शिव पुराण, स्कन्द पुराण और विष्णु पुराण से जानें भगवान शिव का असली स्वरूप, ऐसे दिखते हैं महादेव!

सनातन धर्म में भगवान शिव को सृष्टि के संहारक और पुनर्निर्माण करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि महादेव का असली रूप कैसा होता है? शिव पुराण, स्कन्द पुराण और विष्णु पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों में भगवान शिव के स्वरूप को लेकर कई रहस्यमय और दिव्य बातें बताई गई हैं। आज हम आपको इन्हीं पुराणों के आधार पर बताएंगे कि महादेव कैसे दिखते हैं और उनके रूप में क्या-क्या खास बातें छुपी हुई हैं।

शिव पुराण में भगवान शिव का स्वरूप

शिव पुराण में भगवान शिव को महाकाल, अघोर, नीलकंठ, त्रिनेत्रधारी और पंचमुखी रूप में दर्शाया गया है। यह पुराण बताता है कि शिव आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के अधिपति हैं। उनका रूप अत्यंत सरल और गूढ़ दोनों ही है।शिव पुराण के मुताबिक, भगवान शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है, गले में सर्पों की माला होती है और उनकी जटाओं से गंगा प्रवाहित होती है। यह रूप उनके संन्यास और वैराग्य का प्रतीक है। शिव न केवल योगियों के भगवान हैं, बल्कि वे संसार के कल्याण के लिए सर्वस्व अर्पित करने वाले महादेव भी हैं।

स्कन्द पुराण में भगवान शिव का रूप

स्कन्द पुराण में भगवान शिव को परम दयालु, करुणामय और भक्तवत्सल के रूप में दर्शाया गया है। इस पुराण में बताया गया है कि शिव साकार और निराकार दोनों रूपों में विद्यमान हैं। यानी वे शून्य भी हैं और समक्ष भी हैं।स्कन्द पुराण में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप की भी कथा मिलती है। इस रूप में शिव और माता पार्वती एक ही शरीर में विद्यमान हैं। यह रूप पुरुष और प्रकृति के संतुलन को दर्शाता है। इसके अलावा, शिवलिंग रूप भी इस पुराण में बताया गया है, जो यह दर्शाता है कि शिव अनादि और अनंत हैं।स्कन्द पुराण में यह भी उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव केवल संहार के देवता नहीं हैं, बल्कि सृष्टि के सृजन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। वे सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने वाले देवता हैं, जो भक्तों की भक्ति मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं।

विष्णु पुराण में भगवान शिव का वर्णन

विष्णु पुराण में शिव को भगवान विष्णु के अनन्य भक्त के रूप में चित्रित किया गया है। वहीं, भगवान विष्णु भी शिव के परम उपासक माने गए हैं। इस पुराण में हरि (विष्णु) और हर (शिव) की एकता पर विशेष बल दिया गया है।विष्णु पुराण में भगवान शिव के तांडव नृत्य और नटराज रूप का भी वर्णन मिलता है। जब शिव तांडव करते हैं, तो संसार में परिवर्तन आता है। यह परिवर्तन या तो संहार के रूप में होता है या सृजन के रूप में। इस पुराण में शिव को योग और ध्यान के आदि गुरु के रूप में भी माना गया है। वे आदियोगी हैं, जिन्होंने संसार को ध्यान और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया।

भगवान शिव का वास्तविक रूप क्या है?

जब भी हम भगवान शिव की कल्पना करते हैं, तो उन्हें मृगछाल से बने वस्त्र पहने हुए, गले में सर्प और जटा से गंगा बहते हुए देखते हैं। लेकिन शिव का स्वरूप इन तीनों पुराणों में व्यापक रूप से दर्शाया गया है। वे संहारक होते हुए भी सबसे करुणामय हैं। वे निर्गुण होते हुए भी सगुण रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। शिव ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति हैं, फिर भी एक सरल और सहज रूप में अपने भक्तों के समक्ष प्रकट होते हैं। उनकी तीसरी आंख ज्ञान, संहार और सृजन का प्रतीक है। उनका नटराज स्वरूप यह दर्शाता है कि संहार के बाद ही नया सृजन संभव होता है।

शिव का रूप क्यों इतना रहस्यमय है?

भगवान शिव का रूप इतना रहस्यमय इसलिए है क्योंकि वे सृष्टि के तीनों कार्यों- सृजन, पालन और संहार के अधिपति हैं। उनका रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में संतुलन बनाए रखना कितना जरूरी है। शिव का त्रिनेत्र हमें बताता है कि ज्ञान और संयम के बिना जीवन अधूरा है।

क्या शिव का रूप केवल भौतिक है?

नहीं, शिव का रूप केवल भौतिक नहीं है। वे निराकार भी हैं और साकार भी। शिवलिंग उनके निराकार रूप का प्रतीक है, जो यह दर्शाता है कि शिव अनंत और अविनाशी हैं।

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