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Mahananda Navami 2023: आज मनाई जाएगी महानंदा नवमी, जानें इस व्रत का महत्व और पूजा विधि

Mahananda Navami 2023

Mahananda Navami 2023: हिंदू शास्त्र में महानंदा नवमी के व्रत और पूजा को काफी शुभ माना गया है। हर वर्ष माघ, भाद्रपद और मार्गशीर्ष माह के दौरान शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानंदा नवमी (Mahananda Navami) के रूप में मनाया जाता है। इसे नंदा व्रत और ताल नवमी के नामों से भी जाना जाता है। गुप्त नवरात्रि के नवमी तिथि को पड़ने की वजह से इस व्रत का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी और मां दुर्गा की वि​धिवत रूप से पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि इस दिन स्नान आदि करके पूजा—पाठ करने और दान देने से पुण्य मिलता है और भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है। आज 21 दिसंबर, गुरूवार को महानंदा नवमी मनाई जा रही है। इस अवसर पर जानें क्या है इस व्रत का महत्व और पूजा विधि:—

महानंदा नवमी की पूजा

महानंदा नवमी पर मां लक्ष्मी और मां दुर्गा की पूजा की जाती है। मान्यतानुसार विधि विधान से उनकी पूजा करने से घर में शांति और सुख-समृद्धि आती है। इस दिन सुबह उठकर स्नान करें व स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा घर में व्रत का संकल्प लेते हुए लकड़ी के एक पट्टे पर लाल कपड़ा बिछाएं और मां दुर्गा और मां लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित कर विधि विधान से पूजा करें। पूजा की सामग्री में हल्दी,अक्षत,मेंहदी और कुमकुम को शामिल करे। मां के समक्ष घी का दीपक जलाएं और पूजा के दौरान दुर्गा मंत्र का उच्चारण करें। इसके बाद मदानंदा नवमी की कथा पढ़े और आरती करके पूजा सम्पन्न करें। मान्यता है कि इस दिन घर व अपने आस पास के स्थान को साफ रखना जरूरी होता है।

पूजा महत्व

हिंदू मान्यताओं के अनुसार महानंदा नवमी का व्रत विवाहित महिलाएं ही रखती है लेकिन इस व्रत को कुंवारी कन्याएं भी कर सकती है। इस दिन कन्याओं को भोज कराना भी काफी शुभ माना जाता है। पूरे विधि विधान से पूजा करने से मां लक्ष्मी और मां दुर्गा प्रसन्न होती है और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी करती है। कहा जाता है कि महानंदा नवमी की पूजा से ही मृत्यु के बाद विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।

महानंदा नवमी की व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है एक साहुकार था। उसकी पुत्री नियमित रूप से एक पीपल के पेड़ की पूजा करती थी। उस पीपल के पेड़ पर मां लक्ष्मी का वास था। कुछ ही समय में मां लक्ष्मी की साहुकार की बेटी से मित्रता हो गई। एक दिन लक्ष्मी जी साहुकार की बेटी को अपने घर ले आई और उसकी खूब आवभगत की। जब साहुकार की बेटी वापिस अपने घर को लौटने लगी तब लक्ष्मी जी ने उससे पूछा कि तुम मुझे अपने घर कब बुला रही हो। तब उसने अनमने भाव से मां लक्ष्मी को अपने घर आने का निमंत्रण तो दे दिया,लेकिन घर लौटने के बाद उदास होकर बैठ गई। जब साहूकार ने बेटी की उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं मां लक्ष्मी को घर आने का निमंत्रण देकर आई हूॅ लेकिन मां लक्ष्मी की तुलना में हमारा घर तो कुछ नहीं है। हम उनकी सेवा कैसे करेंगे। साहुकार ने अपनी बेटी को समझाया कि जो हमारे पास है उसी से हम उनकी सेवा करेंगे।

इसके बाद साहुकार की पुत्री ने चौकी लगाया और उस पर चौमुख दीपक जलाकर मां लक्ष्मी का स्मरण करने बैठ गई। तभी एक चील बेटी के गले में नौलखा हार डाल कर चला गया। इस हार को बेचकर बेटी ने सोने का थाल, शाल दुशाला और अनेक प्रकार के व्यंजनों की तैयारी की और मां लक्ष्मी के लिए सोने की चौकी भी ले आई। इसके बाद मां लक्ष्मी, गणेश भगवान के साथ साहुकार के घर आई और पुत्री की सेवा से प्रसन्न होकर पिता—​पुत्री को हर प्रकार की सुख समृद्धि का आशीर्वाद दिया। इसलिए मान्यता है कि इस दिन जो स्त्री श्रद्धा भाव से मां लक्ष्मी की पूजा करती है वह सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाती है।

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