किसानों का आंदोलन 2024 MSP कानूनी गारंटी की मांग

किसान आंदोलन: वे वजहें जिनकी वजह से सरकार के लिए किसानों की समस्याओं का हल निकालना बेहद मुश्किल!

साल 2024 के अंत में देशभर के किसान फिर से सड़कों पर आ गए हैं। उनके आंदोलन ने एक बार फिर सरकार को बैकफुट पर ला दिया है। दिल्ली की सड़कों पर किसानों का हंगामा तेज हो गया है और उनकी आवाज संसद में भी गूंज रही है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कुछ दिन पहले कहा था कि सरकार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देने के लिए काम कर रही है, लेकिन सवाल ये है कि क्या यह इतना आसान है? क्या सरकार इस मुद्दे का हल जल्दी निकाल पाएगी?

किसानों की क्या हैं मुख्य मांगें?

किसानों की प्रमुख मांगें स्पष्ट हैं। सबसे बड़ी मांग है, हर फसल को MSP की कानूनी गारंटी मिलनी चाहिए, और इसके लिए वे स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक C2+500% के फार्मूले पर जोर दे रहे हैं। इसके अलावा, गन्ना और हल्दी जैसी फसलों को भी MSP पर खरीदने की बात हो रही है। लेकिन ये सारी मांगें एक बड़े जटिल संघर्ष में बदल गई हैं। आइए जानते हैं वो पांच वजहें जिनकी वजह से सरकार के लिए किसानों की समस्याओं का हल निकालना बेहद मुश्किल हो गया है।

sarwan singh pandher

सरकार के लिए क्यों नहीं आसान है किसानों का मसला सुलझाना?

1- विश्व व्यापार संगठन (WTO) से उलझन

किसान संगठन अपने आंदोलन में ये मांग कर रहे हैं कि हर फसल को MSP की कानूनी गारंटी दी जाए। लेकिन यहाँ एक बड़ा पेच है। अगर सरकार ने MSP की गारंटी दी तो हर फसल की खरीदारी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही करनी होगी। लेकिन WTO (विश्व व्यापार संगठन) के नियम इस मामले में भारत को बहुत सीमित विकल्प देते हैं। WTO के नियमों के तहत, कोई भी सदस्य देश न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी नहीं दे सकता, क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नियमों के खिलाफ है।

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अगर भारत को WTO की सदस्यता छोड़नी पड़ी, तो इसका अर्थ होगा कि भारत को वैश्विक व्यापार से संबंधित कई और अधिकारों को भी त्यागना होगा। इसलिए सरकार के लिए यह एक बहुत बड़ी दुविधा बन गई है, क्योंकि WTO के नियमों के खिलाफ जाकर MSP की गारंटी देना अर्थव्यवस्था के लिए भारी पड़ सकता है। ऐसे में किसानों की यह मांग सरकार के लिए एक कठिन चैलेंज बन चुकी है।

2- कृषि राज्य का मसला, केंद्र क्यों हस्तक्षेप करे?

भारतीय संविधान में कृषि को राज्य का विषय बताया गया है। इसका मतलब यह है कि कृषि से संबंधित फैसले राज्यों को लेने होते हैं। हालांकि, केंद्र सरकार भी इस क्षेत्र में मार्गदर्शन और योजना बना सकती है, लेकिन बड़ी नीतियां और निर्णय राज्यों के हाथ में होते हैं।

किसान संगठनों की मांग है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर एक कानून लाए और संसद से इसे पास कराए। अगर केंद्र ने इस पर कदम उठाया, तो यह संविधानिक संकट पैदा कर सकता है। क्योंकि कृषि से संबंधित मुद्दे राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, और इस पर केंद्र की दखलअंदाजी से राज्यों के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। ऐसे में यदि यह मुद्दा अदालत में जाता है, तो एक लंबी कानूनी लड़ाई शुरू हो सकती है। यही कारण है कि केंद्र सरकार के लिए यह एक संवैधानिक पेच बन गया है।

3- किसानों की लागत तय करने का मुद्दा

किसान संगठन स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर फसलों का मूल्य तय करने की मांग कर रहे हैं। इसके तहत C2+500% का फार्मूला लागू करना जरूरी है, जिसमें उत्पादन की पूरी लागत को ध्यान में रखते हुए मूल्य तय किया जाता है। हालांकि, इस फार्मूले पर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।

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स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों में उस वक्त की महंगाई और मजदूरी के स्तर को ध्यान में रखा गया था, जबकि अब महंगाई और मजदूरी दोनों में काफी वृद्धि हो चुकी है। ऐसे में किसानों का कहना है कि फसलों की लागत अब पहले जैसी नहीं रही, और उसी हिसाब से उनकी कीमतें तय होनी चाहिए। मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी भी इस मुद्दे को उठा चुके हैं कि किसानों को अपनी लागत खुद तय करने का अधिकार मिलना चाहिए। यह एक बड़ा मुद्दा बन चुका है, क्योंकि सरकार को इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने में बहुत दिक्कत हो रही है।

4- किस फसलों पर MSP, यह भी एक बड़ा सवाल

किसान नेता परमजीत सिंह का कहना है कि सरकार केवल उन फसलों पर MSP देने पर ध्यान दे रही है जिनकी अब ज्यादा मांग है, जैसे दलहन और तिलहन। हाल ही में इन फसलों की MSP में भी बढ़ोतरी की गई है। लेकिन ये तो वही फसलें हैं जो कुछ राज्यों में उगाई जाती हैं, और बाकी देश के किसान गेहूं और धान जैसी फसलों पर MSP की गारंटी चाहते हैं।

देश के ज्यादातर किसान रबी में गेहूं और खरीफ में धान उगाते हैं, और यही उनकी मुख्य फसलों में से हैं। किसानों को लगता है कि सरकार केवल उन्हीं फसलों पर MSP की गारंटी देना चाहती है, जो शॉर्ट टर्म में लाभकारी हैं। इसके बावजूद किसान संगठन यह मांग कर रहे हैं कि हर फसल पर MSP दी जाए, चाहे वह किसी भी मौसम में उगाई जाए। सरकार और किसान संगठनों के बीच इसी मुद्दे पर तकरार जारी है।