प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया फ्रांस दौरा काफी महत्वपूर्ण रहा, जिसमें उन्होंने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ द्विपक्षीय वार्ता की और साथ ही इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) का निरीक्षण भी किया। यह ITER रिएक्टर, जो दक्षिणी फ्रांस के कैडराचे में स्थित है, दुनिया का सबसे विकसित और भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है। चलिए जानते हैं इस परियोजना के बारे में, जिसमें भारत भी एक अहम साझेदार है, और इससे भारत को क्या-क्या फायदे हो सकते हैं।
ITER: धरती पर सूरज बनाने की कोशिश
ITER का मतलब है “इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर”, और यह दुनिया के सबसे बड़े और सबसे महंगे फ्यूजन ऊर्जा प्रोजेक्ट्स में से एक है। इसका मुख्य उद्देश्य सूर्य जैसी न्यूक्लियर फ्यूजन प्रक्रिया को धरती पर नियंत्रित तरीके से करना है, ताकि दुनिया को स्वच्छ और असीमित ऊर्जा मिल सके। यह प्रोजेक्ट “द वे प्रोजेक्ट” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसका लक्ष्य दुनिया को साफ और सस्ती ऊर्जा का स्रोत प्रदान करना है, जो किसी भी तरह के हानिकारक प्रदूषण या ग्रीनहाउस गैसों से मुक्त हो।
इस परियोजना में सात प्रमुख देश साझेदार हैं: भारत, फ्रांस, चीन, अमेरिका, दक्षिण कोरिया, रूस, जापान, और यूरोपीय संघ (EU)। कुल मिलाकर, ITER प्रोजेक्ट पर 22 बिलियन यूरो (लगभग 2 लाख करोड़ रुपये) का खर्च अनुमानित है, और भारत का इस प्रोजेक्ट में योगदान करीब 10 प्रतिशत है। इसके बावजूद, भारत इस प्रौद्योगिकी का शत-प्रतिशत इस्तेमाल कर पाएगा।
दुनिया का सबसे बड़ा “रेफ्रिजरेटर”
ITER प्रोजेक्ट में भारत ने एक विशेष योगदान दिया है। भारत ने ITER के लिए दुनिया का सबसे बड़ा रेफ्रिजरेटर तैयार किया है, जो कि गुजरात में निर्मित हुआ है। इसका वजन 3,800 टन से अधिक है, और इसकी ऊंचाई दिल्ली स्थित कुतुब मीनार से आधी है। यह भारत की तकनीकी क्षमता को दर्शाता है, और इसके जरिए भारत ने ITER में ठंडे करने के लिए इस्तेमाल होने वाली तकनीक में अहम भूमिका निभाई है। इसके अलावा, भारत के इंस्टीट्यूट फॉर प्लाज्मा रिसर्च (ओवरसीज) ने ITER के मैग्नेटिक केज को सुपरकंडक्टिंग मैगनेट्स के साथ ठंडा रखने में भी मदद की है। यह मैग्नेटिक केज हॉट प्लाज्मा को नियंत्रित करता है, और इसमें इस्तेमाल होने वाली क्रायोलाइंस का नेटवर्क भारत द्वारा तैयार किया गया है।
सूरज से ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया
हम जानते हैं कि सूर्य से ऊर्जा मिलना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए होती है। सूर्य के केंद्र में हाइड्रोजन के परमाणु आपस में मिलकर हीलियम बनाने की प्रक्रिया में ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। ITER प्रोजेक्ट भी इस न्यूक्लियर फ्यूजन प्रक्रिया को नियंत्रित रूप से धरती पर लाने की कोशिश कर रहा है। इस प्रोजेक्ट के तहत हाइड्रोजन के आइसोटोप्स (जैसे कि ड्यूटेरियम और ट्राइटियम) को उच्च तापमान और दबाव पर मिलाकर ऊर्जा उत्पन्न करने की कोशिश की जा रही है।
विशेष बात यह है कि न्यूक्लियर फ्यूजन के इस नियंत्रित रूप में कोई भी हानिकारक गैसें या प्रदूषण नहीं निकलेंगे। इसका मतलब है कि इससे मिलने वाली ऊर्जा न सिर्फ असीमित होगी, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी पूरी तरह सुरक्षित होगी। इसके परिणामस्वरूप जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल घटेगा, जिससे कार्बन उत्सर्जन और ग्रीनहाउस गैसों का स्तर कम होगा, और पृथ्वी का तापमान नियंत्रित रहेगा।
ITER के माध्यम से भारत को क्या फायदा होगा?
भारत को ITER प्रोजेक्ट से कई फायदे मिल सकते हैं। सबसे बड़ा फायदा यह है कि भारत को इस प्रौद्योगिकी का पूरी तरह से लाभ मिलेगा। ITER में जो तकनीक विकसित हो रही है, वह भविष्य में भारत के ऊर्जा क्षेत्र में क्रांति ला सकती है। इससे भारत को न केवल ऊर्जा की आपूर्ति होगी, बल्कि यह देश की ऊर्जा सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा देगा।
भारत में बढ़ते ऊर्जा संकट को देखते हुए, ITER जैसी प्रौद्योगिकियां ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की खोज में अहम भूमिका निभा सकती हैं। भारत को ITER में शामिल होने से न केवल फ्यूजन ऊर्जा की तकनीकी क्षमता हासिल होगी, बल्कि यह भारत के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए एक बड़ा अवसर है, जिसमें उन्हें नई तकनीकों पर काम करने का मौका मिलेगा। इसके अलावा, इस परियोजना से भारत में नए रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। ITER जैसे बड़े साइंस प्रोजेक्ट में भागीदार बनने से भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी वैज्ञानिक क्षमता को साबित करने का मौका मिलेगा, और भविष्य में ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की उपस्थिति और भी मजबूत होगी।
क्या है ITER के बारे में विशेष?
ITER प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह पूरी दुनिया के लिए एक साझा परियोजना है। इसमें दुनिया भर के देशों की साझा भागीदारी है, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती है। इसके द्वारा प्राप्त ऊर्जा पूरी तरह से कार्बन मुक्त होगी, जो पर्यावरण के लिए एक बड़ी राहत होगी। न्यूक्लियर फ्यूजन, जो प्राकृतिक रूप से सूरज में होता है, अब मानव निर्मित तरीके से धरती पर भी किया जा सकता है, और यह ऊर्जा के भविष्य का रूप हो सकता है।
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