मनमोहन सिंह

मनमोहन सिंह ने बदली थी भारत की इकोनॉमी की दशा, उनके अर्थशास्त्र के कारण भारत इतना आगे

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार रात को निधन हो गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें देर शाम दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया है। अभी मिली जानकारी के मुताबिक कल यानी शुक्रवार को राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार होगा। एक वक्त पर देश की अर्थव्यवस्था को संभालने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका थी।

आर्थिक जगत के गुरु थे मनमोहन सिंह

पूर्व पीएम मनमोहन सिंह दो बार देश के प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन असल में वो बहुत अच्छे और जानकार अर्थशास्त्री थे। क्योंकि उनके रहते हुए देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा सुधार हुआ था। बता दें कि अपने लंबे राजनीतिक और वैज्ञानिक करियर में उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए थे, जिनसे भारत की दिशा बदलने में अहम भूमिका निभाई थी।

अर्थशास्त्र में महारथ था हासिल

डॉ मनमोहन सिंह को इकॉनोमी का मास्टर कहा जाएगा, तो गलत नहीं होगा। क्योंकि वो शुरुआत से ही अर्थशास्त्र में महारथ रखते थे। यही कारण है कि साल 1982 में उन्हें भारत के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी आरबीआई की गवर्नर बनाया गया था। इस पद पर मनमोहन सिंह 1985 तक थे। बता दें कि इससे पहले भी 1972 में मनमोहन सिंह ने चीफ इकॉनोमिक एडवाइजर का पद भी संभाला था। इस पर वो करीब चार साल तक थे। इसके अलावा उन्हें प्लानिंग कमीशन का भी हेड बनाया गया था, जिस पद पर वो 1985 से लेकर 87 तक थे। इसके बाद डॉ मनमोहन सिंह को 1987 में पद्म विभूषण से भी नवाजा गया था और 1991 में मनमोहन सिंह को पीवी नरसिम्हा राव सरकार में पहली बार वित्त मंत्री बनाया था।

देश की अर्थव्यवस्था को संभालने वाले मनमोहन सिंह

बता दें कि मनमोहन सिंह ने देश को उस समय संभाला था, जब देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में थी। क्योंकि देश में 90 के दशक के समय दुनियाभर में उथल-पुथल मची थी। उसी दौरान वर्ष 1991 में अरब युद्ध हुआ था, जिससे पूरी दुनिया में तेल की कीमतों में जबरदस्त उछाल आया था। वहीं देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 1991 में ही हत्या कर दी गई थी।

देश में बाबरी विध्वंस

इसके बाद वर्ष 1992 में बाबरी विध्वंस की घटना हुई थी, जिसने देश में सांप्रदायिक हिंसा की लहर ला दी थी। वहीं इसके एक साल बाद वर्ष 1993 में मुंबई बम धमाकों से देश दहल गया था। सबसे ज्यादा अरब देशों के बीच युद्ध से देश और दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ गई थी। जिससे देश का बजट बिगड़ गया था और युद्ध के कारण अरब देशों से भारत में आने वाली विदेशी मुद्रा में कमी आई थी। जानकारों के मुताबिक इन परिस्थितियों के कारण देश में आयात के लिए विदेशी मुद्रा भंडार केवल दो सप्ताह का ही बचा था। इतना ही नहीं देश पर 70 अरब डॉलर का कर्ज हो गया था। ऐसी मुश्किल परिस्थितियों में पीवी नरसिम्हा राव और तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने कमान संभाली थी।

पीवी नरसिम्हा राव बने पीएम और मनमोहन सिंह वित्त मंत्री

हमेशा कहा जाता है कि किस्मत में जो लिखा है, वो मिलेगा. पूर्व पीएम नरसिम्हा राव पर ये बात सटीक बैठती है। क्योंकि वो अपने राजनीतिक करियर से संन्यास लेकर हैदराबाद जाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन तभी राजीव गांधी की हत्या के बाद पैदा हुए हालातों ने पीवी नरसिम्हा राव को देश का प्रधानमंत्री बना दिया था। आर्थिक संकट को देखते हुए पीवी नरसिम्हा राव ने वित्त मंत्री के पद की जिम्मेदारी ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई करने वाले और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रहे मनमोहन सिंह को सौंप दी थी। मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री बनते ही देश की अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव किए थे। इसके लिए मनमोहन सिंह ने कुछ बड़े कदम उठाए थे। 24 जुलाई 1991 को बजट पेश करते हुए मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था को लेकर कई बड़ी घोषणाएं की थी। मनमोहन सिंह के कारण ही आज हम अर्थव्यवस्था के मामले में ब्रिटेन से भी आगे हैं।

ये था मनमोहन सिंह का प्लान

नई औद्योगिक नीति

मनमोहन सिंह ने देश के लिए नई औद्योगिक नीति बनाई थी। इसमें विदेशी निवेश और देश में उद्योग लगाने की दिशा में बड़े बदलाव किये थे।

लाइसेंस परमिट राज खत्म

वहीं मनमोहन सिंह ने नई उद्योग नीति के तहत देश से लाइसेंस परमिट राज खत्म कर दिया था। इससे देश में निवेश को बढ़ावा मिला था।

नई व्यापार नीति

वित्त मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह ने देश में निर्यात बढ़ाने के लिए नई व्यापार नीति लागू की थी। इसके तहत गैर-जरूरी चीजों के आयात पर रोक लगा दी गई थी। देश से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए जानबूझकर रुपये की कीमत कम की गई थी।

कॉरपोरेट टैक्स

राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाया गया था। वहीं वित्तीय लेन-देन पर टैक्स में कटौती लागू की गई थी। एलपीजी गैस सिलेंडर, खाद, पेट्रोल के दाम बढ़ाए गये थे और चीनी सब्सिडी हटाई गई थी।

म्यूचुअल फंड

उस दौरान म्यूचुअल फंड को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया था। वहीं गैर-निवासी नागरिकों को भी निवेश में छूट दी गई थी। अपनी अघोषित संपत्ति का खुलासा करने वाले लोगों को ब्याज और जुर्माने में राहत दी गई थी।