Election 2024: महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान इस बार एक बार फिर “कैश कांड” ने चर्चा का माहौल बना दिया है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता विनोद तावड़े पर चुनावी खर्च के लिए पैसा बांटने का आरोप लगा, तो वहीं शरद पवार के पोते रोहित पवार के करीबी को नोट बांटते हुए पकड़ा गया। इन घटनाओं के बीच, गोरेगांव पूर्व दिंडोशी विधानसभा सीट से एकनाथ शिंदे गुट के उम्मीदवार संजय निरुपम की इनोवा कार से भी करोड़ों रुपये बरामद हुए। नासिक में एक होटल के कमरे से 2 करोड़ रुपये की नकदी मिलने की खबर आई। अब सवाल यह उठता है कि चुनाव में जब्त किए गए इतने पैसे का आखिरकार होता क्या है? क्या ये पैसे किसी के पास वापस चले जाते हैं, या फिर इन्हें सरकार के खजाने में जमा किया जाता है? इस आर्टिकल में हम आपको इन्हीं सवालों का जवाब देंगे।
चुनावों के दौरान जब्त हुए करोड़ों रुपये का क्या होता है?
चुनाव के दौरान जब बड़े पैमाने पर नकदी जब्त की जाती है, तो चुनाव आयोग की टीमें इसे लेकर पूरी जांच करती हैं। हालांकि, यह तुरंत साबित नहीं किया जा सकता कि यह नकदी सीधे चुनाव से जुड़ी हुई है। इस स्थिति में, जब्ती की जिम्मेदारी आयकर विभाग के पास चली जाती है। आयकर विभाग यह जांचता है कि जिस व्यक्ति के पास इतनी बड़ी रकम मिली है, उसके पास इस रकम का हिसाब-किताब सही है या नहीं।
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अगर यह साबित हो जाता है कि जब्त की गई राशि चुनाव से जुड़ी नहीं है और यह कोई टैक्स संबंधी मामला है, तो आयकर विभाग उस राशि से टैक्स काट लेता है और बाकी की राशि संबंधित व्यक्ति को वापस कर दी जाती है। लेकिन अगर यह जांच में यह पाया जाता है कि यह पैसे चुनावी उद्देश्यों के लिए थे, जैसे कि मतदाताओं को रिश्वत देने के लिए, तो इस मामले में FIR दर्ज कर दी जाती है और अदालत में सुनवाई होती है।
अगर अदालत यह फैसला देती है कि जब्त की गई राशि का चुनाव से कोई संबंध नहीं था, तो उसे संबंधित व्यक्ति को वापस कर दिया जाता है। वहीं, अगर अदालत यह निर्णय देती है कि यह राशि चुनावी उद्देश्यों के लिए थी, तो यह रकम जिला कोषागार में जमा कर दी जाती है। जिला कोषागार में जमा होने के बाद, सरकार इस राशि का इस्तेमाल राज्य के विकास कार्यों या अन्य जरूरतों के लिए कर सकती है।
चुनाव आयोग की टीमें रखती हैं निगरानी
चुनाव के दौरान अवैध नकदी के लेन-देन पर नजर रखने के लिए चुनाव आयोग के तहत कई टीमें सक्रिय होती हैं। इन टीमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि चुनाव प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की धांधली या अनियमितता न हो। इन टीमों में उड़न दस्ते, निगरानी दल और वीडियो निगरानी दल जैसी टीमें शामिल होती हैं।
♦- उड़न दस्ते: यह टीमें किसी भी स्थान पर पहुंचकर आरोपों की जांच करती हैं, जैसे ही कोई शिकायत मिलती है।
♦- निगरानी दल: यह टीम निर्वाचन क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर तैनात रहती है, ताकि किसी भी प्रकार के अवैध लेन-देन पर निगरानी रखी जा सके।
♦- वीडियो निगरानी दल: ये टीमें जब्ती की प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग करती हैं ताकि हर कार्रवाई पारदर्शी हो सके।
ये सभी टीमें चुनाव की घोषणा के दिन से लेकर मतदान तक सक्रिय रहती हैं और अपनी निगरानी जारी रखती हैं।
पुलिस का क्या रोल होता है?
चुनाव के दौरान पुलिस को अवैध नकदी, शराब और अन्य सामान जब्त करने का अधिकार होता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि इन वस्तुओं का उपयोग मतदाताओं को रिश्वत देने या चुनावी प्रक्रिया में किसी प्रकार की गड़बड़ी करने के लिए न किया जाए। इसके साथ ही, यह टीमें चुनावी क्षेत्रों में सक्रिय रूप से काम करती हैं, ताकि किसी भी गलत गतिविधि को रोका जा सके।
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जब चुनावी क्षेत्र में भारी मात्रा में नकदी जब्त होती है, तो यह हमेशा संदेह का कारण बनता है। क्या यह रकम चुनावी उद्देश्यों के लिए थी, जैसे मतदाताओं को रिश्वत देने के लिए? या फिर यह किसी अन्य गैरकानूनी उद्देश्य के लिए लाए गए थे? चुनाव आयोग, आयकर विभाग और पुलिस इन सवालों का उत्तर ढूंढने की कोशिश करती हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हों।