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महाकुंभ 2025: गंगा जल का बीओडी लेवल हाई, क्या स्नान करना है सुरक्षित?

प्रयागराज में हर 12 साल बाद महाकुंभ होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु गंगा के संगम में स्नान करने आते हैं। इस दौरान गंगा के पानी की शुद्धता और उसकी गुणवत्ता पर बहुत सवाल उठते हैं। अब 2025 के महाकुंभ में भी यही स्थिति बनी हुई है। क्या सच में गंगा जल पूरी तरह से शुद्ध है, और क्या यह स्नान के लिए सुरक्षित है? आइए जानते हैं कि इस बार भी गंगा के पानी में क्या परेशानी है और क्या श्रद्धालुओं के लिए ये पानी सुरक्षित है या नहीं।

क्या है गंगा जल की स्थिति?

14 जनवरी 2025 तक, महाकुंभ में 2.50 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु संगम में डुबकी लगा चुके थे। अगर आप भी कभी महाकुंभ में गए हैं या जाने की योजना बना रहे हैं, तो आपको गंगा के पानी की शुद्धता को लेकर कुछ जरूरी बातें जाननी चाहिए। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दिसंबर 2024 में एक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि गंगा जल स्नान और पीने योग्य होना चाहिए। लेकिन क्या सच में ऐसा हो रहा है?

एनजीटी के आदेश के बाद भी स्थिति नहीं सुधरी

एनजीटी ने आदेश दिया था कि महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में गंगा जल की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता होनी चाहिए और उसकी गुणवत्ता ऐसी होनी चाहिए कि लोग उसमें नहा सकें और उसे पी भी सकें। लेकिन रिपोर्ट्स कहती हैं कि गंगा जल में कोई खास बदलाव नहीं आया है। संगम की कुछ धाराओं में पानी की गुणवत्ता बहुत खराब बनी हुई है, जो यह बताती है कि प्रदूषण की समस्या अब भी बनी हुई है।

BOD क्या है और क्यों यह इतना मायने रखता है?

सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) ने 14 जनवरी को गंगा जल की गुणवत्ता को मापने के लिए रीयल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया। इसके मुताबिक, संगम में Biological Oxygen Demand (BOD) का स्तर उस दिन 4 एमजी प्रति एमएल था, जो सामान्य सीमा 3 एमजी प्रति एमएल से ज्यादा था। BOD का ज्यादा होना यानी पानी में जैविक प्रदूषण ज्यादा है, और इसका मतलब है कि पानी की गुणवत्ता अच्छी नहीं है।

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जब BOD का स्तर ज्यादा होता है, तो इसका मतलब है कि पानी में प्रदूषक और गंदगी ज्यादा हैं। यह पानी के अंदर मौजूद कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को दिखाता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। और अगर आप गंगा में नहा रहे हैं तो यही प्रदूषण आपके शरीर में पहुंच सकता है। यही वजह है कि गंगा जल की गुणवत्ता की निगरानी की जाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह स्नान के लिए सुरक्षित हो।

संगम में पानी की गुणवत्ता की निगरानी

प्रयागराज में गंगा जल की गुणवत्ता की निगरानी 24 घंटे की जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं को सही जानकारी देना है कि वे किस तरह के पानी में स्नान कर रहे हैं। एनजीटी ने आदेश दिया था कि गंगा जल की गुणवत्ता को लेकर हर समय जानकारी दी जाए। इसके लिए एक प्लेटफॉर्म भी बनाया गया था, लेकिन यह प्लेटफॉर्म ठीक से काम नहीं कर रहा है। यही कारण है कि श्रद्धालुओं को सही जानकारी नहीं मिल पा रही है।

2019 के कुंभ में भी जल गुणवत्ता पर उठे थे सवाल

यह पहली बार नहीं है जब गंगा जल की गुणवत्ता पर सवाल उठे हैं। 2019 के कुंभ में भी गंगा जल की गुणवत्ता ठीक नहीं थी। सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक, उस समय भी गंगा के पानी में BOD और फीकल कोलिफॉर्म (पेट में होने वाले बैक्टीरिया) की मात्रा ज्यादा पाई गई थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि कुछ प्रमुख स्नान अवसरों पर संगम का पानी मानकों के हिसाब से अच्छा नहीं था।

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क्या सुधार की उम्मीद है?

महाकुंभ जैसे बड़े आयोजनों में लाखों श्रद्धालु एक साथ स्नान करते हैं, जिससे पानी में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। अगर इस समस्या का हल नहीं निकाला गया तो यह न सिर्फ श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है, बल्कि गंगा की पूरी पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि गंगा जल की गुणवत्ता में सुधार किया जाए और लोगों को इसकी सही जानकारी दी जाए।

सीवेज और पानी की साफ-सफाई पर ध्यान देना जरूरी

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, गंगा में पानी की गुणवत्ता को ठीक करने के लिए बेहतर सीवेज प्रबंधन और एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) की जरूरत है। इसके बिना गंगा जल की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं होगा। सरकार और संबंधित अधिकारियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए, ताकि भविष्य में श्रद्धालुओं के लिए गंगा जल सुरक्षित और शुद्ध हो सके।

 

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