क्या सीएम हाउस में आंबेडकर-भगत सिंह की फोटो अनिवार्य? BJP-AAP आमने-सामने, जानें क्या कहता है नियम

दिल्ली में महापुरुषों की तस्वीरों को लेकर एक नया विवाद छिड़ गया है। विपक्ष की नेता और पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने आरोप लगाया है कि नई मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के आते ही सीएम ऑफिस से बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर और सरदार भगत सिंह की तस्वीरें हटा दी गई हैं। इस पर सीएम ऑफिस ने मीडिया को तस्वीरें जारी करके दावा किया कि तस्वीरें हटाई नहीं गई हैं। आइए जानते हैं कि क्या सीएम हाउस में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और बाबा साहेब की तस्वीरें लगाना अनिवार्य है? क्या है पूरा प्रावधान और इससे पहले कब-कब तस्वीरों को लेकर विवाद हुआ है?

आतिशी का आरोप: तस्वीरें हटाई गईं

दिल्ली विधानसभा में विपक्ष की नेता और AAP की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने कहा कि भाजपा ने देश को अपना दलित और सिख विरोधी चेहरा दिखा दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सत्ता में आते ही सीएम रेखा गुप्ता के कार्यालय से बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर और सरदार भगत सिंह की तस्वीरें हटा दी गईं। आतिशी ने सवाल उठाया कि क्या भाजपा यह सोचती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाबा साहेब और भगत सिंह से महान हैं?

सीएम ऑफिस का जवाब: तस्वीरें नहीं हटीं

आतिशी के आरोपों के बाद सीएम ऑफिस ने मीडिया को तस्वीरें जारी करके दावा किया कि तस्वीरें हटाई नहीं गई हैं। इन तस्वीरों में दिखाया गया कि दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और सभी मंत्रियों के कमरों में महात्मा गांधी, बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर, सरदार भगत सिंह, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीरें लगी हुई हैं।

क्या सरकारी कार्यालयों में तस्वीरें लगाना अनिवार्य है?

सवाल यह है कि क्या सीएम हाउस और सरकारी कार्यालयों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और बाबा साहेब की तस्वीरें लगाना अनिवार्य है? दरअसल, संविधान या किसी कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। न तो संसद और न ही किसी राज्य विधानसभा ने ऐसा कोई कानून बनाया है जो महापुरुषों की तस्वीरें लगाने को अनिवार्य करता हो।
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे ने बताया कि देश के कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीरें लगाना जरूरी है। यह पूरी तरह से सरकार या अधिकारियों की इच्छा पर निर्भर करता है।

राजनीति में महापुरुषों का इस्तेमाल

देश में दलगत राजनीति के चलते महापुरुषों के नाम, प्रतीक चिह्न और तस्वीरों का इस्तेमाल वोट बैंक के लिए किया जाता रहा है। जब किसी की तस्वीर हटाई जाती है या लगाई जाती है, तो दूसरी पार्टियां इसे राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती हैं। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी कभी नहीं कहा था कि उनकी तस्वीर हर सरकारी कार्यालय में लगाई जाए। ऐसे में जब कोई प्रावधान नहीं है, तो महापुरुषों के नाम पर राजनीति करना आम बात हो गई है।

भाजपा का पलटवार

AAP की नेता आतिशी के आरोपों के बाद भाजपा ने भी जवाबी हमला किया। भाजपा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करके दावा किया कि दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और सभी मंत्रियों के कमरों में महात्मा गांधी, बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर, सरदार भगत सिंह, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीरें लगी हुई हैं।

पहले भी हुए हैं विवाद

महापुरुषों की तस्वीरों और प्रतीक चिह्नों को लेकर पहले भी विवाद होते रहे हैं। कभी पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर तो कभी तस्वीरें हटाने-लगाने को लेकर राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती रही हैं। पंजाब में भगवंत मान के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी ऐसा ही एक विवाद हुआ था। भाजपा ने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री के कार्यालय से महाराजा रणजीत सिंह की तस्वीर हटा दी गई है। भाजपा के प्रदेश महासचिव सुभाष शर्मा ने तब ट्वीट कर कहा था कि भगवंत मान ने पंजाब के गौरव महाराजा रणजीत सिंह का अपमान किया है।

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