loader

Lok Sabha Election Palamu Seat: झारखंड में है एक ऐसा लोकसभा सीट जहां कभी हार्डकोर नक्सली कमांडर जीता तो कभी पूर्व डीजीपी ने किया नेतृत्व

jharkhand

Lok Sabha Election Palamu Seat:डालटेनगंज। झारखंड के पलामू लोकसभा सीट की कहानी अलग है। यहां की जनता कब किसे ताज पहना देगी और किसे अर्श से फर्श पर पहुंचा देगी कहना मुश्किल है। यह पलामू की जनता ही है जिसने एक बार हार्डकोर नक्सली को अपना सांसद चुना तो दो बार पुलिस के सबसे आला अफसर रहे पूर्व डीजीपी को ताज पहना कर संसद तक पहुंचाया। हार्डकोर नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा को कौन नहीं जानता। एक जमाने में कामेश्वर बैठा के नाम से आम जनता तो क्या पुलिस भी खौफ खाती थी । उसी कामेश्वर बैठा को वर्ष 2009 में पलामू की जनता ने अपना सांसद चुना। तब पूरे देश में इसकी खूब चर्चा भी हुई। 2009 के बाद 2014 में जो चुनाव हुआ उसें मोदी लहर पर सवार होकर आए झारखंड के पूर्व डीजीपी बीडी राम को भी यहां की जनता से अपना सांसद चुना। बीडी राम पिछले दो चुनावों 2014 और 2019 में लगातार जीते और पलामू के मौजूदा सांसद हैं।

महागठबंधन ने फिलहाल नहीं तय किया प्रत्याशी

बताते चलें कि पूरे देश में एनडीए ने सीटों के बंटवारे में तेजी दिखाई है। झारखंड में भी भाजपा ने एकबार फिर बीडी राम को अपना प्रत्याशी बनाया है। उधर महागठबंधन की दो बड़ी पार्टियां राजद और कांग्रेस में इस सीट को लेकर जबरदस्त मारा-मारी है। दोनों दल इस सीट पर दावा कर रहे हैं और हर हाल में यह सीट हथियाना चाहते हैं। ऐसे में इस सीट पर महागठबंधन का प्रत्याशी तय नहीं हो सका है।

पलामू लोकसभा सीट का इतिहास

पलामू देश की आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में ही लोकसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में आ गया था। 1951-52 में हुए पहले चुनाव के समय पलामू से दो सांसद चुने जाते थे। इस सीट को पलामू सह हजारीबाग सह रांची कहा जाता था। इस तरह यह सीट दो संसदीय सीट के रूप में था। पहली बार यहां से एक सीट पर कांग्रेस के गजेंद्र प्रसाद सिन्हा और दूसरी सीट पर भी कांग्रेस के ही प्रत्याशी जेठन सिंह खरवार चुनाव जीते थे। जेठन सिंह खरवार जनजाति परिवार से आते थे और जुझारू स्वतंत्रता सेनानी थे।

1977 के बाद पलामू की बदल गई सियासी हवा

बताते चलें कि वर्ष 1967 और 1971 दोनों चुनावों में कांग्रेस की कद्दावर नेता कमला कुमारी ने जीत हासिल की थी। लेकिन 1977 में जनता पार्टी की लहर में कमला कुमारी हार गईं, लेकिन 1980 मे जब इंदिरा गांधी के पक्ष में हवा चली तो कमला कुमारी फिर एकबार यहां से सांसद चुनी गई। कमला कुमारी ने जनता पार्टी के रामदेनी राम को भारी मतों से पराजित कर दिया था।

यह भी पढ़ें : Loksabha Election 2024 Sonia Attack On PM Modi : राजस्थान से सोनिया गांधी का पीएम मोदी पर बड़ा हमला, देश में लोकतंत्र का चीरहरण हो रहा है, हम सब इसका जवाब देंगे

पलामू में जब पूर्व मुख्यमंत्री को मिली हार

देश की आयरन लेडी के नाम से विख्यात भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वर्ष 1984 में उनके पुत्र राजीव गांधी के लिए भारी सहानुभूति लहर चली । उस समय हुए आम चुनाव में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री राम सुंदर दास पलामू से चुनाव मैदान में थे। उस समय कमला कुमारी ने जनता पार्टी के उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास को भारी मतों से पराजित कर दिया। तब सियासी गलियारे में खूब चर्चा हुई कि एक दलित पूर्व मुख्यमंत्री को करारी हार का सामना करना पड़ा था।

पलामू में 1991 में पहली बार खिला कमल

गौरतलब है कि 1952 से लेकर 1989 तक कुछ एक दो चुनावों को छोड़ दें तो पलामू सीट पर हमेशा ही कांग्रेस का कब्जा रहा। भाजपा का भाग्य खुला 1991 में । जब भाजपा ने रामदेव राम को यहां से प्रत्याशी बनाया। रामदेव राम भी दलित समाज से आते थे। क्षेत्र में जमीनी नेता के तौर पर उनकी पहचान थी। तो रामदेव राम पहली बार 1991 में पलालू में कमल खिलाने में सफल हो गए। उसके बाद 1996, 1998, 1999 के आम चुनावों में लगातार भाजपा के प्रत्याशी ब्रजमोहन राम की जीत होती रही। हालाकि 2004 में राजद नेता मनोज कुमार भुईयां ने ब्रजमोहन राम को शिकश्त दिया। बाद में भष्टाचार के एक मामले में वे कैमरे के सामने पकड़े गए थे और महज एक साल में ही सांसदी चली गई।

2009 के चुनाव ने एक नया संदेश दिया

मनोज कुमार भुईयां की सांसदी जाने के बाद वर्ष 2007 में हुए उपचुनाव में राजद उम्मीदवार घूरन राम ने जेल से ही चुनाव लड़ा और नक्सली नेता सह बसपा प्रत्याशी कामेश्वर बैठा को हराया था।

साल 2009 में पलामू लोकसभा चुनाव का परिणाम चौंकाने वाला रहा। जब पहली बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा चुनाव मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। उस समय देश भर में इसबात की खूब चर्चा हुई। एक कुख्यात नक्सली के चुनाव जीतने के बाद नक्सली आन्दोलन को बल मिला लेकिन यह कामेश्वर बैठा का दुर्भाग्य रहा कि वे पलामू से कई बार चुनाव लड़े लेकिन दोबारा जीत नहीं सके। लेकिन पलामू के साथ यह बात जुड़ गई कि यहां से पुलिस के सबसे बड़े अधिकारी पूर्व डीजीपी और पूर्व नक्सली कमांडर के बीच चुनावी अखाड़े में आमना – सामना हुआ।

यह भी पढ़ें : Loksabha Election2024 Home Voting: घर बैठे वोट देने के नियम – कायदे जान लीजिए…

[web_stories title="true" excerpt="false" author="true" date="false" archive_link="false" archive_link_label="" circle_size="150" sharp_corners="false" image_alignment="left" number_of_columns="4" number_of_stories="8" order="DESC" orderby="post_date" view="grid" /]