Kashmir Terrorism Separatism Peace Process

कश्मीर के अलगाववादियों को मिली हार, अमित शाह के ऐलान ने पाकिस्तान समर्थकों के ख्वाबों का किया अंत!

Kashmir Terrorism Separatism Peace Process:  भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया है, जिसके परिणामस्वरूप कई प्रमुख अलगाववादी संगठन अब मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं। मार्च 2025 में, जम्मू-कश्मीर के दो प्रमुख अलगाववादी संगठन, जेएंडके तहरीकी इस्तेकलाल और जेएंडके तहरीक-ए-इस्तिकामत ने (Kashmir Terrorism Separatism Peace Process) हिंसा का रास्ता छोड़कर भारत की एकता और अखंडता के पक्ष में खड़ा होने का ऐलान किया। इस कदम को गृह मंत्री अमित शाह ने “कश्मीर में शांति की नई सुबह” करार दिया, जो भारत के कश्मीर नीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देता है।

जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध

जमात-ए-इस्लामी, जो कश्मीर में पहले अलगाववाद और आतंकवाद के समर्थन के लिए जाना जाता था, पर 2019 में सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद इस संगठन के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं ने शांति और मुख्यधारा में वापस लौटने की कोशिश की। जमात के कई कार्यकर्ताओं ने आतंकवाद से दूर होकर, भारत की मुख्यधारा में शामिल होने का निर्णय लिया। इस बदलाव ने कश्मीर में हिंसा की प्रवृत्ति को कमजोर किया है और शांति की ओर एक और कदम बढ़ाया है।

 हिंसा के रास्ते को छोड़ने के बाद नए संकेत

1980 और 1990 के दशकों में कश्मीर में आतंकवाद का चेहरा बनने वाला जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) आज शांति की ओर अग्रसर है। इस संगठन के एक धड़े ने 1994 में ही हिंसा का रास्ता छोड़ दिया था और यासीन मलिक के नेतृत्व में यह संगठन एक शांतिपूर्ण आंदोलन में बदल गया। हालांकि बाद में मलिक पर फिर से आतंकवाद से जुड़े आरोप लगे, लेकिन इस निर्णय ने कई युवाओं को हिंसा छोड़ने के लिए प्रेरित किया। फिलहाल, मलिक की गिरफ्तारी के बाद, यह संगठन भी समाप्त हो चुका है और कश्मीर में शांति का वातावरण बन रहा है।


आत्मसमर्पण की लहर और शांति की ओर बढ़ते..

हिजबुल मुजाहिदीन, जो कश्मीर में सबसे बड़े आतंकवादी संगठनों में से एक था, के कई सदस्य 2020 और 2021 के दौरान आत्मसमर्पण करके शांति की ओर बढ़े हैं। इस संगठन के दर्जनों आतंकवादियों ने आत्मसमर्पण किया और मुख्यधारा में वापस लौटने का निर्णय लिया। सुरक्षा बलों की सख्त कार्रवाई और आत्मसमर्पण नीति ने आतंकियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए मजबूर किया। खासकर जुलाई 2020 में जब आत्मसमर्पण की लहर शुरू हुई, तब 50 से अधिक आतंकियों ने अपनी बंदूकें छोड़ दीं और भारत के संविधान का सम्मान करते हुए शांति के रास्ते पर चलने का वादा किया।

आतंकवादियों का सफाया..

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, ऑपरेशन ऑल आउट के तहत 2015 से 2024 तक लगभग 1,607 आतंकवादी मारे गए। 2020 में सबसे अधिक 221 आतंकवादी मारे गए, जब सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों की धरपकड़ तेज कर दी थी। 2024 में भी 75 आतंकवादी मारे गए थे, हालांकि अब आतंकवादियों की संख्या घट गई है, क्योंकि घाटी में युवा अब हिंसा का रास्ता छोड़ने लगे हैं। पाकिस्तान से कश्मीर में आतंकियों को भेजने में भी कमी आई है, क्योंकि एलओसी पर सुरक्षा बलों की चौकसी और कड़ी कार्रवाई ने पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों पर शिकंजा कस दिया है।

अब कश्मीर में एक नई सुबह

यह बदलाव जम्मू और कश्मीर में सरकार की कड़ी नीति और सुरक्षा बलों की सक्रियता का परिणाम है। कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार की रणनीतियों ने न केवल आतंकवादियों को नुकसान पहुँचाया है, बल्कि इन संगठनों को शांति और विकास के मार्ग पर चलने के लिए भी प्रेरित किया है। अब कश्मीर में एक नई सुबह का आगाज हो चुका है, जहां युवा हिंसा और आतंकवाद से दूर होकर अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।

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