probe 3 mission: आज एक ऐतिहासिक दिन है जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के प्रोबा-3 मिशन को अंतरिक्ष में भेजने जा रहा है। यह मिशन न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत और यूरोप के बीच अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी है। आइए इस मिशन के बारे में विस्तार से जानते हैं।
क्या है प्रोबा-3 मिशन?
प्रोबा-3 मिशन (probe 3 mission) का मुख्य उद्देश्य सूर्य के बाहरी वायुमंडल, जिसे कोरोना कहा जाता है, का अध्ययन करना है। यह मिशन दो अंतरिक्ष यानों का उपयोग करेगा जो एक साथ उड़ान भरेंगे और एक विशेष तकनीक का उपयोग करके सूर्य का अध्ययन करेंगे। इस तकनीक को ‘प्रिसीजन फॉर्मेशन फ्लाइंग’ कहा जाता है।
इन दोनों अंतरिक्ष यानों का नाम है ‘कोरोनाग्राफ’ और ‘ऑक्यूल्टर’। ये दोनों अंतरिक्ष यान मिलकर एक कृत्रिम सूर्य ग्रहण बनाएंगे। इसका मुख्य उद्देश्य सूर्य के बाहरी वायुमंडल यानी कोरोना का अध्ययन करना है। ये दोनों यान एक साथ उड़ान भरेंगे और एक दूसरे से केवल 150 मीटर की दूरी पर रहेंगे। ऑक्यूल्टर यान सूर्य के प्रकाश को रोकेगा, जबकि कोरोनाग्राफ यान सूर्य के कोरोना का अध्ययन करेगा।
कोरोना सूर्य का सबसे बाहरी हिस्सा होता है जो बहुत गर्म होता है। यह सूर्य की सतह से भी ज्यादा गर्म होता है। वैज्ञानिक लंबे समय से इसका अध्ययन करना चाहते थे लेकिन यह बहुत मुश्किल था। प्रोबा-3 मिशन इस मुश्किल को आसान बनाएगा।
कैसे करेगा काम probe 3?
इस मिशन में ‘ऑक्यूल्टर’ नाम का अंतरिक्ष यान सूर्य के सामने आकर उसकी रोशनी को रोकेगा। इससे एक कृत्रिम सूर्य ग्रहण जैसी स्थिति बनेगी। इस दौरान दूसरा अंतरिक्ष यान ‘कोरोनाग्राफ’ सूर्य के कोरोना का अध्ययन करेगा। यह एक तरह से वैज्ञानिकों के लिए ‘सूर्य ग्रहण ऑन डिमांड’ जैसा होगा।
इस मिशन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह वैज्ञानिकों को सूर्य के कोरोना का लगातार 6 घंटे तक अध्ययन करने की अनुमति देगा। यह प्राकृतिक सूर्य ग्रहण के दौरान मिलने वाले कुछ मिनटों के अवलोकन से कहीं अधिक है।
प्रक्षेपण कब और कैसे होगा?
प्रोबा-3 मिशन (probe 3 mission) का प्रक्षेपण आज यानी 4 दिसंबर 2024 को शाम 4:08 बजे होगा। इसके लिए इसरो अपने भरोसेमंद पीएसएलवी रॉकेट का इस्तेमाल करेगा। यह पीएसएलवी की 61वीं उड़ान होगी और पीएसएलवी-एक्सएल वेरिएंट की 26वीं उड़ान होगी।
प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से होगा। रॉकेट लगभग 18 मिनट की यात्रा के बाद 550 किलोग्राम वजन के प्रोबा-3 उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षा में स्थापित करेगा।
कल शाम 3:08 बजे से 25 घंटे की उलटी गिनती शुरू हो गई थी। इसरो के अध्यक्ष डॉ. एस. सोमनाथ ने मिशन की सफलता के लिए श्री चेंगलम्मा परमेश्वरी मंदिर में पूजा-अर्चना भी की।
यह मिशन न केवल वैज्ञानिक महत्व का है, बल्कि यह इसरो की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती प्रतिष्ठा का भी प्रतीक है। न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल), जो इसरो की वाणिज्यिक शाखा है, ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी से यह अनुबंध प्राप्त किया है।
प्रोबा-3 मिशन की खास बातें
प्रोबा-3 मिशन कई मायनों में अनोखा है। आइए जानते हैं इसकी कुछ खास बातें:
• यह मिशन दो अंतरिक्ष यानों का इस्तेमाल करके एक बड़े अंतरिक्ष यान की तरह काम करेगा। दोनों अंतरिक्ष यान एक-दूसरे से 150 मीटर की दूरी पर रहेंगे।
• इस मिशन में दोनों अंतरिक्ष यान मिलीमीटर स्तर की सटीकता के साथ एक-दूसरे के साथ उड़ान भरेंगे। यह अंतरिक्ष में सटीक फॉर्मेशन फ्लाइंग की तकनीक का प्रदर्शन करेगा।
• प्रोबा-3 मिशन हर 19.7 घंटे में एक चक्कर लगाएगा। इस दौरान यह पृथ्वी से 60,530 किलोमीटर की ऊंचाई तक जाएगा और फिर 600 किलोमीटर की ऊंचाई तक आएगा।
• यह मिशन हर चक्कर में 6 घंटे तक सूर्य के कोरोना का अध्ययन करेगा। यह प्राकृतिक सूर्य ग्रहण की तुलना में 100 गुना ज्यादा समय है।
• प्रोबा-3 मिशन ईंधन की खपत को कम करने के लिए एक खास तकनीक का इस्तेमाल करेगा। यह 6 घंटे सटीक फॉर्मेशन फ्लाइंग करेगा और बाकी समय में निष्क्रिय रूप से अपनी कक्षा में घूमता रहेगा।
प्रोबा-3 मिशन का वैज्ञानिक महत्व
प्रोबा-3 मिशन वैज्ञानिकों को सूर्य के कोरोना के बारे में बहुत कुछ सिखाएगा। कोरोना सूर्य का सबसे बाहरी और सबसे गर्म हिस्सा है। यह सूर्य की सतह से भी अधिक गर्म होता है, जो वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली है। इस मिशन से वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश करेंगे कि ऐसा क्यों होता है।
कोरोना का अध्ययन अंतरिक्ष मौसम को समझने के लिए भी महत्वपूर्ण है। अंतरिक्ष मौसम हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करता है, जैसे संचार प्रणालियों और जीपीएस नेविगेशन पर असर डालता है। प्रोबा-3 मिशन से प्राप्त जानकारी वैज्ञानिकों को बेहतर अंतरिक्ष मौसम भविष्यवाणियां करने में मदद करेगी।
इसके अलावा, यह मिशन अंतरिक्ष में सटीक फॉर्मेशन फ्लाइंग की तकनीक का परीक्षण भी करेगा। यह तकनीक भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है, जहां कई अंतरिक्ष यानों को एक साथ काम करने की आवश्यकता होगी।
भारत के लिए प्रोबा-3 मिशन का महत्व
प्रोबा-3 मिशन भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, यह मिशन इसरो की तकनीकी क्षमताओं को दुनिया के सामने प्रदर्शित करेगा। यह दिखाएगा कि भारत अब अंतरराष्ट्रीय स्तर के जटिल अंतरिक्ष मिशनों को अंजाम देने में सक्षम है।
दूसरा, यह मिशन भारतीय वैज्ञानिकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करने का अवसर प्रदान करेगा। कुछ भारतीय सौर भौतिक विज्ञानी पहले से ही बेल्जियम के वैज्ञानिकों के साथ प्रोबा-3 मिशन के वैज्ञानिक लक्ष्यों को परिभाषित करने में सहयोग कर रहे हैं। इस मिशन से प्राप्त डेटा भारतीय शोधकर्ताओं को सूर्य और अंतरिक्ष मौसम के बारे में नई जानकारी प्राप्त करने में मदद करेगा।
तीसरा, यह मिशन भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा। न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड द्वारा यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी से प्राप्त यह अनुबंध दिखाता है कि भारत अब अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गया है।