CM की कुर्सी का मोह छोड़ हरियाणा चुनाव में उतरेंगे केजरीवाल, कितना मिलेगा फायदा?
हरियाणा में सियासी हलचल
केजरीवाल ने साफ किया है कि वह तब तक मुख्यमंत्री पद पर नहीं बैठेंगे जब तक दिल्ली की जनता अपना फैसला नहीं सुना देती। उनका यह कदम हरियाणा में चुनावी माहौल को और गर्मा सकता है। दिल्ली की सत्ता में केजरीवाल का यह तीसरा टर्म है। उन्होंने पहली बार 28 दिसंबर 2013 को दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद संभाला, लेकिन उस सरकार का कार्यकाल केवल 48 दिनों का रहा। 2015 में आम आदमी पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीते और केजरीवाल ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 2020 में फिर से जनता ने उन्हें चुना और वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बने।
हरियाणा में चुनावी प्रचार का नया मोड़
केजरीवाल के इस्तीफे के ऐलान के बाद दिल्ली से लेकर हरियाणा तक सियासी हलचल तेज हो गई है। हरियाणा में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और आम आदमी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा केजरीवाल हैं। यह माना जा रहा है कि केजरीवाल इस्तीफा देकर हरियाणा के चुनावी मैदान में एक बड़ा इमोशनल कार्ड खेलेंगे।
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केजरीवाल की रिहाई के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ गया है। उन्हें उम्मीद है कि केजरीवाल की उपस्थिति हरियाणा के चुनावी प्रचार को नया मोड़ देगी। केजरीवाल किसानों और महिला पहलवानों के मुद्दे पर भी बीजेपी पर हमलावर रह सकते हैं। चुनावी प्रचार में वे अपनी गिरफ्तारी का मुद्दा भी उठा सकते हैं, जो कि बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी दलों के निशाने पर है।
बताते चलें कि आम आदमी पार्टी ने हरियाणा में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की कोशिश की थी, लेकिन बातचीत सफल नहीं हुई। इसके बाद पार्टी ने सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है।
लोकसभा चुनाव में हरियाणा में AAP का वोट शेयर 4 फीसदी के करीब
2019 विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन
2019 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने हरियाणा की 46 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उस चुनाव में पार्टी को केवल 1 फीसदी वोट शेयर मिला और किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई। उस समय, पार्टी की स्थिति कमजोर थी और चुनावी मैदान में प्रभावी परिणाम नहीं दे पाई।
लोकसभा चुनाव में बदलाव
हालांकि, पिछले कुछ सालों में AAP ने हरियाणा में अपनी स्थिति को काफी मजबूत किया है। हाल के लोकसभा चुनाव में पार्टी का वोट शेयर बढ़कर 3.94 फीसदी के करीब पहुंच गया। यह वृद्धि पार्टी की मेहनत और चुनावी रणनीति का संकेत है। केजरीवाल के जेल से बाहर आने के बाद, उनकी रिहाई ने पार्टी के कार्यकर्ताओं में नया उत्साह भर दिया है और उन्हें उम्मीद है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर होगा।
नए चुनावी समीकरण
हरियाणा में अगर बीजेपी और कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला, तो छोटे दलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। आम आदमी पार्टी का बढ़ता वोट शेयर और केजरीवाल की सक्रियता से यह साफ है कि हरियाणा के चुनावी दंगल में AAP एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभर सकती है।
इस बार के विधानसभा चुनाव में, AAP की रणनीति और प्रचार की ताकत से यह देखना होगा कि पार्टी कितनी सफलता प्राप्त करती है और हरियाणा की सियासत में अपनी जगह बना पाती है या नहीं।
हरियाणा में सियासी तस्वीर: बीजेपी का 10 साल का शासन
हरियाणा की मौजूदा राजनीति पर नज़र डालें तो पाएंगे कि पिछले 10 साल से बीजेपी राज्य की सत्ता में काबिज है। 2019 के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, लेकिन बीजेपी ने जेजेपी (जननायक जनता पार्टी) के साथ मिलकर सरकार बनाने में सफलता हासिल की थी। उस चुनाव में बीजेपी ने 40 सीटें जीतीं जबकि कांग्रेस को 13 सीटों पर जीत मिली।
बीजेपी ने जेजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई और दुष्यंत चौटाला की पार्टी को भी सरकार में शामिल किया। हालांकि, लोकसभा चुनाव के समय से ही बीजेपी और जेजेपी के रिश्तों में खटास आ गई थी, और दोनों पार्टियों के बीच की राहें अब अलग हो गई हैं।
बज चुका है हरियाणा में विधानसभा चुनाव का बिगुल
हरियाणा में अब विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। 5 अक्टूबर को राज्य की 90 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा और 8 अक्टूबर को चुनाव के नतीजे सामने आएंगे। इस बार के चुनाव में बीजेपी और जेजेपी के अलग होने के बाद, राज्य की राजनीति में नई गहमागहमी देखने को मिल रही है।
बीजेपी और जेजेपी के अलग होने के बाद, राज्य के राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं। नए चुनावी परिदृश्य में कई दल अपनी किस्मत आजमाने की तैयारी में हैं। आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के साथ-साथ बीजेपी और जेजेपी के अलग-अलग चुनावी रणनीतियां राज्य की राजनीति को एक नई दिशा दे सकती हैं।
इस चुनावी माहौल में, हरियाणा की सियासत पर असर डालने वाले कई फैक्टर होंगे, जिसमें बीजेपी का 10 साल का शासन, जेजेपी का अलग होना और अन्य दलों की नई रणनीतियां शामिल हैं। सभी की नजरें इस चुनाव पर टिकी हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि किस पार्टी को बहुमत मिलता है और कौन सी पार्टी राज्य की सत्ता में काबिज होती है।