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एक दर्जन परिवारों के दबदबे में सिमटी महाराष्ट्र की सियासत, किसका होगा इसबार सत्ता पर कब्जा?

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव का मौसम अपने पूरे जोर पर है और इस बार की चुनावी लड़ाई सिर्फ राजनीतिक दलों के बीच नहीं, बल्कि राज्य के एक दर्जन से ज्यादा प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों के बीच भी छिड़ी हुई है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में इन परिवारों का दशकों से दबदबा कायम है और अब इनकी सियासी साख दांव पर है। इस बार के चुनावों में भाजपा, एनसीपी, शिवसेना, और कांग्रेस जैसे प्रमुख दल पूरी ताकत झोंक रहे हैं, लेकिन जो असली जंग चल रही है, वह इन परिवारों के बीच है, जिनकी राजनीति को समझे बिना महाराष्ट्र की सियासत को समझना मुश्किल है। आइए जानते हैं कि कौन से प्रमुख परिवार महाराष्ट्र की राजनीति पर राज कर रहे हैं और इस बार उनके सामने किस तरह की चुनौतियाँ हैं।

ठाकरे परिवार: विरासत और बगावत के बीच

महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार का बहुत ही खास स्थान है। बाल ठाकरे, जो शिवसेना के संस्थापक थे, ने अपने जीवन में कभी चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन उनकी राजनीति ने पूरी राज्य की दिशा और दशा को प्रभावित किया। बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना को एक ताकतवर राजनीतिक पार्टी में तब्दील किया, जो न केवल महाराष्ट्र, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी चर्चित हुई। बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने पार्टी की कमान संभाली।

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना महाराष्ट्र में मजबूत हुई, लेकिन उनके लिए चुनौती तब शुरू हुई, जब एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी और शिवसेना का एक हिस्सा अपने साथ ले लिया। इस संघर्ष ने शिवसेना को दो धड़ों में बांट दिया। उद्धव ठाकरे ने अपनी पार्टी को शिवसेना (यूबीटी) नाम से नया रूप दिया, जबकि शिंदे ने शिवसेना (बाल ठाकरे) का नाम अपनाया और सरकार में भागीदारी की। इस बगावत के बाद ठाकरे परिवार के सामने यह सवाल था कि क्या वे अपनी पुरानी ताकत और राजनीतिक वर्चस्व को बनाए रख पाएंगे या नहीं।

 

इस बार के चुनाव में ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी भी सक्रिय राजनीति में है। उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे वर्ली सीट से फिर से चुनावी मैदान में हैं। आदित्य ठाकरे 2019 के चुनाव में वर्ली से विधायक बने थे और अब एक बार फिर अपनी सीट पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे भी माहिम सीट से चुनावी मैदान में हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आदित्य और अमित ठाकरे इस बार अपनी सियासी विरासत को कितना आगे बढ़ा पाते हैं या फिर इन्हें नए राजनीतिक परिदृश्य का सामना करना पड़ेगा।

पवार परिवार: शक्ति का संघर्ष

शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे मजबूत स्तंभों में से एक रहे हैं। वे चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे और एनसीपी के संस्थापक थे। शरद पवार ने हमेशा अपने निर्णयों से राज्य की राजनीति को प्रभावित किया है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में पवार परिवार में सियासी घमासान देखने को मिला, जब अजीत पवार ने अपने चाचा शरद पवार से एनसीपी का नेतृत्व छीन लिया। इस घटना ने पवार परिवार को एक नई दिशा में धकेल दिया। शरद पवार ने अपनी पार्टी का नाम बदलकर एनसीपी (एस) रखा, जबकि अजीत पवार ने एनसीपी के साथ मिलकर सत्ता की दिशा तय की।

शरद पवार

शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और उनके भतीजे अजीत पवार इस बार विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सुप्रिया सुले, जो बारामती से लोकसभा सांसद हैं, राज्यसभा सदस्य रह चुकी हैं, और अजीत पवार, जो महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री हैं, बारामती से विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए तैयार हैं। पवार परिवार की राजनीति में इस बार एक और नया मोड़ देखने को मिल सकता है, क्योंकि शरद पवार ने अपने पोते योगेंद्र पवार को अजीत पवार के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा है। यह मुकाबला राज्य की राजनीति के लिए खास महत्व रखता है।

राणे परिवार: पुराने गढ़ को बचाने की जंग

नारायण राणे महाराष्ट्र की राजनीति के एक बड़े नाम रहे हैं। उनका राजनीतिक सफर शिवसेना से शुरू हुआ था, लेकिन वे कांग्रेस में शामिल हो गए और फिर बीजेपी में आ गए। राणे का कोंकण और सिंधदुर्ग क्षेत्र में मजबूत राजनीतिक आधार रहा है। वे हमेशा से बीजेपी के समर्थक रहे हैं और कोंकण में उनका प्रभाव देखा जाता है। इस बार उनके बेटे नीलेश राणे और नितेश राणे भी चुनावी मैदान में हैं।

नीलेश राणे कोंकण के कुडाल क्षेत्र से चुनावी मैदान में हैं, जबकि नितेश राणे कोंकण के कणकवली क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। यह दोनों भाई कोंकण क्षेत्र में अपने पुराने गढ़ को बनाए रखने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। हालांकि, इस बार कोंकण में उनके लिए स्थिति उतनी सरल नहीं है, क्योंकि अन्य पार्टी के उम्मीदवार भी ताकतवर हैं और राणे परिवार के लिए मुकाबला कठिन हो सकता है।

चव्हाण परिवार: कांग्रेस से बीजेपी तक का सफर

चव्हाण परिवार का कांग्रेस के साथ एक लंबा इतिहास रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण महाराष्ट्र की राजनीति के कद्दावर नेता रहे हैं। उनके बेटे अशोक चव्हाण ने भी मुख्यमंत्री पद संभाला था और राज्य की राजनीति में अपनी मजबूत पहचान बनाई थी। अशोक चव्हाण ने 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए।

अब चव्हाण परिवार के सदस्य चुनावी मैदान में हैं। अशोक चव्हाण की पत्नी अमिता चव्हाण इस बार चुनाव लड़ने के लिए मैदान में हैं। नांदेड़ जिले में चव्हाण परिवार का अच्छा प्रभाव है, लेकिन इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर हो सकती है। अमिता चव्हाण के लिए यह चुनावी मुकाबला कठिन साबित हो सकता है, खासकर जब उनकी सीट पर कांग्रेस के कद्दावर उम्मीदवार भी खड़े हैं।

मुंडे परिवार: एक और चुनौती

महाराष्ट्र में बीजेपी के कद्दावर नेता गोपीनाथ मुंडे का नाम बेहद महत्वपूर्ण है। वे महाराष्ट्र के गृह मंत्री रहे और केंद्र में भी कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे। गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत उनकी बेटियों और भतीजों के पास आ गई। बड़ी बेटी पंकजा मुंडे एमएलसी हैं, जबकि उनके भतीजे धनंजय मुंडे एनसीपी से विधायक हैं।

धनंजय मुंडे ने 2019 के चुनाव में पंकजा मुंडे को हराया था और इस बार भी उनका सामना पंकजा मुंडे से होने की संभावना है। अगर धनंजय मुंडे हार जाते हैं, तो मुंडे परिवार की सियासत का अंत हो सकता है। बीड जिले में मुंडे परिवार का प्रभाव रहा है, लेकिन इस बार वहां चुनावी मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद है।

भुजबल परिवार: ओबीसी राजनीति का दबदबा

एनसीपी के कद्दावर नेता छगन भुजबल ने अपनी राजनीतिक पारी शिवसेना से शुरू की थी, लेकिन बाद में एनसीपी में शामिल हो गए और नासिक में अपनी पहचान बनाई। भुजबल परिवार के लिए यह चुनाव महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनके बेटे पंकज भुजबल और भतीजे समीर भुजबल इस बार चुनावी मैदान में हैं। समीर भुजबल ने 2009 में सांसद का चुनाव जीता था और इस बार वह चुनावी मैदान में उतर रहे हैं।

समीर भुजबल और पंकज भुजबल दोनों के लिए यह चुनावी दौड़ चुनौतीपूर्ण हो सकती है, क्योंकि नासिक क्षेत्र में कई प्रभावशाली नेता मैदान में हैं। हालांकि, छगन भुजबल के प्रभाव से इस परिवार को मदद मिल सकती है, लेकिन इस बार नासिक में स्थिति बदल सकती है।

शिंदे परिवार: मुख्यमंत्री की कुर्सी और चुनौतियाँ

एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं, और उनके लिए यह चुनाव किसी परीक्षा से कम नहीं है। एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत की थी और शिवसेना की पार्टी पर कब्जा कर लिया था। अब उनका राजनीतिक वर्चस्व ठाणे और आसपास के क्षेत्रों में है। उनके बेटे श्रीकांत शिंदे भी इस बार चुनावी मैदान में हैं, और वे ठाणे क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं।

यह देखना दिलचस्प होगा कि एकनाथ शिंदे अपने परिवार के सदस्यों के साथ-साथ अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को जीत दिलाने में कितने सफल होते हैं। ठाणे के इलाके में उनका मुकाबला कड़ा हो सकता है, खासकर जब उनके खिलाफ अन्य दलों के भी मजबूत उम्मीदवार मैदान में हैं।

अन्य सियासी परिवार

महाराष्ट्र में कई अन्य परिवार भी राजनीतिक दबदबे के लिए चुनावी मैदान में हैं। इनमें खड़से परिवार, देशमुख परिवार, निलंगेकर परिवार और पाटिल परिवार जैसे नाम शामिल हैं, जिनकी राजनीति क्षेत्रीय स्तर पर प्रभावशाली रही है। इन परिवारों के लिए भी इस चुनाव में अपनी सियासी किस्मत आजमाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

महाराष्ट्र की राजनीति में इन परिवारों की अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता। ये परिवार राज्य के राजनीतिक इतिहास से जुड़ी हुई अहम कड़ियां हैं और उनके बीच की सियासी प्रतिस्पर्धा ही इस बार के चुनाव को और भी दिलचस्प बनाती है। चुनाव के परिणाम से यह साफ होगा कि कौन सा परिवार अपनी सियासी विरासत को आगे बढ़ा पाया और कौन सा परिवार अपने पुराने गढ़ को खो बैठा।

राजनीतिक धारा को आगे बढ़ाने के लिए यह परिवार एक-दूसरे से भिड़ेंगे और जीतने का दावा करेंगे। अब यह देखना होगा कि इस बार के चुनाव में कौन सा परिवार सत्ता की चोटी तक पहुंचता है और कौन सा सियासी परिदृश्य बदलने में सफल होता है।