Vasundhara Gehlot

Lok Sabha Election 2024 Vasundhara Gehlot Politics अपने बेटे के संसदीय क्षेत्र तक ही सीमित हैं वसुंधरा ,गहलोत कर रहे धुंआधार चुनाव प्रचार

Lok Sabha Election 2024 Vasundhara Gehlot Politics जयपुर। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री सूबे की सियासत की माहिर खिलाड़ी वसुंधरा राजे सिंधिया लोकतंत्र के महापर्व में भी कुछ कटी-कटी सी दिख रही हैं। वसुंधरा अपने बेटे दुष्यंत के संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार के अलावा किसी बड़ी सभा में नहीं दिख रही हैं। उधर कांग्रेस के कद्दावर नेता राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत के क्षेत्र सिरोही-जालौर में कैंप कर लगे हैं चुनावी अभियान में ।  क्या कारण है कि वसुंधरा है चुनाव अभियान से कटी-कटी सी।

वसुंधरा को लेकर पार्टी नेतृत्व भी उदासीन

धौलपुर के पूर्व राज परिवार की महारानी, राजस्थान की सियासत की केन्द्र बिंदू रही वसुंधरा राजे लोकतंत्र के महापर्व पर कुछ अलग-अलग सी क्यों दिख रही है। खास बात है कि इसबार पार्टी नेतृत्व भी वसुंधरा को लेकर कुछ उदासीन है। पार्टी की ओऱ से भी अभी तक वसुंधरा के लिए कोई खास कार्यक्रम तय नहीं किया है। वसुंधरा भी अपने पुत्र दुष्यंत के संसदीय क्षेत्र झालावाड़ को छोड़कर कहीं नहीं जा रही हैं। यहां तक कि पीएम मोदी जब करौली- धौलपुर आए तब भी वहां वसुंधरा मौजूद नहीं थी। करौली धौलपुर तो उनका गृहक्षेत्र है । इस क्षेत्र में वसुंधरा ने एक भी दौरा नहीं किया।

गहलोत का पुत्रमोह या कुछ और ?

उधर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी विधानसभा चुनाव में हार के बाद अपने – आप को समेट लिया है। हालाकि गहलोत अपने बेटे के क्षेत्र से ही चुनाव अभियान में लगे हुए हैं। पिछले 10 दिनों में गहलेत ने धुंआधार प्रचार अभियान किया है लेकिन अधिकांश समय गहलोत अपने बेटे वैभव के लिए समर्थन जुटाने में लगा रहे हैं। गहलोत अपने पुत्र के संसदीय क्षेत्र जालौर- सिरोही में गांव-गांव जा रहे हैं। यहां तक मुंबई और बेंगलुरू में क्षेत्र के प्रवासियों से भी मिलने पहुंच गए लेकिन कांग्रेस की किसी बड़ी मीटिंग में शामिल नहीं हुए। इसके अलावा गहलोत ने जिन चार संसदीय क्षेत्रों का दौरा किया वह सभी सीटें उनके बेहद करीबी रहे नेताओं को मिली हैं।

11 लोकसभा क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं गहलोत

यहां यह जानना जरूरी है कि राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत राजस्थान की‌ 28 सदस्यीय कैंपेन कमेटी के हेड हैं और कांग्रेस के स्टार प्रचारक भी हैं। अशोक गहलोत ने अबतक राज्य के 11 लोकसभा क्षेत्रों का दौरा भी किया है, जिनमें भीलवाड़ा, बाड़मेर, पाली, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर, चूरू, सीकर, सीटें शामिल हैं। इन सभी क्षेत्रों में पूर्व सीएम गहलोत कांग्रेस के उमीदवारों के नामांकन रैली में भी शामिल हो चुके हैं।  इसके अलावा गहलोत झुंझुनू, जयपुर में सभाओं को संबोधित भी कर चुके हैं।

अब बेटे वैभव के क्षेत्र में पूर्व सीएम का कैंप

राजस्थान के सियासी गलियारे में चर्चा जोरों पर है कि बेटे वैभव को टिकट मिलने के बाद से गहलोत ने जालौर सिरोही संसदीय क्षेत्र में डेरा डाल दिया है। वहीं से प्रदेश के दूसरे हिस्से में चुनाव प्रचार के लिए जा रहे हैं। ।

सीईसी की बैठकों में नहीं शामिल हुए गहलोत

हालाकि सियासी गलियारे में चर्कचा जोरों पर है कि बेटे की चिंता में गहलोत इतने  व्यस्त हो गए थे कि कांग्रेस के केन्द्रीय चुनाव समिति की पहली तीन बैठकों में भी शामिल नहीं हुए। यहां बताते चलें कि सीईसी ही प्रत्याशियों का टिकट फाइनल करती हैं। सूत्र बताते है कि सीईसी की एक बैठक के दौरान गहलोत बेंगलुरु में प्रवासी राजस्थानियों से मिलने चले गए थे।

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गहलोत की सचिन से अदावत भी एक कारण

राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट और अशोक गहलोत की अदावत कोई नई नहीं है, लेकिन इसबार विधानसभा चुनाव हारने के बाद लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी आलाकामान ने  सचिन पायलट को ज्यादा तरजीह दी और अशोक गहलोत के समर्थकों को टिकट नहीं दिया। राजस्थान के 25  सीटों में से 22 सीटों में केवल आठ सीटें गहलोत समर्थकों को मिली हैं। यही कारण है कि अशोक गहलोत को लगता है कि पार्टी आलाकमान ने भी उनको दरकिनार कर दिया है।

वसुंधरा ने क्यों बनाई चुनाव से दूरी

उधर वसुंधरा की उदासीनता के बारे में कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री पद नहीं मिलने से वह नाराज हैं इसके अलावा जब राज्य में मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ तब भी वसुंधरा समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली । इसके अलावा लोकसभा चुनाव में वसुंधरा समर्थकों को टिकट नहीं दिया गया। धौलपुर-करौली के सांसद मनोज राजोरिया, जयपुर के सांसद रामचरण बोहरा, चूरू के सांसद राहुल कस्वा के साथ श्री गंगानगर के सांसद निहालचंद मेघवाल का भाजपा नेतृत्व ने टिकट काट दिया। अब वसुंधरा को लगता है कि उनके कद के हिसाब से पार्टी ने उन्हें मान-सम्मान नहीं दिया। इसीलिए उन्होंने राजस्थान की सक्रिय राजनीति से अपने को लगभग अलग कर लिया है।

 

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