरुक किया जा रहा है।

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