महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस की करारी हार ने पार्टी को झकझोर कर रख दिया। जहां पार्टी को महज 16 सीटें मिलीं, वहीं हार के बाद कांग्रेस के नेता ईवीएम पर दोष मढ़ने में जुट गए हैं। जयराम रमेश तक यह कहते हुए नजर आए कि ईवीएम के डेटा की वजह से चुनाव के नतीजे प्रभावित हुए। हालांकि, असल में कांग्रेस की हार के पीछे कुछ और कारण थे, और वह कारण थे पार्टी के पांच बड़े नेताओं की लापरवाही और नाकामी। इन नेताओं ने कांग्रेस की मेहनत पर पानी फेर दिया और पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा।
1. केसी वेणुगोपाल: सीट बंटवारे और गठबंधन में हुई भारी गड़बड़ी
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की जिम्मेदारी थी पार्टी के भीतर और गठबंधन दलों के बीच समन्वय बनाए रखना। खासकर सीट बंटवारे को लेकर उन्हें सावधानी बरतनी थी, लेकिन वे इस जिम्मेदारी में पूरी तरह से नाकाम साबित हुए। महाराष्ट्र में कांग्रेस और उसके गठबंधन सहयोगी शिवसेना (यूबीटी) के बीच सीट बंटवारे को लेकर खींचतान हुई। नाना पटोले और संजय राउत के बीच विवाद सामने आया, लेकिन केसी इसे सुलझाने में नाकाम रहे। सबसे बड़ा झटका तब आया, जब सोलापुर दक्षिण सीट पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे ने शिवसेना (यूबीटी) के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार उतारने का फैसला किया, और केसी इस स्थिति को काबू करने में नाकाम रहे। यह कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका था, क्योंकि शिंदे का नाम पार्टी के बड़े नेताओं में लिया जाता है।
2. रमेश चेन्निथल्ला: चुनावी रणनीति में हुई भारी चूक
कांग्रेस ने चुनाव से पहले केरल के कद्दावर नेता रमेश चेन्निथल्ला को महाराष्ट्र का प्रभारी नियुक्त किया था, लेकिन उनका प्रदर्शन भी उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा। उनका काम था चुनावी रणनीति बनाना और पार्टी को सही दिशा में मार्गदर्शन करना। लेकिन, यह काम उन्होंने ठीक से नहीं किया। विदर्भ, जो कांग्रेस का पारंपरिक गढ़ माना जाता है, वहां भी पार्टी की स्थिति बेहद खराब रही। मुंबई और उत्तरी महाराष्ट्र में भी कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत खराब था। इसके अलावा, चेन्निथल्ला को कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने और चुनावी मैदान में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन वे इस कार्य में पूरी तरह असफल रहे।
3. नाना पटोले: मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब, लेकिन हार का स्वाद
नाना पटोले, जो महाराष्ट्र में कांग्रेस के अध्यक्ष थे, चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बनने के ख्वाब देख रहे थे। कई बार उन्होंने खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया और इस पर चर्चा की, लेकिन चुनावी नतीजे उनके लिए एक बड़ा झटका बने। पटोले ने भंडार-गोदिया क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, लेकिन वहां की 6 सीटों में से सिर्फ एक सीट पर कांग्रेस को जीत मिली। खुद पटोले की अपनी सीट भी मुश्किल से 208 वोटों से जीत पाई। यही नहीं, उनके गढ़ नागपुर में भी पार्टी की स्थिति कमजोर रही। यहां कांग्रेस ने 6 में से सिर्फ 2 सीटों पर जीत हासिल की। पटोले ने चुनावी कैंपेन में करीब 55 रैलियां कीं, लेकिन इन रैलियों का कोई खास असर नहीं पड़ा, और इससे उनकी रणनीतिक असफलता साफ नजर आई।
4. मधुसूदन मिस्त्री: टिकट वितरण में गलतियां
मधुसूदन मिस्त्री को महाराष्ट्र चुनाव में उम्मीदवारों का चयन करने और टिकट वितरण का जिम्मा सौंपा गया था। इस काम में भी उन्होंने चूक की। कांग्रेस ने 102 उम्मीदवारों को टिकट दिया, लेकिन इनमें से केवल 16 प्रतिशत उम्मीदवार ही जीत पाए। कई बड़े नेता जैसे बाला साहेब थोराट और पृथ्वीराज चव्हाण भी हार गए। कोल्हापुर में स्थिति इतनी खराब हो गई कि चुनाव के बीच में ही एक उम्मीदवार ने अपना नामांकन वापस ले लिया। मिस्त्री ने जमीनी हालात और चुनावी जरूरतों को समझने में गड़बड़ी की, और यही उनकी सबसे बड़ी गलती साबित हुई।
5. सुनील कनुगोलू: बीजेपी की माइक्रो मैनेजमेंट को न समझ पाना
कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार सुनील कनुगोलू को बीजेपी की रणनीति का मुकाबला करने की जिम्मेदारी दी गई थी। इस बार बीजेपी ने महाराष्ट्र में मध्य प्रदेश की तरह अपनी माइक्रो मैनेजमेंट की रणनीति अपनाई और पार्टी को इसका फायदा हुआ। बीजेपी ने छोटे-छोटे मुद्दों पर बारीकी से काम किया और चुनावी नतीजों को अपने पक्ष में कर लिया। लेकिन कनुगोलू और उनकी टीम इस रणनीति का मुकाबला करने में पूरी तरह से असफल रहे, जिससे कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
क्या कांग्रेस हाईकमान को चाहिए था बदलाव?
कांग्रेस की हार के बाद अब पार्टी के उच्च नेतृत्व पर भी सवाल उठ रहे हैं। चुनाव प्रचार में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। शुरुआत में कांग्रेस का कैम्पेन कमजोर था, और जब पार्टी के बड़े नेता मैदान में उतरे, तब तक देर हो चुकी थी। दूसरी ओर, बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत चुनाव प्रचार में लगाई और हर एक सीट पर माइक्रो मैनेजमेंट किया। बीजेपी के बड़े नेता जैसे अमित शाह खुद चुनावी बिसात बिछाने के लिए महाराष्ट्र में उतरे, जबकि कांग्रेस के बड़े नेता प्रचार के लिए आए, लेकिन उनका प्रभाव बहुत कम था।
कुल मिलाकर, कांग्रेस की हार में पांच प्रमुख नेताओं की नाकामी और पार्टी के अंदरूनी और बाहरी विवादों की बड़ी भूमिका रही। इन नेताओं की लापरवाही ने पार्टी की पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया और कांग्रेस को 2024 के विधानसभा चुनाव में बड़ा झटका लगा।