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Leap Year 2024: क्या होता अगर हर 4 साल में 29 फरवरी न आती? जानिए लीप ईयर से जुड़े रोचक तथ्य

Leap Year 2024

Leap Year 2024: आज 29 फरवरी 2024 फरवरी (Leap Year 2024) को आखिरी दिन है। यह साल एक लीप ईयर है क्योंकि इस साल में 365 नहीं बल्कि 366 दिन होने वाले है। इस बार फरवरी का महीना 28 की जगह 29 दिन का है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है 29 फरवरी हर 4 साल में एक बार ही क्यों आती है यह हर साल क्यों नहीं आती? और लीप ईयर के दौरान सिर्फ फरवरी में ही क्यों एक दिन जुड़ता है।आखिर ये एक गलती है या फिर असल में इसके पीछे कोई सांइस छुपा है।

दरअसल इस दुनिया में जो कुछ भी होता है उसके पीछे कोई ना कोई कारण जरूर छुपा होता है। हर 4 साल में 29 फरवरी इसलिए जोड़ी जाती है ताकि हमारा कैलेंडर सोलर कैलेंडर से मैच यानी बराबर हो सके। तो आइए आज हम आपको लीप ईयर से जुड़े इन सवालों के जवाब बताने जा रहे है।

ऐसे हुई थी लीप ईयर की शुरूआत:-

Leap Year 2024

इस बात से हम सब भली भांति अवगत है कि पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करने में पूरे एक साल का समय लेता है। इसी परिक्रमा के दौरान मौसम और दिनों में बदलाव देखे जाते है। पृथ्वी को इस एक चक्कर को पूरा करने में 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकंड का समय लगता है। हमारे कैलेंडर (Leap Year 2024) में इस पूरे समय को 356 दिन और 6 घंटे के रूप में देखा जाता है लेकिन सोलर ईयर में ऐसा नहीं होता।

इसी वजह से सोलर ईयर और कैलेंडर के दिनों में अंतर को कम करने के लिए हर साल में 6 घंटे को जोड़ दिया जाता है जिसकी वजह से हर 4 साल में एक लीप ईयर आता है। एक और दिन जुड़ने की वजह से उस साल में 356 दिन नहीं बल्कि 366 दिन होते है जिसकी वजह से उस साल को लीप ईयर के नाम से जाना जाता है।

इस वजह से हर 4 साल में जोड़ा गया 1 दिन:-

इतिहास के अनुसार उस समय रोमन साम्राज्य में कैलेंडर हुआ ​करता था और जूलियस सीजर के सम्राट बनने से पहले जो कैलेंडर बना हुआ था उसमें सिर्फ 355 दिन ही हुआ करते ​थे। तब उस समय में सोलर ईयर के बराबर आने के लिए हर दो साल में 22 दिन अलग से जोड़े जाते थे। लेकिन इस वजह से कई तरह की परेशा​नी होने लगी और सम्राट सीजन ने नए तरीके से गणनाएं करवाई।

इन गणनाओं में पता चला कि पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन और 6 घंटे का समय लगता है। तब उन्होंने कैलेंडर में 365 दिन कर दिए। इसके बाद ही जूलियस ने खगोलशास्त्री सोसिजेनेस को हर साल एक्स्ट्रा 6 घंटे का समाधान निकालने को कहा। तब उन्होंने हर 4 साल में एक दिन जोड़ने का प्रस्ताव दिया और इसके बाद से ही लीप ईयर में 366 दिन का नया कैलेंडर बना।

फरवरी में ही क्यों जुड़ा एक दिन?

Leap Year 2024

​जूलियन कैलेंडर के अनुसार उन्होंने दिसंबर की जगह फरवरी को साल का आखिरी महीना माना था। इसी वजह से साल के आखिरी माह में लीप ईयर का ए​क दिन जोड़ा जाने लगा। जूलियस सीजर के बाद पोप ग्रेगरी XIII ने 1582 में ग्रेगोरियन कैलेंडर पेश किया।

ग्रेगोरियन कैलेंडर की शुरूआत:-

समय के सा​थ कैलेंडर  (Leap Year 2024) पर कई तरह के बदलाव किए गए। इसी दौरान 15 वी सदी में रोमन के पोप ग्रेगोरी 13वें ने नए सिरे कैलेंडर में काम किया। अपनी गणना के अनुसार उन्होंने बताया कि एक्स्ट्रा समय की वजह से सोलर और कैलेंडर ईयर में करीबन 10 दिनों का अंतर आ गया है।

उन्होंने गणनाओं में बताया कि पृथ्वी को एक चक्कर को पूरा करने में 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकंड का समय लगता है जिसकी वजह 400 सालों में समय 3 दिन पीछे हो रहा था और 16वीं सदी में आते आते ये समय 10 दिन पीछे हो गया था। इस वजह से उन्होंने कैलेंडर में बदलाव कर 1582 के कैलेंडर में 10 दिन बढ़ा दिए। आज पूरी दुनिया भर में इसी कैलेंडर को यूज किया जाता है।

फरवरी ऐसे बना सबसे छोटा महीना:-

इतिहास के अनुसार ईसा के जन्म से 46 वर्ष पूर्व रोमन के सम्राट जूलियस सीजर ने नई गणनाओं के आधार पर एक नया कैलेंडर बनाया था जिसमें 12 महीनों का जिक्र था। लेकिन कुछ समय बाद में जूलियस सीजर की हत्या हो गई और उनके ही सम्मान में कैलेंडर के 7वें महीने का नाम जुलाई रखा गया। इस जुलाई के महीने में 31 दिन हुआ करते थे।

Leap Year 2024

लेकिन जूलियस के बाद रोमन के राजा ऑगस्टस बने और उन्हीं के नाम पर कैलेंडर में अगस्त माह का नाम पड़ा। लेकिन ऑगस्टस को इस बात की जलन थी जूलियस के जुलाई माह में 31 दिन क्यों है। क्योंकि उस समय अगस्त माह में सिर्फ 29 दिन ही हुआ करते थे। इस वजह से उन्होंने कैलेंडर में बदलाव किए और अगस्त में 31 दिन कर दिए जिसकी वजह से फरवरी में 28 दिन हो गए।

अगर लीप ईयर ना हो तो क्या होगा?

अगर लीप ईयर में ए​क दिन न जोड़ा जाए तो कई सारी परेशाानियों का सामना करना पड़ सकता है। लीप ईयर की वजह से कैलेंडर सोलर ईयर से मैच हो जाता है। क्योंंकि सोलर ईयर के अनुसार एक साल में 365 दिन और 6 घंटे पूरे होते है और कैलेंडर के अनुसार एक साल में 365 दिन ही पूरे होते है। शास्त्रों के अनुसार 6 घंटे से इतना फर्क नहीं पड़ता लेकिन कई सालों बाद इससे फर्क पड़ने लगेगा क्योंकि इसकी वजह से मौसम के सिस्टम तक में बदलाव देखे जा सकते है। अगर हर 4 साल में लीप ईयर नहीं होगा तो हम इन समय के चक्र से आगे निकल जाएंगे।

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