Manikaran Shiva Temple: भगवान शिव हिंदू धर्म में सबसे प्रतिष्ठित देवताओं में से एक हैं, जो विनाश, परिवर्तन और पुनर्जनन के प्रतीक हैं। महादेव के रूप में, वह आदि योगी और आध्यात्मिक ज्ञान के स्रोत हैं। शिव ब्रह्मांडीय संतुलन सुनिश्चित करते हुए सृजन और विघटन के चक्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी तीसरी आंख ज्ञान का प्रतीक है, जबकि त्रिशूल तीन गुणों- सत्व, रज और तम का प्रतिनिधित्व करता है।
भारत भर में शिव कितने प्रचलित और मान्य देवता हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शिव के मंदिर और शिवलिंग आपको कश्मीर से कन्याकुमारी तक मिलेंगे। हर शिव मंदिर की अपनी एक अलग कथा है। इन्ही शिव मंदिरों में से एक है हिमाचल के कुल्लू में स्थित मणिकर्ण शिव मंदिर (Manikaran Shiva Temple)। इस मंदिर की भी महिमा एकदम अलग है। धार्मिक दृष्टि से इस मंदिर को भी विशेष महत्व प्राप्त है।
कैसे हुआ यहां शिव मंदिर का उदभव?
किवदंतियों के अनुसार, एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती ने पहाड़ों और जंगलों से घिरे एक सुंदर स्थान का दौरा किया। यहां पर देवी पार्वती ने अपनी बाली पार्वती नदी में खो दी थी। देवी पार्वती ने शिव से इसे पुनः प्राप्त करने के लिए कहा। शिव ने अपने शेषनाग को कान की बाली ढूंढने का आदेश दिया। शेषनाग विफल हो गए। इससे नाराज होकर शिव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी। इससे गर्म पानी का भारी विस्फोट हुआ। खौलते पानी से कई रत्न निकले जिसमे देवी पार्वती की बाली भी थी। इसी के बाद से यहां पर गर्म झरनों का निर्माण हुआ और इस जगह का नाम मणिकर्ण (Manikaran Shiva Temple) पड़ गया जिसका हिंदी में अर्थ ‘कान की बाली’ है।
मणिकर्ण मंदिर, एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह पवित्र पार्वती नदी के किनारे स्थित है। यह हिन्दू धर्म के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में 1760 मीटर की ऊंचाई पर पार्वती नदी के तट पर स्थित है। मणिकर्ण (Manikaran in Himachal Pradesh) में महाशिवरात्रि का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यहां शिवलिंग के दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मणिकर्ण शिव मंदिर अपनी पौराणिक कथाओं, प्राकृतिक चमत्कारों और धार्मिक महत्व के कारण श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
यहीं पर है मणिकर्ण गुरुद्वारा
मणिकर्ण, हिंदू धर्म और सिख धर्म दोनों के लिए ही बहुत पवित्र स्थल है। मणिकर्ण में एक ही स्थान पर शिव मंदिर और मणिकर्ण साहिब गुरुद्वारा (Manikaran Sahib Gurudwara) स्थित हैं। यही कारण है कि यह स्थान सामाजिक सद्भावना का एक शानदार उदहारण है। कहा जाता है कि गुरु नानक और उनके पांच शिष्यों ने 16वीं शताब्दी में इस जगह का द्वारा किया था। किंवदंती है कि जब गुरु नानक और उनके शिष्य मरदाना उस स्थान पर आए तो वे भूखे थे। नानक ने उनसे एक “लंगर” स्थापित करने के लिए कहा। तब से यहां लंगर प्रचलित है और आज भी यहां रोज लंगर का आयोजन किया जाता है।
इस गुरुद्वारे का वर्णन ‘बारहवें गुरु खालसा’ में भी किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि यह पहला स्थान है जहां गुरु नानक देव जी ने ध्यान किया और महान चमत्कार किये। यह स्थल सिखों के लिए प्रार्थना का एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। यहां परोसा जाने वाला लंगर इस गुरुद्वारे के दैनिक अनुष्ठान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
प्रसिद्ध हैं यहां के गर्म झरने
मणिकर्ण के शिव मंदिर और गुरूद्वारे में एक गर्म झरना (Hot Spring in Manikaran) है। बताया जाता है कि इसका तापमान 64 से 80 डिग्री सेल्सियस तक होता है। पर्यटकों और तीर्थयात्रियों द्वारा झरनों को पवित्र माना जाता है। गर्म झरने का उपयोग भोजन पकाने के लिए किया जाता है। माना जाता है कि इन झरनों में स्नान करने से गठिया रोग का इलाज हो जाता है। बता दें कि मणिकर्ण लगभग 1800 की ऊंचाई पर स्थित है और सर्दी तो छोड़िये गर्मियों में भी यहां का तापमान बहुत कम रहता है। इसके बाद भी यहां स्थित झरने का पानी हमेशा गर्म रहता है। यहां पर परोसे जाने वाला लंगर का भोजन इसी झरने के पानी से बनता है। झरने में लोग आसानी से चावल, दाल पका लेते हैं।
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