kurma village in andhra pradesh: सोचिए अगर दुनिया में अचानक से बिजली, मोबाइल, टीवी और इंटरनेट सब बंद हो जाए तो क्या होगा? खैर, आंध्र प्रदेश का कुर्मा गांव कुछ ऐसा ही जगह है, जहां लोग पूरी तरह से बिना इन चीज़ों के जिंदगी जी रहे हैं। ये गांव न तो किसी तेज़ रफ्तार दुनिया का हिस्सा है, न ही यहां के लोग किसी बाहरी तकनीकी बदलाव का हिस्सा बनना चाहते हैं। ये लोग अपनी जिंदगी वैदिक परंपराओं और पुराने तौर-तरीकों के हिसाब से जीते हैं, जहां समय की घड़ी और आधुनिकता की दौड़ का कोई असर नहीं है।
यहां के लोग सूर्योदय से पहले उठकर पूजा, भजन और ध्यान में लग जाते हैं। बच्चों को वेद और संस्कृत पढ़ाई जाती है, और बड़े लोग खेती-बाड़ी, घर बनाने, सब कुछ पुराने तरीके से करते हैं। यानि, कुर्मा गांव का जीवन पूरी तरह से प्रकृति और परंपरा से जुड़ा हुआ है। यहां के लोग न किसी स्मार्टफोन के, न टीवी के, न ही किसी और इलेक्ट्रॉनिक सामान के बिना जीने में पूरी तरह से खुश हैं।
यहां का माहौल कुछ ऐसा है कि अगर आप यहां आकर कुछ वक्त बिताते हैं, तो आपको एहसास होगा कि एक साधारण, शांत और सादा जिंदगी में कितनी शांति और संतुष्टि हो सकती है। कुर्मा गांव का जीवन हमें बताता है कि क्या सच में, अगर हम कुछ समय के लिए दुनिया से कट जाएं, तो क्या हमें असली खुशी मिल सकती है?
वैदिक परंपरा का पालन करते लोग
कुर्मा गांव में रहने वाले लोग वैदिक जीवनशैली को इतने समर्पण के साथ अपनाते हैं कि इस गांव को देखने से ऐसा लगता है जैसे आप किसी अलग ही युग में पहुंच गए हों। यहां के लोग खेती भी पुराने तरीके से करते हैं। न तो आधुनिक मशीनों का उपयोग होता है, न ही रासायनिक उर्वरकों का। यही नहीं, यहां की ज़मीन पर उगने वाले काले और लाल चावलों की खास बात यह है कि ये पूरी तरह से जैविक होते हैं, बिना किसी केमिकल के।
गांव में कुल 56 लोग रहते हैं, और इनकी दिनचर्या वैदिक परंपराओं पर आधारित है। बच्चों को संस्कृत, वेद, और हिन्दू धर्म के अन्य ग्रंथों का ज्ञान देने के लिए एक शिक्षक हैं। इन बच्चों को तेलुगु, हिंदी और अंग्रेजी जैसी भाषाओं में भी शिक्षा दी जाती है।
घर बनाने का तरीका भी है खास
कुर्मा गांव में घर भी बेहद अलग होते हैं। यहां के लोग घर बनाने के लिए सीमेंट, लोहे या किसी आधुनिक सामग्री का इस्तेमाल नहीं करते। उनका तरीका बहुत ही पारंपरिक और प्रकृति से जुड़ा हुआ है। घरों की दीवारें मिट्टी, रेत और चूने से बनाई जाती हैं, और इनमें नींबू, गुड़ जैसी चीजें मिलाकर मजबूती बढ़ाई जाती है। बिना किसी मशीन के, पुराने तरीके से घर बनाए जाते हैं, जो ना सिर्फ टिकाऊ होते हैं, बल्कि गर्मी और सर्दी दोनों में आरामदायक भी रहते हैं।
आध्यात्मिकता का गहरा असर
कुर्मा गांव में आध्यात्मिक जीवन का भी अहम हिस्सा है। 2018 में, ISKCON (अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण चेतना सोसाइटी) के संस्थापक भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद और उनके शिष्य यहां अपनी कुटिया स्थापित कर चुके हैं। अब यहां रोज शाम को भक्ति, ध्यान, और आध्यात्मिक कार्यक्रम होते हैं। इन कार्यक्रमों में रामायण, वेद-पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों की चर्चा की जाती है। यहां के लोग दिन की शुरुआत सुबह 3:30 बजे होती है, जब वे दिव्य पूजा करते हैं। फिर भजन होते हैं, और प्रसाद के बाद सब अपने-अपने काम में लग जाते हैं।
यहां रहना है तो फॉलो करना होगा रूल्स
कुर्मा गांव में रहने के लिए कुछ सख्त नियम हैं। यहां का आवास और भोजन निःशुल्क है, लेकिन इसका फायदा उठाने के लिए आपको गांव के नियमों का पालन करना होता है। महिलाओं को अकेले रहने की अनुमति नहीं है। वे अपने पिता, पति या भाइयों के साथ आ सकती हैं, लेकिन अकेले नहीं। इसके अलावा, यहां के नियमों में सबसे अहम बात यह है कि अगर आप इस गांव में रह रहे हैं, तो आपको रोज़ सुबह जल्दी उठकर पूजा, भजन और ध्यान करना होगा। बिना किसी गड़बड़ी के यह रूटीन फॉलो करना होता है।
क्या है कुर्मा गांव की खासियत?
कुर्मा गांव में जीवन जैसे किसी दूसरी दुनिया से आया हुआ लगता है। यहां लोग हर चीज को पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से करते हैं। इस गांव में न तो किसी के पास मोबाइल है, न कोई पंखा, न ही टीवी। लेकिन जो चीज यहां है, वो है शांति, संतोष और वैदिक परंपराओं के प्रति अडिग निष्ठा। अगर आप अपनी जिंदगी में सादगी, आध्यात्मिकता और प्रकृति से जुड़ने की तलाश में हैं, तो कुर्मा गांव जैसे गांवों से सीख सकते हैं।
वहां की शांति और साधना आपको इस भागदौड़ भरी दुनिया से थोड़ा अलग कर सकती है। आप सोच सकते हैं कि ये सिर्फ एक और छोटे से गांव की कहानी है, लेकिन यहां के लोग जो कर रहे हैं, वह हमें कहीं न कहीं जीवन के उन पहलुओं की याद दिलाता है, जिन्हें हम आजकल भूलते जा रहे हैं – जैसे शांति, संतुष्टि, और आध्यात्मिकता।