आजकल नौकरी ढूंढना किसी जंग लड़ने से कम नहीं है। टैलेंट की भरमार है, लेकिन अच्छी नौकरियों की ऐसी किल्लत कि लोग जो मौका मिले, उसे हाथ से जाने नहीं देना चाहते। मौका मिलते ही हां कर देते हैं, लेकिन इसी चक्कर में कई बार कंपनियां मौके का फायदा उठाकर कर्मचारियों को निचोड़ने में लग जाती हैं। नियम-कायदे ताक पर रखकर शोषण का खेल शुरू हो जाता है। ऐसा ही एक किस्सा इन दिनों सुर्खियों में है, जहां एक इंटरव्यू में पूछे गए पहले सवाल ने ही कैंडिडेट को सोच में डाल दिया और उसकी हालत पतली हो गई। ये पूरा वाकया एक शख्स ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट के r/jobs ग्रुप पर शेयर किया। उसने अपनी आपबीती बयां की और लोगों से सलाह मांगी कि जो उसने किया, वो सही था या नहीं। उसकी पोस्ट पढ़कर लोग हैरान हैं और कमेंट्स की बाढ़ आ गई है। आइए, इस खबर को डिटेल में समझते हैं कि आखिर माजरा क्या है और क्यों ये किस्सा इतना वायरल हो रहा है।
सपनों की नौकरी का लालच और इंटरव्यू का झटका
शख्स ने अपनी पोस्ट में लिखा कि उसने एक कंपनी में इंटरव्यू दिया था। नौकरी उसके लिए परफेक्ट थी। सैलरी भी मोटी थी और काम ऐसा कि वो दिन-रात लगकर करने को तैयार था। वो बताता है कि वो इंटरव्यू के लिए पहुंचा तो बड़ा खुश था। अंदर गया, हायरिंग मैनेजर से हाथ मिलाया, कुर्सी पर बैठा और सोचा कि अब बस कुछ सवालों का जवाब देना है और नौकरी पक्की। लेकिन फिर जो हुआ, उसने उसके होश उड़ा दिए।
हायरिंग मैनेजर ने पहला सवाल दागा- “अगर आपको अनपेड ओवरटाइम करना पड़े तो आप उसे कैसे हैंडल करेंगे?” ये सुनते ही शख्स के कान खड़े हो गए। उसे लगा कि शायद मैनेजर मजाक कर रहा है। उसने सोचा कि कोई कंपनी इतना बेतुका सवाल पहले ही क्यों पूछेगी? लेकिन मैनेजर का चेहरा देखकर उसे समझ आ गया कि ये मजाक नहीं, बल्कि गंभीर सवाल है। मैनेजर ने आगे कहा, “यहां लोग काम को लेकर बहुत जुझारू हैं। वो टाइम का हिसाब नहीं रखते और बस काम में जुटे रहते हैं।” ये सुनकर शख्स का दिमाग घूम गया। उसे समझ नहीं आया कि जवाब क्या दे। फिर उसने सोचा कि जो मन में आया, वही बोल देता है। उसने कहा, “मुझे समय देने के लिए शुक्रिया, लेकिन मुझे लगता है कि ये जॉब मेरे लिए नहीं है।” इतना कहकर वो उठा और चलता बना।
सोशल मीडिया पर बवाल, लोग बोले- सही किया
शख्स ने अपनी पोस्ट में ये भी पूछा कि क्या उसका ये फैसला सही था? अब रेडिट पर लोग तरह-तरह की राय दे रहे हैं। कोई कह रहा है, “भाई, तूने बिल्कुल ठीक किया। ऐसी कंपनी में काम करने का मतलब अपनी जिंदगी बर्बाद करना है।” एक यूजर ने लिखा, “अनपेड ओवरटाइम पूछने का मतलब साफ है कि वो लोग पहले दिन से ही तेरा शोषण करने की प्लानिंग कर रहे थे। तू बच गया।” कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने कहा कि शायद उसे थोड़ा और बात करके देखना चाहिए था। एक यूजर ने लिखा, “हो सकता है कि वो बस तेरा रिएक्शन चेक कर रहे हों। तूने थोड़ा और सवाल पूछकर कन्फर्म कर लेना चाहिए था।” लेकिन ज्यादातर लोगों ने उसकी तारीफ की और कहा कि उसने अपनी वैल्यू समझी और गलत जगह फंसने से बच गया।
भारत में भी कम नहीं है ऐसा खेल
अब बात सिर्फ उस एक कंपनी की नहीं है। भारत में भी कई जगह ऐसा देखने को मिलता है। बड़ी-बड़ी कंपनियां कर्मचारियों से ओवरटाइम करवाती हैं, लेकिन पैसे देने की बात आती है तो मुंह फेर लेती हैं। ऑफिस में 9 से 5 की नौकरी 9 से 9 तक खिंच जाती है। ऊपर से बॉस का दबाव कि “काम पूरा करो, वरना किसी और को रख लेंगे।” ऐसे में कर्मचारी मजबूरी में चुपचाप काम करते रहते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में आईटी सेक्टर, स्टार्टअप्स और कुछ मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज में अनपेड ओवरटाइम का चलन बढ़ रहा है। कर्मचारी बोलते नहीं, क्योंकि नौकरी जाने का डर रहता है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सही है? क्या कर्मचारी की मेहनत की कोई कीमत नहीं होनी चाहिए?
कंपनी का दावा- हम तो जुझारू लोग ढूंढ रहे थे
शख्स की पोस्ट में मैनेजर ने जो कहा कि “यहां लोग जुझारू हैं और टाइम का हिसाब नहीं रखते”, वो सुनने में तो अच्छा लगता है। लेकिन जरा गहराई में जाएं तो बात साफ हो जाती है। जुझारू का मतलब ये नहीं कि आप कर्मचारी को मशीन की तरह इस्तेमाल करें। अगर कोई कंपनी ये उम्मीद करती है कि आप अपनी जिंदगी का हर पल काम को दे दें, वो भी बिना एक्स्ट्रा पैसे के, तो ये जुझारूपन नहीं, शोषण है। कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि कंपनियां ऐसा इसलिए करती हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि लोग नौकरी के लिए तरस रहे हैं। एक नौकरी के लिए सैकड़ों लोग लाइन में लगे हैं। ऐसे में वो अपने नियम बनाती हैं और कर्मचारियों को मजबूर करती हैं कि या तो उनकी शर्तें मानो या फिर बाहर का रास्ता देखो।
क्या कहता है कानून?
भारत में लेबर लॉ की बात करें तो फैक्ट्रीज एक्ट 1948 और शॉप्स एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत ओवरटाइम के लिए कर्मचारी को एक्स्ट्रा पेमेंट करना जरूरी है। नियम साफ है कि अगर कोई कर्मचारी 8 घंटे से ज्यादा काम करता है, तो उसे ओवरटाइम का पैसा मिलना चाहिए। लेकिन हकीकत में कितनी कंपनियां इसे फॉलो करती हैं? ज्यादातर जगह ये नियम सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाता है। कई कर्मचारी शिकायत भी नहीं करते, क्योंकि उन्हें लगता है कि आवाज उठाने से नौकरी चली जाएगी। ऊपर से कोर्ट-कचहरी का चक्कर कौन मोल लेना चाहेगा? नतीजा ये कि कंपनियां अपनी मनमानी करती रहती हैं।
सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी
रेडिट पर इस पोस्ट के बाद लोग दो खेमों में बंट गए हैं। एक तरफ वो हैं जो कहते हैं कि शख्स ने सही किया, क्योंकि अपनी कीमत समझना जरूरी है। दूसरी तरफ कुछ लोग मानते हैं कि आजकल की मार्केट में नौकरी मिलना मुश्किल है, तो थोड़ा समझौता करना पड़ता है। एक यूजर ने लिखा, “अगर हर कोई ऐसी कंपनियों को ना कहने लगे, तो इनका शोषण बंद हो जाएगा।” वहीं एक दूसरे ने कहा, “भाई, सैलरी अच्छी थी तो थोड़ा ओवरटाइम कर लेता। आजकल हर जगह तो ऐसा ही चलता है।” इस बहस में कोई सही-गलत नहीं है, बस हर किसी का अपना नजरिया है।
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