Lok Sabha Election 2024: दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 का चुनावी समर शुरू होने के साथ ही कांग्रेस में भगदड़ मची हुई है। चुनाव की तारीखें घोषित होने से लेकर तीसरे चरण के चुनाव के पहले तक दर्जनभर से अधिक कांग्रेसी नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। हाल ही में इंदौर सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षत कांति बम का अपना नामांकन वापस लेना और उसी दिन भाजपा में शामिल होना भी इसी कड़ी का हिस्सा था। इस घटना ने देशभर के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को झंकझोर कर रख दिया।
वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश और राजस्थान में बड़ी संख्या में कांग्रेसी नेताओं का बीजेपी में शामिल होना जारी है। हिमाचल में हाल ही में कांग्रेस की सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे। इस दौरान कांग्रेस के 6 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए। हालांकि कांग्रेस में मची इस भगदड़ को लेकर राजनीतिक पंडित अपने-अपने तरीके से मूल्यांकन कर रहे हैं लेकिन खुद पार्टी छोड़कर गए नेता इसका स्पष्ट कारण कांग्रेस आलाकमान की तानाशाही, दिशाहीनता और कांग्रेस की बन चुकी सनातन विरोधी छवि को बता रहे हैं।
आचार्य प्रमोद कृष्णम और गौरव वल्लभ ने खुलकर पार्टी छोड़ने का बड़ा कारण सनातन और हिंदुत्व को लेकर पार्टी की चुप्पी को बताया। कई बार कांग्रेस के सहयोगी दलों ने सनातन धर्म और हिंदू देवी-देवताओं के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की जिसपर आलाकमान ने चुप्पी साधे रखा। इसका असर कांग्रेस के जनाधार पर पड़ा और पार्टी की सत्ता में वापसी के सारे रास्ते बंद होते हुए दिखाई दिए। इसके चलते भी कांग्रेस के नेताओं में भगदड़ मची हुई है।
गौरव वल्लभ ने कांग्रेस छोड़ी, लगाए ये आरोप
अप्रैल के पहले सप्ताह तक जिन नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी, उसमें सबसे महत्वपूर्ण नाम गौरव वल्लभ का था। कांग्रेस के तेज तर्रार प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने बीजेपी का दामन थाम लिया। पार्टी छोड़ते समय सोशल मीडिया एप एक्स पर उन्होंने लिखा,’कांग्रेस पार्टी आज जिस प्रकार दिशाहीन होकर आगे बढ़ रही है, उसमें मैं ख़ुद को सहज महसूस नहीं कर पा रहा। मैं ना तो सनातन विरोधी नारे लगा सकता हूं और ना ही सुबह-शाम देश के वेल्थ क्रिएटर्स को गाली दे सकता हूं। इसलिए मैं कांग्रेस पार्टी के सभी पदों व प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे रहा हूं।”
उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को दिए अपने इस्तीफ़े में लिखा, “पार्टी नए भारत की आकांक्षा को बिल्कुल नहीं समझ पा रही है। इससे मेरे जैसा कार्यकर्ता हतोत्साहित महसूस कर रहा है। मैं राम मंदिर पर पार्टी के स्टैंड से क्षुब्ध हूं। मैं कर्म से हिंदू हूं। मैं सनातन विरोधी नारे नहीं लगा सकता। पार्टी और गठबंधन के कई लोग सनातन विरोधी नारे लगाते हैं। पार्टी का उस पर चुप रहना उसे मौन स्वीकृति देने जैसा है।”
कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम
कांग्रेस के एक बड़े नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने भी राम मंदिर बनने के बाद रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह से कांग्रेसी नेताओं को दूरी बनाकर रखने के आलाकमान के निर्देश पर काफी क्षुब्ध हो गए। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने अयोध्या राम मंदिर अभिषेक समारोह के लिए पीएम मोदी की प्रशंसा की थी। उन्होंने खुलकर कार्यक्रम में शामिल नहीं होने के लिए कांग्रेस की आलोचना की थी। इन सभी घटनाक्रमों के बाद कांग्रेस ने उन्हें 6 साल के लिए निष्कासित करने की बात कही। हालांकि कुछ राजनीतिक जानकार इसे कांग्रेस की आनन-फानन की कार्रवाई बताते हैं क्योंकि आचार्य प्रमोद कृष्णम ने मोदी की प्रशंसा कर पहले ही बीजेपी में जाने के संकेत दे दिए थे।
बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने भी पार्टी छोड़ी
बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने भी पार्टी का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया। उन्होंने राममंदिर को लेकर भेजे गए आमंत्रण को कांग्रेस नेतृत्व द्वारा ठुकरा दिए जाने को लेकर खासी नाराजगी व्यक्त की थी। साथ ही पप्पू यादव के कांग्रेस में शामिल होने पर भी उन्होंने खासा विरोध दर्ज कराया था।
संजय निरूपम गुटबाजी का हुए शिकार
कांग्रेस के कद्दावर नेता संजय निरूपम भी पार्टी छोड़कर चले गए। संजय निरूपम ने कहा कि पार्टी आर्थिक संकट से गुजर रही है और इसमें अब ऊर्जा नहीं बची है। दरअसल, संजय निरूपम मुम्बई उत्तर पश्चिम से वह टिकट चाहते थे, जो उन्हें कांग्रेस ने नहीं दिया और इस सीट पर इंडी अलायंस से शिव सेना उद्धव ठाकरे गुट से उम्मीदवार खड़ा कर दिया गया। इसके चलते भी वह कांग्रेस से नाराज थे और पार्टी के खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रहे थे।
सनातन विरोधी छवि ने दिया डेंट
कांग्रेस छोड़ने वाले गौरव वल्लभ ने कहा कि कांग्रेस अपने नेताओं को सनातन के विरोध में रहने वालों के खिलाफ बयान नहीं देने देती। राम मंदिर के निमंत्रण को ठुकराती है। इसके चलते इसकी छवि सनातन विरोधी की बन चुकी है। इसका संकेत तो 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद ही मिल गया था। हार के बाद बनाई गई ए.के एंटनी कमेटी की रिपोर्ट में इसे स्वीकार भी किया गया था।
एंटनी कमेटी ने कहा था कि ‘धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता’ के मुद्दे पर चुनाव लड़ने से कांग्रेस को नुकसान हुआ। इससे उसकी पहचान अल्पसंख्यक समर्थक की बन गई। इसके कारण भाजपा ने अपनी सनातन के संरक्षक की छवि को बनाने सफलता पाई और उसे चुनावी लाभ हुआ। कांग्रेस लोगों को यह बात समझाने में विफल रही कि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक सांप्रदायिकता देश के लिए समान रूप से खतरनाक हैं।
समिति ने कहा कि पार्टी पर अल्पसंख्यक-तुष्टीकरण नीति अपनाने का आरोप भी लगा जबकि मुस्लिम आरक्षण पर कांग्रेस के कुछ नेताओं ने लगातार बयानबाजी कर बहुसंख्यक सनातनियों को खासा नाराज कर दिया। इससे कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई। वहीं यह रिपोर्ट अल्पसंख्यकों में भी कांग्रेस के प्रति अविश्वास की बात करती है।
राहुल गांधी के ‘बचकाने व्यवहार’ से सब परेशान
अगस्त 2022 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने भी पार्टी को छोड़ दिया था। तब उन्होंने कांग्रेस आलाकमान पर गंभीर आरोप लगाए थे। आजाद ने इस संबंध में सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिखी थी जिसमें उन्होंने राहुल गांधी पर हमला बोला था। उन्होंने इस खत में राहुल पर ‘बचकाने व्यवहार’ का आरोप लगाया था। साथ ही कांग्रेस की ‘खस्ता हालात’ और 2014 में लोकसभा चुनाव में हार के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया था।
कांग्रेसी नेताओं की इज्जत रहती है कौड़ी के मोल
करीब एक दशक पहले हेमंत विश्व शर्मा ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में वे बताते हैं कि एक बार वह राहुल गांधी से मिलने गए। तभी राहुल गांधी का कुत्ता वहां आ गया और उसने वहां रखे बिस्किट में से एक बिस्किट को प्लेट से चाटकर निकाल लिया। थोड़ी देर बाद बात करते-करते राहुल गांधी ने उसी प्लेट को उठाकर हेमंत के आगे कर दिया और कहा बिस्किट खा लीजिए। यह बात हेमंत विश्व शर्मा को नागवार गुजरी और उन्होंने तत्काल कांग्रेस छोड़ दी।
गांधी परिवार करता है मनमानी
गौरव वल्लभ ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि पार्टी में गांधी परिवार के अलावा किसी की नहीं चलती है। अगर आप गांधी परिवार के गुड बुक में जगह बनाने में असफल हैं तो आपकी तरक्की कांग्रेस में संभव नहीं है। उससे भी बड़ी बात यह है कि अगर गांधी परिवार का विश्वास पात्र बनकर आप अध्यक्ष भी बन जाते हैं तो भी आपकी इज्जत कौड़ी के ही मोल है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को धक्का देते विडियो इसकी ही गवाही देते हैं।
गांधी परिवार में पांच पावर सेंटर
वहीं, संजय निरुपम कहते हैं कि गांधी परिवार में 5 पावर सेंटर हैं। इसमें 3 गांधी फैमिली के ही हैं जिनमें सोनिया गांधी , राहुल गांधी और प्रियंका गांधी शामिल हैं। दो पावर सेंटर गांधी परिवार के बाहर के हैं जिसमें मल्लिकार्जुन खरगे और बी श्रीनिवास को बताया जाता है। राहुल और प्रियंका की लॉबी के चलते कई अच्छे नेताओं का सत्यानाश पहले ही हो चुका है। पंजाब में अमरिंदर सिंह, नवजोत सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी की कहानी सबको पता है। यही हाल राजस्थान में भी हुआ है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच झगड़ों का बना रहना और किसी निष्कर्ष तक न पहुंचना पार्टी की इसी पावर सेंटर वाली गुटबाजी का नतीजा रही है।
विचारधारा के आधार पर एक कन्फ्यूज है पार्टी कांग्रेस
कांग्रेस छोड़कर गए कई नेताओं ने इस बात पर जोर देकर कहा कि पार्टी विचारधारा के नाम पर बुरी तरह कन्फ्यूज हो चुकी है। खुद गौरव वल्लभ भी कहते हैं कि एक ओर पार्टी जाति आधारित जनगणना की बात करती है तो वहीं संपूर्ण हिंदू समाज की विरोधी नजर आती है। यह कार्यशैली जनता के बीच पार्टी को एक खास धर्म विशेष के हिमायती होने का भ्रामक संदेश दे रही है। इसी तरह आर्थिक मामलों पर कांग्रेस का स्टैंड हमेशा देश के वेल्थ क्रिएटर्स को नीचा दिखाने का, उन्हें गाली देने का रहा है।
ग्राउंड से कट चुका है गांधी परिवार, यू-ट्यूबरों की रिपोर्ट के भरोसे चल रहा काम
खुद गौरव वल्लभ ने अपने त्यागपत्र में लिखा,’पार्टी का ग्राउंड लेवल कनेक्ट टूट चुका है..बड़े नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच दूरी बन चुकी है..जब तक एक कार्यकर्ता अपने नेता को डायरेक्ट सुझाव नहीं दे सकता, तब तक किसी भी प्रकार का सकारात्मक परिवर्तन संभव नहीं है।’ वहीं, खुद कांग्रेस के सर्वे में भी यह बात सामने आई कि जमीनी तौर पर कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं की भारी कमी है। इसलिए यह नेटवर्क पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। इसी के चलते पार्टी सोशल मीडिया और अन्य संचार माध्यमों से मिले डेटा पर ज्यादा विश्वास करती है। इन आंकड़ों के सतही होने के चलते ही बार-बार पार्टी को हार का सामना करना पड़ रहा है।
सत्ता में रहने के आदती हैं कांग्रेसी, वापसी की उम्मीद न होने पर उठा रहे कदम
जानकारों की मानें तो कांग्रेसियों को सत्ता में रहने का आदत है। अब पार्टी के वर्तमान कारगुजारियों के चलते इसकी वापसी का कोई रास्ता उन्हें दिखाई नहीं दे रहा है। शायद यही वजह है कि वह भाजपा के किसी भी आफर को ठुकरा नहीं पा रहे हैं। वह पार्टी को आसानी से न केवल छोड़कर जा रहे हैं बल्कि समय-समय पर कांग्रेस को गहरा घाव भी दे रहे हैं। हिमाचल में सरकार गिराने की कोशिश में 6 कांग्रेसी विधायकों का भाजपा में शामिल होना इसका एक बड़ा उदाहरण पेश करता है।