श्रीलंका में एक नया राजनीतिक युग शुरू हो गया है। देश के नए मार्क्सवादी झुकाव वाले राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके की पार्टी ने संसद में बहुमत हासिल कर लिया है। यह खबर श्रीलंका के लिए बड़े बदलाव का संकेत है, जो पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक संकट से जूझ रहा था।
पीपुल्स पावर पार्टी ने जीती 123 सीटें
15 नवंबर को घोषित चुनाव परिणामों के अनुसार, राष्ट्रपति दिसानायके की नेशनल पीपुल्स पावर पार्टी ने 225 सदस्यीय संसद में 123 सीटें जीती हैं। यह जीत उनके आर्थिक सुधार के एजेंडे को लागू करने के लिए एक मजबूत जनादेश है। विपक्ष के नेता सजित प्रेमदासा की समागी जना बलवेगया पार्टी 31 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही।
दिसानायके 21 सितंबर को राष्ट्रपति चुने गए थे। उन्होंने पारंपरिक राजनीतिक दलों को खारिज कर दिया, जो 1948 में श्रीलंका की आजादी के बाद से देश पर शासन कर रहे थे। राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें केवल 42 प्रतिशत वोट मिले थे, जिससे संसदीय चुनावों में उनकी पार्टी की संभावनाओं पर सवाल उठे थे। लेकिन राष्ट्रपति बनने के दो महीने से भी कम समय में उनकी पार्टी के समर्थन में जबरदस्त उछाल आया।
तमिल बहुल क्षेत्रों में भी मिली सफलता
श्रीलंका के चुनावी परिदृश्य में एक बड़े बदलाव के रूप में दिसानायके की पार्टी ने जाफना जिले में भी जीत हासिल की। जाफना उत्तर में तमिल समुदाय का गढ़ माना जाता है। इसके अलावा, पार्टी ने कई अन्य अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में भी जीत दर्ज की।
जाफना में यह जीत पारंपरिक तमिल दलों के लिए एक बड़ा झटका है, जो आजादी के बाद से उत्तरी राजनीति पर हावी रहे हैं। यह तमिलों के रवैये में भी एक बदलाव का संकेत है, जो ऐतिहासिक रूप से सिंहली बहुसंख्यक नेताओं के प्रति सतर्क रहे हैं। 1983 से 2009 तक चले गृहयुद्ध में तमिल विद्रोहियों ने सिंहली नेतृत्व वाली सरकारों द्वारा हाशिए पर धकेले जाने का हवाला देते हुए एक अलग देश बनाने की कोशिश की थी। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, इस संघर्ष में 100,000 से अधिक लोग मारे गए थे।
नई सरकार के सामने चुनौतियां
नई सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं। श्रीलंका पिछले कुछ वर्षों से गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। महंगाई, बेरोजगारी और विदेशी मुद्रा की कमी जैसी समस्याएं देश को परेशान कर रही हैं। राष्ट्रपति दिसानायके ने अपने चुनाव अभियान के दौरान इन मुद्दों को हल करने का वादा किया था।
अब जबकि उनकी पार्टी को संसद में बहुमत मिल गया है, उनके समर्थकों को उम्मीद है कि वे अपने वादों को पूरा करेंगे। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मार्क्सवादी नीतियों को लागू करना आसान नहीं होगा, खासकर जब देश को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाओं से मदद की जरूरत है।
श्रीलंका के लोग अब उम्मीद कर रहे हैं कि यह नया राजनीतिक परिवर्तन उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा। आने वाले महीने यह तय करेंगे कि क्या राष्ट्रपति दिसानायके और उनकी पार्टी देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने में सफल होंगे या नहीं।
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