Jivitputrika Vrat 2024: बुधवार को है जितिया, माताएं अपने बच्चों के लिए रखती हैं ये व्रत, जानें शुभ मुहूर्त
Jivitputrika Vrat 2024: जीवित्पुत्रिका व्रत अथवा जितिया व्रत हिंदू माह आश्विन के कृष्ण पक्ष के 8वें दिन मनाया जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की खुशहाली के लिए निर्जला व्रत रहती हैं। यह त्योहार मुख्य रूप से उत्तरी भारत के राज्यों जैसे बिहार, झारखण्ड तथा उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। भारत के पडोसी देश नेपाल में भी यह पर्व मनाया जाता है। इस व्रत (Jivitputrika Vrat 2024) में माताएं अपने बच्चों के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए लगभग 36 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं।
बुधवार को है जीवित्पुत्रिका व्रत?
जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat 2024) 25 सितंबर 2024 बुधवार को मनाया जाएगा। तीज की तरह यह व्रत भी निर्जला यानि बिना पानी अथवा भोजन के रखा जाता है। द्रिक पंचांग के अनुसार, अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर, 2024 को दोपहर 12:38 बजे शुरू होगी और 25 सितंबर, 2024 को दोपहर 12:10 बजे समाप्त होगी।
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 24, 2024 को 14:08 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – सितम्बर 25, 2024 को 13:40 बजे
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार जो भी मां इस व्रत को रखती है उसे कभी भी अपनी संतान का वियोग नहीं सहना पड़ता है। उसके बच्चों को लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है और वे जीवन भर सभी दुखों और कठिनाइयों से सुरक्षित रहते हैं। इस व्रत में गंधर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।
जीवित्पुत्रिका नाम के पीछे का इतिहास
महाभारत युद्ध के दौरान अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा क्रोधित हो गया। गुस्से में आकर वह पांडव शिविर में घुस गया, जहां पांच लोग सो रहे थे। उसने अपने पिता का बदला लेने के लिए पांडवों को समझकर उन पांचों को मार डाला। हालांकि, वे वास्तव में द्रौपदी के पांच पुत्र थे। जब अर्जुन को इस बात का पता चला तो उसने अश्वत्थामा को पकड़ लिया और उसकी दिव्य मणि छीन ली। अश्वत्थामा का क्रोध तीव्र हो गया और उसने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के अजन्मे बच्चे को नष्ट कर दिया, जबकि वह अभी भी गर्भ में था। हालांकि, भगवान कृष्ण ने अपने सभी गुण अजन्मे बच्चे में स्थानांतरित करके उसे पुनर्जीवित कर दिया और बच्चा फिर से जीवित हो गया। चूंकि, बच्चा मर गया था और पुनर्जीवित हो गया, इसलिए उसका नाम जीवित्पुत्रिका (जीवित पुत्र) रखा गया। जीवित्पुत्रिका व्रत इस प्रकार इस कहानी में निहित है, जो बच्चों के लिए जीवन, सुरक्षा और आशीर्वाद का प्रतीक है।
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