Lok Sabha Election 2024: Nawada Seat नवादा में जलेगा लालटेन या खिलेगा कमल, क्या बागी उम्मीदवार बिगाड़ देंगे सबका खेल ?

Lok Sabha Election 2024: Nawada Seat: नवादा नवादा में लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है। यहां पहले फेज में यानी 19 अप्रैल को मतदान होना है। सभी दलों के रण बांकुड़े चुनावी मैदान में कूद चुके हैं। हर प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहा है तो कौन होगा नवादा का सांसद । सबकी निगाहें इसी पर टिकी हैं।

नवादा लोकसभा क्षेत्र का इतिहास

बिहार का नवादा लोकसभा सीट हमेशा से सत्ता और राजनीति के केन्द्र में रहा है।जितना इसका ऐतिहासिक महत्व है उतना ही इसका राजनीतिक महत्व भी है। प्राचीन समय में नवादा मगध साम्राज्य का मुख्य अंग रहा है। यह क्षेत्र महाभारत काल में जरासंघ के शासन  का हिस्सा रहा है। यहां का तपोवन जरासंघ का जन्म स्थान माना जाता है तो यहां के पकड़ी डीहा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर जरासंध और भीम के बीच मल्ल युद्ध हुआ था।यह जैन औऱ बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए भी तपस्या का स्थल है।

1957 में इस सीट पर पहली बार एक महिला प्रत्याशी सत्यभामा देवी कांग्रेस के टिकट पर जीत कर संसद तक पहुंची थी।बाईट 3 चुनाव में नवादा सीट पर परिसीमन के बाद तक दस सालों तक भाजपा का कब्जा रहा। 2019 में यह सीट एन डी ए के तहत लोजपा के हिस्से आई और यहां से लोजपा प्रत्याशी चंदन सिंह ने जीत दर्ज की इससे पहले 2014 में इस सीट से भाजपा के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने जीत हासिल की थी। 2019 में बेगूसराय की सीट गिरिराज सिंह को मिली तो यह सीट लोजपा के खाते में चली गई तब बाहुबली सूरजभान के भाई चंदन सिंह यहां से चुनाव जीते। बताते चलें कि पहले यह सीट आरक्षित थी लेकिन 2009 के परिसीमन के बाद इस सीट को सामान्य सीट घोषित कर दिया गया। सामान्य सीट होने पर 2009 में भाजपा के भोला सिंह यहां से सांसद बने थे। उसके बाद तो लगातार इस सीट से एनडीए को जीत मिल रही है।

नवादा लोकसभा क्षेत्र में आती हैं छः विधानसभा की सीटें

बरबीघा,रजौली,हिसुआ,नवादा, गोविन्दपुर वारसलीगंज इन छः विधानसभा सीटों को मिलाकर बना नवादा लोकसभा कई मायनों में खास है।नवादा लोकसभा सीट का चुनावी गणित भी अलग है। इस क्षेत्र में सिचाई , जल-जमाव, बोरोजगारी, बढ़ता अपराध जैसी तमाम समस्याएं हैं । लेकिन जनता के मुद्दों और सवालों पर कहां चुनाव होते हैं। हर बार  चुनाव तो जातीय गोलबंदी और सोशल इंजीनियरिंग के आधार पर ही लड़े और जीते जाते है।

नवादा का जातीय समीकरण

नवादा में जातीय समीकरण की बात करें तो यहां यादव और भूमिहार वोटर हमेशा से निर्णायक रहे हैं। उसमें भी यहां भूमिहार मतदाता सब पर भारी पड़ते हैं। वोटरों की संख्या देखें तो दलितों महादलितों की संख्या यहां सबसे ज्यादा है। दलितों महादलितों की संख्या साढ़े चार से पांच लाख तक है तो भूमिहार मतदाता साढ़े तीन लाख से चार लाख, तो यादवों की संख्या ढ़ाई लाख माना जाता है। इस क्षेत्र में मुस्लिम वोटर दो लाख हैं। खास बात है कि मुस्लिम वोटरों में 70 पीसदी फारवर्ड मुस्लिम हैं जो किसी लहर में वोट नहीं करते बल्कि सोंच समझ कर मतदान करते हैं। नवादा में कोईरी , कुर्मी धानुक मिलाकर ढ़ाई लाख के करीब हैं तो वैश्य वोटर एक लाख है।भूमिहार वोटरों को छोड़ दें तो अन्य सवर्ण वोटरों की संख्या 25 से तीस हजार तक ही है।

नवादा में लड़ाई एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन की

तो नवादा में 2024 के दंगल की तयारी शुरू हो गई है। नवादा में भी पहेल चरण में मतदान होना है। यानी 19 अप्रैल को नवादा के मतदाता यहां के प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला कर देंगे। तो आईए एक नजर डालते हैं नवादा में किस प्रत्याशी के पक्ष में कैसा है माहौल

वैसे तो नवादा में सीधी लड़ाई महागठबंधन और भाजपा के बीच दिख रही है। भाजपा की ओर से वरिष्ठ भाजपा नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ0 सी पी ठाकुर के पुत्र विवेक टाकुर चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं तो उनके खिलाफ अखाड़े में बिहार में महागठबंधन की सबसे बड़ी घटक राजद के श्रवण कुमार कुशवाहा कमर कस के तैयार हैं। उधर इन दोनों रण बांकुड़ों को पटखन देने के लिए और भी दिग्गज दंगल में उतर गए हैं। नवादा सीट से कुल 8 उम्मीदवारों ने नामांकन परचा भरा है | जिसमे कभी लोजपा के दुलारे रहे भोजपुरी गायक गुंजन सिंह निर्दलीय मैदान में कूद गए हैं तो राजद को चुनौती देने लिए बागी बने विनोद यादव लंगोट कस के तैयार हैं। इन सबके बीच मौजूदा सांसद चंदन सिंह जिनका टिकट कट गया है वे भी कुछ बड़ी चाल चल के सबका खेल बिगाड़ सकते हैं।

मौजूदा सांसद चंदन सिंह बिगाड़ सकते हैं खेल

बताते चले कि चंदन सिंह लोजपा (पशुपति पारस) के कद्दावर नेता हैं लेकिन NDA में BJP ने पारस का पत्ता साफ कर सभी सीटें चिराग की लोजपा रामविलास को दे दी । लेकिन नवादा की सीट अपने पास रख ली । चंदन सिंह ने सीट बचाने के लिए बीजेपी से टिकट पाने का पूरा जोर लगाया लेकिन विवेक ठाकुर ने अंतिम समय में चंदन सिंह का खेल बिगाड़ दिया।  ऐसे में मौजूदा सांसद चंदन सिंह अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। अब कहा जा रहा है कि चंदन सिंह भाजपा के खिलाफ जनता की गोलबंदी करेंगे। हालांकि उनकी पार्टी के नेता पशुपति पारस ने जेपी नड्डा से मिल भाजपा को समर्थन देने का एलान किया है । इन सबके बीच कहा जाता है ना कि ‘हाथी के दांत दिखाने के अलग और खाने के अलग’ ।  वैसे हीं राजनीति में भी परदे के सामने कुछ अलग और परदे के पीछे कुछ अलग खेल होता है ।

इसे भी पढ़े : Lok Sabha Election 2024 मेें अमेठी से लड़ सकते रॉबर्ट वाड्रा! सांसद स्मृति ईरानी को लेकर बोले…

निर्दलीय विनोद यादव से राजद को घाटा

उधर निर्दलीय उम्मीदवार गुंजन सिंह भी एनडीए के वोट बैंक में ही सेंघ लगाएंगे। भूमिहार समाज से आने वाले भोजपुरी गीतों से लोकप्रिय हुए गुंजन सिंह को युवा मतदाताओं पर भरोसा है ।  उधर राजद के लिए भी राह आसान नहीं है नवादा के बाहुबली विधायक राजबल्लभ यादव जो इन दिनों जेल में हैं उनके भाई विनोद यादव ने भी बगावत का बिगुल बजा दिया है। एक जमाने में राजबल्लभ यादव और उनका परिवार राजद का समर्पित सिपाही बन कर खड़ा था लेकिन जब से श्रवण कुशवाहा को मैदान में उतारा गया है विनोद यादव के साथ राजबल्लभ यादव का पूरा परिवार बागी हो गया है। उनके साथ उनके भतीजे विधान पार्षद अशोक यादव भी दमखम के साथ मैदान खड़े हैं । यहां यह बताना जरूरी है कि विनोद यादव महीनों पहले से लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए थे, लेकिन एन वक़्त पर राजद ने उन्हें झटका दे दिया। यहाँ ये याद रखना होगा की MLC चुनाव में भी राजद ने अशोक यादव की जगह श्रवण कुशवाहा को मैदान में उतारा था लेकिन उस दौरान बागी बनकर मैदान में उतरे राजबल्लभ के भतीजे अशोक यादव ने निर्दलीय उमीदवार के तौर पर बाजी मार ली थी । इस तरह कयास लगाए जा रहे हैं कि नवादा में यादव वोटरों में बड़ी टूट होगी और विनोद यादव कुछ बड़ा कमाल कर जाएंगे।

एकजुट एनडीए को मिल सकता है फायदा

हालांकि नावाद में भूमिहार वोटरों का दबदबा रहा है। विवेक ठाकुर जाति से भूमिहार हैं , इसके अलावा जिस तरह से उनके नामांकन के समय भाजपा के एनडीए के तमाम दिग्गज नेता मौजूद रहकर एक जुटता दिखाई है ।उससे लगता है कि नवादा में वैश्य वोटर, कोईरी कुर्मी,और धानुक के साथ पासवान वोटरों का साथ भी मिलेगा। अगर ऐसा हुआ तो विवेक ठाकुर को उम्मीद है कि एकबार फिर यहाँ कमल खिलेगा । अगर राजद के वोटर इधर-उधर नहीं हुए और कुशवाहा वोट भी श्रवण कुशवाहा के साथ गया तो फिर यहाँ उनके लिए राह कठिन भी हो सकती है ।वैसे हाल के समय में नवादा के अंदर स्थानीय बनाम बाहरी  का हल्ला भी खूब जोड़ पकड़ रहा है । बहरहाल आखिरी फैसला तो जनता को करना है तो देखना होगा कि नवादा की जनता किसे अपना सांसद चुनती है।